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केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद के खिलाफ चल रहे अभियान को नई गति मिली है। उन्होंने यह भी कहा कि 2026 तक इस उग्रवाद को पूरी तरह समाप्त कर दिया जाएगा।
मुख्य बिंदु:
- नक्सलवाद के खिलाफ बड़ी उपलब्धियां: केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने छत्तीसगढ़ पुलिस की पिछले एक साल में नक्सलवाद के खिलाफ महत्वपूर्ण उपलब्धियों को सराहा।
- 287 नक्सली मारे गए।
- लगभग 1,000 नक्सली गिरफ्तार हुए।
- 837 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया।
- 14 शीर्ष नक्सली कमांडर मारे गए।
- सरकार और सुरक्षा बलों की प्रतिबद्धता:
- राज्य और केंद्र सरकार ने 31 मार्च, 2026 तक छत्तीसगढ़ से नक्सलवाद को पूरी तरह समाप्त करने का संकल्प लिया है।
- राज्य नेतृत्व और सुरक्षा बलों की प्रतिबद्धता की सराहना की गई।
- राष्ट्रपति पुलिस कलर पुरस्कार: छत्तीसगढ़ पुलिस को 25 वर्षों से कम सेवा में राष्ट्रपति पुलिस कलर पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जो एक विशेष उपलब्धि है।
- नक्सलियों से अपील:
- अमित शाह ने बचे हुए नक्सलियों से हथियार छोड़कर मुख्यधारा में शामिल होने और राष्ट्र निर्माण में योगदान देने का आग्रह किया।
- छत्तीसगढ़ में सबसे आकर्षक आत्मसमर्पण नीति लागू होने का उल्लेख किया।
नक्सलवाद:
नक्सलबाड़ी से शुरुआत: नक्सलवाद की शुरुआत 1967 में पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी गांव से हुई, जहां किसानों ने ज़मींदारों के खिलाफ भूमि विवाद को लेकर विद्रोह किया।
- मुख्य विचारधारा:
- माओवादी विचारधारा: यह आंदोलन माओवादी राजनीतिक विचारधारा से प्रेरित था, जो राज्य को सशस्त्र संघर्ष के माध्यम से उखाड़ फेंकने और भूमि और संसाधनों के पुनर्वितरण की वकालत करता है।
- आदिवासी क्षेत्रों में प्रसार: नक्सलवाद समय के साथ भारत के पिछड़े और आदिवासी क्षेत्रों में फैल गया, खासतौर पर छत्तीसगढ़, ओडिशा, झारखंड और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में।
- उद्देश्य:
- सशस्त्र विद्रोह: नक्सलियों का उद्देश्य सशस्त्र संघर्ष के माध्यम से भारतीय राज्य को चुनौती देना और भूमि, धन और संसाधनों का पुनर्वितरण करके हाशिए पर पड़े और आदिवासी समुदायों को सशक्त बनाना है।
नक्सलवाद के बढ़ने के कारण:
- विस्थापन: विकास परियोजनाओं और खनन गतिविधियों के कारण आदिवासियों का विस्थापन हुआ है, जिससे वे असंतुष्ट हो गए और माओवादी प्रभाव के प्रति संवेदनशील हो गए।
- असमानताएँ: गरीबी, शिक्षा की कमी और सरकारी कल्याणकारी योजनाओं का अभाव ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में असंतोष को गहरा करता है।
- वन अधिकारों की समस्या: वन संरक्षण अधिनियम, 1980 के तहत जंगल उत्पादों तक सीमित पहुँच ने जंगलों पर निर्भर समुदायों को और अधिक अलग-थलग कर दिया।
- सुरक्षा पर जोर: सरकार का केवल सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करना और मूलभूत सामाजिक-आर्थिक मुद्दों की अनदेखी करना समस्याओं को बढ़ाता है।
सरकार द्वारा उठाए गए कदम:
कानूनी कदम:
- गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम (UAPA): नक्सली समूहों को आतंकवादी संगठन घोषित करता है और उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की अनुमति देता है।
- राहत और पुनर्वास नीति: आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों को मुख्यधारा में लाने के लिए पुनर्वास पैकेज प्रदान करता है।
- वन अधिकार अधिनियम, 2006: आदिवासी समुदायों को भूमि अधिकार बहाल कर एक प्रमुख समस्या का समाधान करने का प्रयास करता है।
विकासात्मक कदम:
- महत्वाकांक्षी जिलों का कार्यक्रम: कमज़ोर जिलों को स्वास्थ्य, शिक्षा और बुनियादी ढांचे के विकास पर केंद्रित करता है।
- कौशल विकास कार्यक्रम: आदिवासी युवाओं को व्यावसायिक कौशल में प्रशिक्षित कर उन्हें नक्सली विचारधाराओं से दूर करने का प्रयास करता है।
- बुनियादी ढांचे का विकास: सड़क और दूरसंचार कनेक्टिविटी परियोजनाएँ शुरू की गई हैं, जिससे दूरदराज के क्षेत्रों में बुनियादी सेवाओं और प्रशासन की पहुँच बढ़ी है।