सामान्य अध्ययन पेपर II: सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप |
चर्चा में क्यों?
हाल ही मे, भोपाल के नवाब परिवार के 15,000 करोड़ रुपये की संपत्ति संबंधी “शत्रु संपत्ति” का मामला चर्चा में रहा। इस पर कानूनी बहस शुरू हो गई है और संपत्ति के मालिकाना हक को लेकर सवाल उठने लगे हैं।
शत्रु संपत्ति का परिचय और कानूनी संदर्भ
भारत में शत्रु संपत्ति का विचार 1947 में देश के विभाजन और चीन, पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों के साथ युद्धों के बाद सामने आया। 1962 में भारत-चीन युद्ध, 1965 भारत-पाकिस्तान युद्ध, और 1971 भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद कुछ भारतीय नागरिकों ने इन देशों की नागरिकता अपनाई और अपनी संपत्तियां भारत में ही छोड़ दीं। इन संपत्तियों को ही “शत्रु संपत्ति” के रूप में वर्गीकृत किया गया और विशेष कानूनी प्रावधानों के तहत इन्हें नियंत्रित किया गया।
- इन संपत्तियों पर संपत्तियों पर कड़ी निगरानी रखी जाती है ताकि इन्हें दुश्मन देशों के लिए या अनधिकृत व्यक्तियों द्वारा इस्तेमाल न किया जा सके।
- शत्रु संपत्ति अधिनियम, 1968: यह अधिनियम उन संपत्तियों के प्रबंधन और नियंत्रण के लिए बनाया गया था जो पाकिस्तान और चीन जैसे शत्रु देशों में गए लोगों द्वारा छोड़ दी गई थीं।
- भारत रक्षा अधिनियम, 1962: इस अधिनियम के तहत भारतीय सरकार को यह अधिकार मिला कि वह उन नागरिकों की संपत्तियां ज़ब्त कर सके जिन्होंने शत्रु देशों में पलायन किया था।
- ताशकंद समझौता, 1966: भारत-पाकिस्तान युद्ध 1965 के बाद ताशकंद समझौता हुआ, जिसमें युद्ध के दौरान कब्जे में लो गई संपत्तियों और उनके संभव वापसी पर चर्चा की गई थी।
- पाकिस्तानी संपत्तियां: वर्तमान आंकड़ों के अनुसार, भारत में 20 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में पाकिस्तान नागरिकों से जुड़ी 9,280 शत्रु संपत्तियां हैं।
- चीनी संपत्तियां: इसके अतिरिक्त, चीनी नागरिकों से जुड़ी 9,406 शत्रु संपत्तियां भारत के 6 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में फैली हुई हैं।
भारत में शत्रु संपत्ति का इतिहास
भारत में शत्रु संपत्ति का विचार देश की सुरक्षा और युद्ध के ऐतिहासिक संदर्भ से गहरे रूप से जुड़ा हुआ है। यह विचार विशेष रूप से 1962 में चीन के साथ युद्ध और 1965 और 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध के बाद उत्पन्न हुआ था।
- 1962 भारत-चीन युद्ध: भारत में शत्रु संपत्ति की शुरूआत 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद हुई। इस युद्ध के बाद, भारत में रह रहे चीनी नागरिकों की संपत्तियां राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरे के रूप में देखी गईं। इस खतरे से निपटने के लिए सरकार ने 1962 के भारत रक्षा अधिनियम के तहत इन संपत्तियों को जब्त करने के लिए कानून बनाए।
- 1965 और 1971 के युद्ध: 1965 और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्धों के दौरान, भारतीय सरकार ने इन कानूनों का विस्तार किया और पाकिस्तान के नागरिकों की संपत्तियों को भी शत्रु संपत्ति के रूप में जब्त कर लिया गया। जो लोग पाकिस्तान या चीन गए थे और अपनी संपत्तियां भारत में छोड़ आए थे, उनकी संपत्तियां सरकार ने जब्त कर ली और उन्हें शत्रु संपत्ति के रूप में वर्गीकृत किया।
- शत्रु संपत्ति अधिनियम, 1968: 1968 में शत्रु संपत्ति अधिनियम को लागू किया गया ताकि जब्त की गई संपत्तियों के प्रबंधन की प्रक्रिया को औपचारिक रूप दिया जा सके। इस अधिनियम के तहत, शत्रु संपत्तियों के प्रबंधन के लिए “भारत के शत्रु संपत्ति अभिरक्षक” (CEPI) को नियुक्त किया गया है, जिनमें उप अभिरक्षक और सहायक अभिरक्षक भी शामिल हैं।
