आज 28 नवंबर को महात्मा ज्योतिराव फुले की 134वीं पुण्यतिथि मनाई जा रही है, जिन्होंने समाज में असमानता और अस्पृश्यता के खिलाफ पाँच दशकों तक संघर्ष कर भारत की प्राचीन सभ्यता में क्रांतिकारी बदलाव की नींव रखी।
महात्मा ज्योतिराव फुले:
महात्मा ज्योतिराव गोविंदराव फुले महाराष्ट्र के एक महान लेखक, समाजसेवी, विचारक और जाति प्रथा के खिलाफ लड़ने वाले समाज सुधारक थे। उन्होंने समाज में भेदभाव मिटाने और समानता लाने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। उनके विचार और कार्य आज भी न्याय और सामाजिक एकता की प्रेरणा देते हैं।
महात्मा ज्योतिराव फुले: व्यक्तिगत जीवन
- महात्मा ज्योतिराव फुले का जन्म 1827 में महाराष्ट्र के सतारा जिले में हुआ था।
- उनके पिता गोविंदराव पुणे में सब्जी बेचने का काम करते थे।
- उनका परिवार ‘माली’ जाति से था, जिसे उस समय निम्न माना जाता था।
- उनका असली उपनाम ‘गोरहे’ था।
- थॉमस पेन की पुस्तक द राइट्स ऑफ मैन ने उन्हें गहराई से प्रभावित किया। फुले का मानना था कि समाज में व्याप्त बुराइयों का समाधान महिलाओं और निम्न वर्गों के लोगों को शिक्षित करने में है।
- फुले एक व्यापारी, लेखक और नगर पालिका के सदस्य भी थे।
- 1863 में, वे निर्माण स्थलों पर धातु ढलाई उपकरण की आपूर्ति का काम करते थे।
- उन्हें पुणे नगरपालिका का आयुक्त नियुक्त किया गया और 1883 तक इस पद पर अपनी सेवा दी।
सामाजिक सुधारक के रूप में कार्य:
- ज्योतिराव फुले पहले भारतीय थे जिन्होंने जातिवाद के खिलाफ आवाज़ उठाई।
- 1848 में, ज्योतिराव फुले ने अपनी पत्नी सावित्रीबाई को पढ़ना-लिखना सिखाया और इसके बाद दोनों ने पुणे में पहली स्वदेशी लड़कियों की स्कूल की शुरुआत की, जहां दोनों ने मिलकर शिक्षा दी।
- उन्होंने लैंगिक समानता में विश्वास किया और अपने सभी सामाजिक सुधार कार्यों में अपनी पत्नी को बराबरी का स्थान दिया।
- 21 साल की उम्र में उन्होंने भारत में लड़कियों के लिए पहली स्कूल की शुरुआत की।
- इस स्कूल को चलाने के लिए उन्होंने अपनी पत्नी सावित्रीबाई फुले और साथी फातिमा शेख की मदद ली।
- 1852 तक, फुले दंपत्ति ने तीन स्कूल स्थापित किए, लेकिन 1857 के विद्रोह के बाद पैसे की कमी के कारण सभी स्कूल बंद हो गए।
- फुले ने विधवाओं की दयनीय स्थिति को समझा और उनके लिए एक आश्रम स्थापित किया। उन्होंने विधवा पुनर्विवाह का समर्थन किया और इसे बढ़ावा देने के लिए काम किया।
- 1868 में, ज्योतिराव ने अपने घर के बाहर एक सामान्य स्नान स्थल बनवाया, जिससे उनका उद्देश्य यह था कि वे सभी जातियों के लोगों को समान सम्मान और स्थान दें।
- फुले ने विधवाओं के लिए आश्रय गृह और भ्रूण हत्या रोकने के लिए केंद्र स्थापित किए।
- उन्होंने जागरूकता अभियानों की शुरुआत की, जिनसे बाद में डॉ. बी.आर. अंबेडकर और महात्मा गांधी जैसे महान नेता प्रेरित हुए, जिन्होंने जातिवाद के खिलाफ प्रमुख कदम उठाए।
- कई लोग मानते हैं कि फुले ने ही “दलित” शब्द का पहली बार प्रयोग किया, जो शोषित और दबे-कुचले लोगों को दर्शाता है, जो पारंपरिक वर्ण व्यवस्था से बाहर थे।
- फुले ने महाराष्ट्र में अछूतता और जातिवाद को समाप्त करने के लिए काम किया।
- अपनी पुस्तक गुलामगिरी में उन्होंने ईसाई मिशनरियों और ब्रिटिश उपनिवेशवादियों (Christian missionaries and British colonialists) को शोषित जातियों को यह एहसास दिलाने के लिए धन्यवाद दिया कि वे सभी मानवाधिकारों (human rights) के हकदार हैं।
- उन्होंने गांवों में प्राथमिक शिक्षा (primary education) को अनिवार्य बनाने की वकालत की। उन्होंने हाई स्कूल और कॉलेजों में निचली जाति के लोगों को लाने के लिए विशेष प्रोत्साहन की भी मांग की।
सत्यशोधक समाज के बारे में:
- सत्यशोधक समाज की स्थापना: 24 सितंबर 1873 को महात्मा ज्योतिराव फुले ने सत्यशोधक समाज की स्थापना की, जिसका उद्देश्य दबे-कुचले वर्गों जैसे महिलाओं, शूद्रों और दलितों के अधिकारों के लिए काम करना था।
- जातिवाद और मूर्तिपूजा का विरोध: सत्यशोधक समाज ने मूर्तिपूजा का विरोध किया और जातिवाद के खिलाफ आवाज उठाई।
- तर्कसंगत सोच का प्रचार: समाज ने तर्कसंगत सोच को बढ़ावा दिया और पुजारियों की आवश्यकता को नकारा।
- समाज के आदर्श: सत्यशोधक समाज की स्थापना मानव कल्याण, सुख, एकता, समानता, और सरल धार्मिक सिद्धांतों और रीति-रिवाजों के आधार पर की गई थी।
- समाज के विचारों का प्रचार: पुणे आधारित दींनबंधु नामक समाचार पत्र ने समाज के विचारों को फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- समाज के सदस्य: सत्यशोधक समाज में मुसलमानों, ब्राह्मणों और सरकारी अधिकारियों के सदस्य शामिल थे। फुले की अपनी माली जाति ने समाज के प्रमुख सदस्य और वित्तीय सहयोगी प्रदान किए।
प्रकाशित कृतियाँ: महात्मा ज्योतिराव फुले की प्रमुख प्रकाशित कृतियाँ निम्नलिखित हैं:
- गुलामगीरी (1873)
- शेठकरयाचा आसुड (1881)
- सत्सार अंक 1 और 2 (1885)
- इशारा (1885)
- सत्यशोधक समाजोक्त मंगलाष्टक सहित सर्व पूजा-विदि (1887)
- सार्वजनिक सत्य धर्म पुस्तक (1889)
- असप्रुष्यांची कैफियत
- मृत्यु: 28 नवम्बर, 1890।
- उनका स्मारक पुणे, महाराष्ट्र स्थित फुलेवाड़ा में बनवाया गया है।
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