चर्चा में क्यों ?
US Presidential Elections में डोनाल्ड ट्रम्प (Donald Trump) संयुक्त राज्य अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति चुने गए हैं।
मुख्य बिंदु (Key Points):
- डोनाल्ड ट्रम्प (Donald Trump) फिर से अमेरिका के राष्ट्रपति चुने गए: ट्रम्प को 50 राज्यों में से कुल 538 में से 295 सीटें मिली हैं। जीत के लिए 270 सीटों का बहुमत जरूरी होता है।
- कमला हैरिस (Kamala Harris) को कड़ी टक्कर: डेमोक्रेटिक पार्टी (Democratic Party) की उम्मीदवार कमला हैरिस (Kamala Harris) ने टक्कर दी, परन्तु केवल 226 सीटें ही जीत पाईं।
- दूसरी बार राष्ट्रपति बनने वाले पहले नेता: ट्रम्प दूसरे विश्व युद्ध (Second World War) के बाद पहले राजनेता बने हैं, जो 4 साल के अंतराल के बाद दोबारा राष्ट्रपति बने हैं।
- महिला उम्मीदवारों (female candidates) को हराने का रिकॉर्ड: ट्रम्प अमेरिका के पहले नेता हैं जिन्होंने दो बार महिला उम्मीदवारों को राष्ट्रपति चुनाव में हराया है, पहले 2016 में और अब 2024 में।
कमला हैरिस की हार के कारण (Reasons for Kamala Harris’s defeat):
- आर्थिक मुद्दे (Economic issues): ट्रंप को आर्थिक मामलों में बेहतर माना गया, जिससे मतदाता उनकी ओर झुके।
- विश्वास की कमी (Lack of trust): मतदाताओं ने हैरिस के बजाय ट्रंप पर ज्यादा भरोसा जताया।
- अस्पष्ट भाषण (Ambiguous speech): हैरिस के भाषणों में स्पष्टता की कमी थी, जबकि ट्रंप का संदेश सीधा था।
- स्विंग स्टेट्स में समर्थन नहीं (No support in swing states): हैरिस स्विंग राज्यों में जरूरी समर्थन नहीं जुटा पाईं।
- डेमोक्रेटिक मतदाताओं का असंतोष (Dissatisfaction of Democratic voters): डेमोक्रेट मतदाता पार्टी से असंतुष्ट थे, जिससे ट्रंप को फायदा हुआ।
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव (US Presidential Elections):
अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव हर चार साल (Four years) में नवंबर के पहले मंगलवार को होता है। राष्ट्रपति बनने के लिए उम्मीदवार की आयु कम से कम 35 वर्ष होनी चाहिए, उसका जन्म अमेरिका में हुआ हो और वह पिछले 14 वर्षों से अमेरिका में रह रहा हो।
आमतौर पर उम्मीदवार चुनाव के पहले वर्ष में राष्ट्रपति पद के लिए अपनी मंशा सार्वजनिक करते हैं। अमेरिका में कोई एक राष्ट्रीय चुनाव संस्था नहीं है, इसलिए चुनाव स्थानीय अधिकारियों द्वारा हजारों प्रशासकों की सहायता से आयोजित किया जाता है।
अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव की प्रक्रिया (Process of election of US President):
अमेरिकी राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति को सीधे जनता द्वारा नहीं चुना जाता है। इसके बजाय, “इलेक्टर्स” नामक प्रतिनिधियों द्वारा “इलेक्टोरल कॉलेज” प्रक्रिया के माध्यम से चुना जाता है। इस प्रक्रिया को पाँच चरणों में बांटा जा सकता है:
- प्राइमरी और कॉकस (Primaries and caucuses)
- नेशनल कन्वेंशन (National convention)
- चुनावी प्रचार (Election campaign)
- जनरल चुनाव (General elections)
- इलेक्टोरल कॉलेज (Electoral College)
- प्राइमरी और कॉकस (Primaries and caucuses): चुनाव प्रक्रिया जनवरी या फरवरी में राज्य स्तरीय प्राइमरी और कॉकस से शुरू होती है। प्राइमरी को राज्य और स्थानीय अधिकारी गुप्त मतदान के माध्यम से आयोजित करते हैं जिसमें मतदाता अपने पसंदीदा उम्मीदवार के लिए वोट डालते हैं। कॉकस राजनीतिक दलों द्वारा आयोजित निजी कार्यक्रम होते हैं, जहां मतदाता सार्वजनिक रूप से अपना समर्थन देते हैं। इसके बाद, वोटों की गिनती की जाती है और उम्मीदवार को मिलने वाले प्रतिनिधियों की संख्या तय होती है।
- नेशनल कन्वेंशन (National convention): सभी राज्यों में प्राइमरी और कॉकस समाप्त होने के बाद राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित होता है, जहां एक पार्टी के उम्मीदवार को औपचारिक रूप से नामित किया जाता है। इस दौरान चुने गए प्रतिनिधि पार्टी के उम्मीदवार के लिए वोट डालते हैं और सबसे ज्यादा वोट पाने वाले उम्मीदवार को पार्टी की ओर से नामांकन मिलता है। इसी समय उम्मीदवार अपना उप-राष्ट्रपति भी चुनते हैं। इसके बाद आम चुनाव प्रचार की शुरुआत होती है।