- 2017 का संशोधन: 2017 में इस कानून में संशोधन किया गया, जिससे शत्रु संपत्तियों के स्वामित्व और उत्तराधिकार पर रोक लगाई जा सके। यह संशोधन इस उद्देश्य से लाया गया था कि इन संपत्तियों को अनधिकृत व्यक्तियों के पास जाने से रोका जा सके और सरकार को विशेष परिस्थितियों में इन्हें नष्ट करने या बेचने का अधिकार दिया जा सके।
शत्रु संपत्ति (संशोधन) अधिनियम, 2017
2017 में, शत्रु संपत्ति अधिनियम में महत्वपूर्ण संशोधन किए गए, जो 1968 के मौजूदा शत्रु संपत्ति अधिनियम को और अधिक सख्त और प्रभावी बनाने के लिए लाए गए थे। यह कदम भारत सरकार द्वारा शत्रु देशों, विशेष रूप से पाकिस्तान और चीन, में जाने वाले व्यक्तियों द्वारा छोड़ी गई संपत्तियों पर अधिक नियंत्रण रखने की दिशा में उठाया गया था।
- परिभाषाओं में बदलाव: संशोधन के तहत, “शत्रु व्यक्ति” और “शत्रु फर्म” की परिभाषा को व्यापक किया गया। अब इसके तहत उन व्यक्तियों या संस्थाओं के कानूनी उत्तराधिकारी भी शामिल किए गए हैं। चाहे उत्तराधिकारी भारतीय नागरिक हों या किसी गैर-शत्रु देश के नागरिक, उन्हें अब अपने पूर्वजों द्वारा छोड़ी गई शत्रु संपत्तियों पर स्वामित्व का दावा करने की अनुमति नहीं होगी। “शत्रु फर्म” में अब केवल मूल शत्रु फर्म ही नहीं, बल्कि उसकी उत्तराधिकारी फर्म भी शामिल की गई है।
- उत्तराधिकारियों और कानूनी वारिसों पर प्रभाव: जो कानूनी उत्तराधिकारी शत्रु देशों में गए थे, वे अब शत्रु संपत्तियों का दावा नहीं कर सकते। यह अधिनियम स्पष्ट करता है कि शत्रु व्यक्तियों और शत्रु फर्मों की संपत्तियां अब भी सरकार के नियंत्रण में रहेंगी, भले ही मूल शत्रु का दर्जा बदल जाए।
- सरकारी नियंत्रण और अभिरक्षीकरण: संशोधन के अनुसार, शत्रु संपत्ति के अभिरक्षक को इन संपत्तियों के प्रबंधन और निगरानी का अधिकार दिया गया है। अब अभिरक्षक को यह प्रमाण पत्र जारी करने का अधिकार होगा कि कोई संपत्ति शत्रु संपत्ति है, भले ही मूल मालिक का दर्जा मृत्यु या व्यापार बंद होने जैसी स्थितियों के कारण बदल गया हो।
- भारतीय नागरिकों के लिए छूट: संशोधित कानून में भारतीय नागरिकों के लिए स्पष्टता भी दी गई है। अब यह स्पष्ट कर दिया गया है कि शत्रु व्यक्तियों या फर्मों के कानूनी उत्तराधिकारी भारतीय नागरिक हों या नहीं, वे शत्रु संपत्तियों का दावा नहीं कर सकते।
शत्रु संपत्ति अधिनियम में संशोधन की आवश्यकता क्यों हुई?
- उत्तराधिकारियों द्वारा कानूनी दावा: शत्रु संपत्ति अधिनियम में संशोधन इसलिए किए गए ताकि उन व्यक्तियों के कानूनी उत्तराधिकारी, जिन्होंने युद्धों के बाद भारत छोड़ा था, शत्रु संपत्तियों पर अपना स्वामित्व होने का दावा न कर सकें।
- अभिरक्षक की शक्तियों पर न्यायालय के फैसले: कई न्यायालयी फैसलों ने शत्रु संपत्ति के अभिरक्षक के लिए इन संपत्तियों का प्रबंधन करना कठिन बना दिया था। एक महत्वपूर्ण मामला महमूदाबाद के राजा की संपत्ति का था, जिन्होंने विभाजन के बाद लंदन जाने का निर्णय लिया और हजरतगंज, सीतापुर और नैनीताल में संपत्तियां छोड़ दीं। सरकार ने इन संपत्तियों को शत्रु संपत्ति घोषित किया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इन संपत्तियों की बिक्री पर रोक लगा दी थी।
- सरकारी नियंत्रण पर प्रभाव: न्यायालय के विरोधाभासी फैसलों ने सरकार और अभिरक्षक के लिए शत्रु संपत्तियों पर नियंत्रण बनाए रखना मुश्किल बना दिया। इस कारण से इन संपत्तियों के प्रबंधन और नियंत्रण को स्पष्ट करने के लिए कानून में संशोधन की आवश्यकता महसूस की गई।
शत्रु संपत्ति प्राधिकरण की जिम्मेदारियां
