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जीपीएस स्पूफिंग से दिल्ली की 350 उड़ानें बाधित (350 Delhi Flights Disrupted by GPS Spoofing) | UPSC Preparation

350 Delhi Flights Disrupted by GPS Spoofing

350 Delhi Flights Disrupted by GPS Spoofing

संदर्भ:

हाल ही में दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे (IGI Airport) पर एक अभूतपूर्व घटना घटी, जब जीपीएस स्पूफिंग (GPS Spoofing) के कारण लगभग 350 उड़ानें प्रभावित हुईं। यह पहली बार था जब भारत के सबसे व्यस्त हवाई अड्डे पर इस तरह का डिजिटल हस्तक्षेप देखा गया।

GPS Spoofing क्या हैं?

  • जीपीएस स्पूफिंग एक आधुनिक डिजिटल साइबर खतरा है, जिसमें गलत सिग्नल भेजकर उपग्रह नेविगेशन सिस्टम को भ्रमित किया जाता है।
  • इस तकनीक में नकली सिग्नल (Fake Signals) को इस तरह प्रसारित किया जाता है कि वे वास्तविक उपग्रह डेटा की नकल करते हैं। इससे विमान, जहाज या वाहन गलत स्थान या दिशा का अनुमान लगाने लगते हैं।

मुख्य तथ्य:

  • जीपीएस प्रणाली (GPS System) की शुरुआत 1978 में अमेरिकी रक्षा विभाग (U.S. Department of Defense) ने की थी।
  • 2013 में टेक्सास विश्वविद्यालय (University of Texas, Austin) के शोधकर्ताओं ने पहली बार नागरिक जहाज पर जीपीएस स्पूफिंग परीक्षण किया।

Working Mechanism (कार्य प्रणाली)

  • जीपीएस स्पूफिंग में हमलावर (Attacker) एक कृत्रिम सिग्नल स्रोत का उपयोग करते हैं जो उपग्रह जैसी जानकारी भेजता है।
    यह गलत टाइमिंग या लोकेशन डेटा प्रसारित करता है, जिसे विमान का रिसीवर सही मानकर गलत पोजिशन कैलकुलेट करता है।
  • आधुनिक विमान जो जीपीएस पर निर्भर हैं, उनके लिए यह लैंडिंग और नेविगेशन के दौरान खतरनाक स्थिति बन सकती है।

Types of GPS Spoofing (मुख्य प्रकार)

  1. Simplistic Spoofing: पहले से रिकॉर्ड किए गए जीपीएस सिग्नल को पुनः प्रसारित करना।
  2. Intermediate Spoofing: नकली लेकिन वास्तविक जैसे दिखने वाले सिग्नल बनाना।
  3. Sophisticated Spoofing: सबसे खतरनाक रूप, जिसे अक्सर राज्य-स्तरीय साइबर ऑपरेशन या युद्ध में प्रयोग किया जाता है।

Major Global Incidents (वैश्विक घटनाएँ)

  • 2019: ब्लैक सी और शंघाई पोर्ट के पास दर्जनों जहाजों के स्थान अचानक बदल गए। C4ADS रिपोर्ट के अनुसार, 2019 में 20,000 से अधिक GPS अनियमितताएँ दर्ज की गईं।
  • 2022: इज़राइल, साइप्रस और लेबनान के ऊपर उड़ान भरने वाले विमानों में GPS त्रुटियाँ आईं। इसमें पायलटों को मैनुअल नेविगेशन मोड अपनाना पड़ा।

Impact of GPS Spoofing (प्रभाव)

  • विमानन सुरक्षा पर खतरा: गलत लोकेशन डेटा मिलने से रनवे एलाइनमेंट, नेविगेशन त्रुटि, और नज़दीकी टकराव (Near-miss) जैसी घटनाएँ बढ़ जाती हैं।
  • समुद्री व स्थलीय परिवहन में अव्यवस्था: जहाजों और ट्रकों की रूट ट्रैकिंग प्रभावित होती है, जिससे वैश्विक व्यापार में बाधा आती है।
  • आर्थिक नुकसान: उड़ानों के डाइवर्जन, ईंधन की बढ़ी खपत, और लॉजिस्टिक देरी से कंपनियों को करोड़ों रुपये का नुकसान होता है।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा पर प्रभाव: रक्षा उपकरण जैसे ड्रोन, मिसाइल, और ट्रूप कोऑर्डिनेशन सिस्टम जीपीएस पर निर्भर हैं।
    स्पूफिंग के कारण गलत टारगेटिंग या ऑपरेशन फेल्योर संभव है।

Detection and Prevention (रोकथाम और निगरानी उपाय)

  • FAA (अमेरिका) और EASA (यूरोपीय संघ) ने 2023 में एंटी-स्पूफिंग टूल्स पर संयुक्त परीक्षण शुरू किया।
  • ICAO (अंतरराष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन) ने जीपीएस डेटा के सत्यापन के दिशा-निर्देश जारी किए।
  • NATO ने 2022 से इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर रक्षा एजेंडा में जीपीएस स्पूफिंग को शामिल किया।
  • मल्टी-फ्रीक्वेंसी रिसीवर्स का उपयोग — जैसे GPS, Galileo, GLONASS, और NavIC — सिग्नलों की क्रॉस वेरिफिकेशन में मदद करता है।
  • भारत में ISRO और DGCA ने NavIC-आधारित ग्राउंड डिटेक्शन सिस्टम विकसित किया है।
  • MoCA और CERT-In 2023 से एविएशन साइबर सुरक्षा प्रोटोकॉल और ऑडिट लागू कर रहे हैं।

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