- चुनाव प्रचार (Election campaign): प्रत्येक पार्टी का एक उम्मीदवार चुने जाने के बाद आम चुनाव प्रचार शुरू होता है। उम्मीदवार पूरे देश में यात्रा कर अपनी नीतियों और योजनाओं के बारे में बताते हैं और मतदाताओं का समर्थन पाने की कोशिश करते हैं। इस प्रचार में रैलियाँ, बहसें और विज्ञापन महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- जनरल चुनाव (General elections): आम चुनाव नवंबर में होते हैं। मतदाता मतदान केंद्र में जाकर अपने पसंदीदा उम्मीदवार के लिए वोट करते हैं। लेकिन वे वास्तव में “इलेक्टर्स” को वोट कर रहे होते हैं जो राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का चुनाव करते हैं। चुनाव जीतने के लिए उम्मीदवार को 270 इलेक्टोरल वोट की आवश्यकता होती है। कभी-कभी एक उम्मीदवार जो लोकप्रिय वोट में जीतता है, फिर भी चुनाव हार सकता है।
- इलेक्टोरल कॉलेज (Electoral College): चुनाव वाले दिन, मतदाता मतदान केंद्र में जाकर मतदान करते हैं और अपने पसंदीदा उम्मीदवार के लिए अप्रत्यक्ष रूप से वोट करते हैं। राज्यों को उनके प्रतिनिधियों की संख्या के आधार पर इलेक्टर्स मिलते हैं। कुल 538 इलेक्टर्स होते हैं, जिनमें से वाशिंगटन डीसी को तीन इलेक्टर्स मिलते हैं, जबकि अन्य अमेरिकी क्षेत्रों को नहीं मिलते। ज्यादातर राज्यों में जीतने वाला उम्मीदवार सभी इलेक्टर्स को प्राप्त करता है, लेकिन मेन और नेब्रास्का में इसे समानुपातिक तरीके से विभाजित किया जाता है।
अमेरिकी राष्ट्रपति बनने की योग्यता (Eligibility to become US President):
अमेरिकी संविधान के अनुसार, राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार की ये योग्यताएँ होनी चाहिए:
- वह संयुक्त राज्य अमेरिका में जन्मा नागरिक हो।
- वह अमेरिका में कम से कम 14 साल से रह रहा हो।
- उसकी आयु कम से कम 35 वर्ष हो।
- शपथ ग्रहण समारोह (इनॉगरेशन डे):
20 जनवरी को वाशिंगटन डीसी के यूएस कैपिटल बिल्डिंग (US Capitol Building in Washington DC) में शपथ ग्रहण समारोह होता है। पहले उपराष्ट्रपति और फिर राष्ट्रपति को शपथ दिलाई जाती है, जिससे वे औपचारिक रूप से राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति बन जाते हैं।
अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया: इलेक्टोरल वोट प्रणाली (Process of US Presidential Election: Electoral Vote System)
अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के दौरान उम्मीदवारों को सीधे वोट नहीं दिए जाते, बल्कि ‘इलेक्टर्स’ (electors) चुने जाते हैं। ये इलेक्टर्स राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के नाम पर चुनाव लड़ते हैं। हर राज्य में इलेक्टर्स की संख्या तय होती है और इसी के आधार पर उस राज्य का योगदान चुनाव में होता है।
राज्यों में इलेक्टोरल वोट की प्रणाली: अधिकतर राज्यों में यह प्रचलन है कि जिस उम्मीदवार को सबसे अधिक वोट मिलते हैं, उस राज्य के सभी इलेक्टोरल वोट उसी उम्मीदवार को मिल जाते हैं। उदाहरण के तौर पर, पेंसिलवेनिया (Pennsylvania) राज्य के पास 19 इलेक्टोरल वोट हैं। यदि रिपब्लिकन पार्टी को 9 और डेमोक्रेटिक पार्टी को 8 वोट मिलते हैं, तो अधिक वोट लाने के कारण सभी 19 इलेक्टोरल वोट रिपब्लिकन पार्टी को ही मिलेंगे। यह प्रणाली अमेरिका के 48 राज्यों में लागू होती है।
नेब्रास्का और मेन (Nebraska and Maine) में विशेष व्यवस्था नेब्रास्का और मेन राज्यों में इस प्रक्रिया से थोड़ी अलग व्यवस्था है। इन राज्यों में जिस पार्टी को जितने इलेक्टोरल वोट्स मिलते हैं, उन्हें उतनी ही सीटें दी जाती हैं। उदाहरण के लिए, मेन राज्य में 1 इलेक्टोरल वोट ट्रम्प को और 1 इलेक्टोरल वोट कमला हैरिस को मिला है, यानी दोनों को 1-1 सीट हासिल हुई है।
यदि कोई उम्मीदवार 270 चुनावी वोट नहीं प्राप्त करता है तो क्या होगा ?