भारत में शत्रु संपत्ति प्राधिकरण का मुख्य कार्य उन संपत्तियों का प्रबंधन करना है, जो उन व्यक्तियों द्वारा छोड़ी गई थीं, जिन्होंने शत्रु देशों, जैसे पाकिस्तान और चीन, में प्रवास किया।
- इस प्राधिकरण के अंतर्गत केंद्र सरकार शत्रु संपत्ति का अभिरक्षक (Custodian of Enemy Property for India – CEPI) नियुक्त करती है, जो इन संपत्तियों के प्रबंधन के लिए जिम्मेदार होता है।
- अधिनियम की धारा 2(a) के अनुसार, अभिरक्षक को शत्रु संपत्तियों से संबंधित सभी मामलों को देखने का अधिकार होता है, जिसमें उप-अभिरक्षक और सहायक अभिरक्षकों की नियुक्ति भी शामिल है।
- धारा 11 के तहत, अभिरक्षक को दीवानी न्यायालय के रूप में कार्य करने का अधिकार प्राप्त है। इसका मतलब है कि यदि शत्रु संपत्तियों से संबंधित कोई कानूनी विवाद उत्पन्न होता है, तो अभिरक्षक उसे सुलझाने के लिए जिम्मेदार होता है, जैसा कि 1908 के सिविल प्रक्रिया संहिता में निर्धारित है।
- 1968 का शत्रु संपत्ति अधिनियम, जिसे 2017 में संशोधित किया गया, ने अभिरक्षक के कार्यालय को एक वैधानिक प्राधिकरण के रूप में मान्यता दी है। जो गृह मंत्रालय के अंतर्गत कार्य करता है।
- विशेष: यदि किसी व्यक्ति को अभिरक्षक द्वारा पारित आदेश से असंतोष होता है, तो धारा 18(c) के तहत वह उच्च न्यायालय में अपील कर सकता है। यह अपील आदेश प्राप्त करने की तिथि से 60 दिनों के भीतर दायर की जानी चाहिए। उच्च न्यायालय के पास यह विशेष अधिकार है कि वह अपील की अवधि को 60 दिनों तक बढ़ा सकता है, यदि अपीलकर्ता द्वारा उचित कारण प्रस्तुत किए जाते हैं।
भारत में संपत्ति से संबंधित अन्य महत्वपूर्ण कानून
भारत में संपत्ति से संबंधित कई कानून हैं जो संपत्ति के अधिकारों, लेन-देन और व्यवस्थाओं को नियंत्रित करते हैं। इन कानूनों का उद्देश्य संपत्ति के वैध हस्तांतरण, पारदर्शिता और अनुशासन सुनिश्चित करना है।
- संपत्ति स्थानांतरण अधिनियम, 1882: यह केंद्रीय कानून भारत में संपत्ति के हस्तांतरण को नियंत्रित करता है। यह स्वामित्व, बंधक, ऋण, विनिमय, उपहार और पट्टे जैसे पहलुओं को विस्तृत रूप से वर्णित करता है और संपत्ति लेन-देन के लिए कानूनी ढांचा प्रदान करता है।
- रियल एस्टेट (विनियमन और विकास) अधिनियम, 2016 (RERA): RERA का उद्देश्य रियल एस्टेट क्षेत्र में पारदर्शिता और जवाबदेही लाना है। यह रियल एस्टेट परियोजनाओं की पंजीकरण प्रक्रिया अनिवार्य करता है, परियोजना की समयसीमा और विशिष्टताओं का पालन सुनिश्चित करता है, और खरीदारों के लिए शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करता है।
- भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925: यह अधिनियम उत्तराधिकार और वसीयत के नियमों को निर्धारित करता है। यह संपत्ति के वितरण के लिए कानूनी ढांचा प्रदान करता है, विशेष रूप से जब कोई व्यक्ति मृत्यु के बाद अपनी संपत्ति का विभाजन करता है।
- किराया नियंत्रण अधिनियम: यह कानून मकान मालिक और किरायेदार के बीच संबंधों को नियंत्रित करता है। यह उचित किराए की प्रथाओं को सुनिश्चित करता है, किरायेदारों के निष्कासन से सुरक्षा प्रदान करता है, और संपत्ति मालिकों के हितों के साथ संतुलन बनाए रखता है।
- भारतीय स्टांप अधिनियम, 1899: यह अधिनियम संपत्ति लेन-देन से जुड़े दस्तावेजों पर स्टांप ड्यूटी के भुगतान और पंजीकरण को नियंत्रित करता है। यह सुनिश्चित करता है कि संपत्ति हस्तांतरण से संबंधित कानूनी दस्तावेज सही तरीके से प्रमाणित और कर योग्य हों।
यूपीएससी पिछले वर्षों के प्रश्न (PYQs) प्रश्न (2005): निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
इनमें से कौन से कथन सही हैं? प्रश्न (2021): भारत में संपत्ति के अधिकार की स्थिति क्या है? |
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