- यदि कभी ऐसा होता है कि कोई उम्मीदवार 270 चुनावी वोट नहीं प्राप्त करता, तो चुनाव का निर्णय अमेरिकी प्रतिनिधि सभा (House of Representatives) द्वारा लिया जाएगा।
- प्रतिनिधि सभा शीर्ष तीन उम्मीदवारों में से राष्ट्रपति का चुनाव करेगी। सीनेट (Senate) में भी एक समान प्रक्रिया होगी, जिसमें उपराष्ट्रपति का चुनाव शीर्ष दो उम्मीदवारों में से किया जाएगा।
- अब तक ऐसा केवल एक बार हुआ है, 1824 के चुनाव में, जब जॉन क्वीन्सी एडम्स (John Quincy Adams) ने प्रतिनिधि सभा में सबसे ज्यादा वोट प्राप्त किए, क्योंकि कोई भी उम्मीदवार चुनावी कॉलेज (Electoral College) में बहुमत प्राप्त नहीं कर पाया था।
वोटिंग के कुछ ही घंटे बाद कैसे आ जाते हैं अमेरिकी चुनाव (US elections) के नतीजे?
- अमेरिका में चुनाव समाप्त होते ही वोटो की गिनती शुरू हो जाती है. अमेरिका के अलग-अलग राज्यों में वोटिंग का समय अलग-अलग होता है. जिस वजह से कई जगहों पर पहले ही काउंटिंग शुरू हो जाती है.
- काउंटिंग के बाद अमेरिका में चुनाव अधिकारी डाटा कंपाइल करके उसे सेंट्रल डेटाबेस (central database) में भेज देते हैं. जिससे रियल टाइम में मीडिया और जनता को भी अपडेट मिलती रहती है.
- यही कारण है कि अमेरिका में चुनाव खत्म होने के कुछ घंटे बाद ही परिणाम भी घोषित हो जाते हैं.
“अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने से भारत को फायदा या नुकसान” (“Will Donald Trump’s presidency benefit or harm India”)
डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका की आर्थिक और व्यापारिक नीतियां भारत के लिए मिश्रित प्रभाव ला सकती हैं:
- व्यापार नीतियां (Trade policies): ट्रंप भारत पर व्यापारिक बाधाएं कम करने और टैरिफ शुल्क बढ़ाने का दबाव बना सकते हैं, जिससे भारतीय IT, फार्मास्यूटिकल्स और टेक्सटाइल उद्योगों को नुकसान हो सकता है। 2023-24 में भारत ने अमेरिका से 2 बिलियन डॉलर का आयात और 77.52 बिलियन डॉलर का निर्यात किया था। ट्रंप ने इस स्थिति को बदलने का वादा किया था।
- रक्षा सहयोग (Defense cooperation): ट्रंप के प्रशासन के तहत भारत और अमेरिका के बीच रक्षा सहयोग बढ़ सकता है, खासकर चीन के प्रभाव से मुकाबला करने के लिए। भारत और अमेरिका के बीच संयुक्त सैन्य अभ्यास और हथियारों की बिक्री बढ़ सकती है, जिससे भारत की सुरक्षा मजबूत होगी।
- इमिग्रेशन नीतियां (Immigration Policies): ट्रंप की सख्त इमिग्रेशन नीतियां, विशेष रूप से H-1B वीजा पर, भारतीय पेशेवरों के लिए अमेरिकी नौकरी बाजार में अवसरों को सीमित कर सकती हैं।
- जियो-पॉलिटिकल प्रभाव (Geo-political impact): ट्रंप का पाकिस्तान के प्रति संतुलित दृष्टिकोण और आतंकवाद के खिलाफ कड़ा रुख भारत के लिए फायदेमंद हो सकता है।
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