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भारत के रक्षा मंत्री ने तेजी से बदलते वैश्विक परिदृश्य में उत्पन्न नई सुरक्षा चुनौतियों का सामना करने के लिए देश में “अनुकूल रक्षा प्रणाली” (Adaptive Defense) विकसित करने पर जोर दिया।
मुख्य बिन्दु:
- ‘Adaptive Defense’ एक रणनीतिक दृष्टिकोण है, जिसमें सैन्य और रक्षा प्रणाली लगातार विकसित होती रहती है।
- इसका उद्देश्य केवल वर्तमान खतरों का जवाब देना नहीं है, बल्कि भविष्य में उत्पन्न होने वाली स्थितियों का पूर्वानुमान लगाकर, उनके लिए सक्रिय रूप से तैयारी करना है।
- इसमें अनुकूलन, नवाचार और विकास की मानसिकता को अपनाया जाता है, ताकि अप्रत्याशित और बदलती परिस्थितियों का प्रभावी ढंग से सामना किया जा सके।
- यह प्रणाली अधिक लचीलापन (flexibility) और तीव्रता (agility) सुनिश्चित करती है, जिससे सुरक्षा बल त्वरित रूप से किसी भी उभरते खतरे का सामना कर सकते हैं।
- ‘Adaptive Defense’ के तहत नई प्रौद्योगिकियों और रणनीतियों को लागू किया जा रहा है, जिससे रक्षा बलों की तत्परता और क्षमता में सुधार हो रहा है।
- इस पहल से भारत भविष्य के युद्धों और सुरक्षा खतरों के लिए बेहतर तरीके से तैयार हो सकेगा।
अनुकूल रक्षा प्रणाली (Adaptive Defense) क्या है?
अनुकूल रक्षा प्रणाली वह रणनीति है जो तेजी से बदलते सुरक्षा परिदृश्य और उभरती हुई खतरों का मुकाबला करने के लिए लचीला और प्रभावी तरीके से काम करती है। यह पारंपरिक रक्षा तरीकों से अलग है, क्योंकि यह न केवल वर्तमान खतरों का सामना करती है, बल्कि भविष्य में उत्पन्न होने वाली अनिश्चित और बदलती चुनौतियों के लिए भी तैयार रहती है।
मुख्य विशेषताएँ:
- लचीलापन (Flexibility): यह प्रणाली तत्काल बदलती स्थिति और चुनौतियों के आधार पर अपने ढांचे और रणनीतियों में बदलाव कर सकती है।
- परिस्थितिजन्य जागरूकता (Situational Awareness): यह प्रणाली गतिशील सुरक्षा परिदृश्य को समझने और उस पर सही समय पर प्रतिक्रिया करने की क्षमता प्रदान करती है, ताकि किसी भी प्रकार के खतरे का तुरंत पता चल सके और उसे नष्ट किया जा सके।
- उभरती प्रौद्योगिकियाँ (Emerging Technologies): अनुकूल रक्षा प्रणाली नई तकनीकों का उपयोग करती है, जैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, साइबर सुरक्षा, और स्वचालित हथियार प्रणालियाँ, ताकि भविष्य के खतरों से निपटा जा सके।
- शीघ्रता से उबरने की क्षमता (Resilience): बदलती परिस्थितियों के अनुसार त्वरित रूप से उबरने और अनुकूलन करने की क्षमता, जिससे देश की सुरक्षा को मजबूती मिलती है।
- सामान्य स्थिति के मुकाबले तेज प्रतिक्रिया (Faster Response): यह प्रणाली संकट के समय त्वरित और प्रभावी प्रतिक्रियाएँ सुनिश्चित करती है, जिससे खतरे को जल्दी और प्रभावी तरीके से नष्ट किया जा सकता है।
- मल्टी-डोमेन संचालन (Multi-domain Operations): इसमें विभिन्न क्षेत्रों जैसे साइबर, अंतरिक्ष, जल, और भूमि में एक साथ संचालन की क्षमता होती है, जिससे इसे व्यापक सुरक्षा प्रदान की जाती है।
दुनिया का ड्रोन हब बनने का लक्ष्य
- सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा के खिलाफ सूचना युद्ध (information warfare) के खतरे का मुकाबला करने के लिए अनुकूल रक्षा रणनीतियों को लागू करने के लिए दृढ़ संकल्पित है।
- सरकार ने साइबरस्पेस और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) में उभरती प्रौद्योगिकियों पर काम करने वाले अग्रणी देशों में भारत को शामिल करने की प्रतिबद्धता जताई है।
- भारत के पास रक्षा क्षेत्र में एआई के वैश्विक नवाचारों का सामना करने की क्षमता और संसाधन हैं, और यह वृहद आकार और संभावनाओं वाले देश के रूप में तैयार है।
- भारत का लक्ष्य दुनिया का ड्रोन हब बनना है, और इस दिशा में कई पहल की जा रही हैं।
- इससे भारतीय अर्थव्यवस्था को फायदा होगा और ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ कार्यक्रमों में महत्वपूर्ण योगदान मिलेगा।
- इस अवसर पर, डीजी, एमपी-आईडीएसए अंबेसडर सुजान आर चिनॉय, वायु सेना के उप-प्रमुख एयर मार्शल एसपी धारकर, नागरिक और सैन्य अधिकारी तथा देश और विदेश से प्रतिष्ठित प्रतिभागी उपस्थित थे।
क्यूं भारत इस प्रणाली को अपनाना चाहता है?
भारत को वर्तमान समय में नई सुरक्षा चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिनका प्रभाव सैन्य रणनीतियों और राष्ट्रीय सुरक्षा पर पड़ सकता है। इसके मद्देनज़र, ‘अडप्टिव डिफेंस’ (Adaptive Defense) प्रणाली को अपनाने की आवश्यकता महसूस हो रही है। कुछ मुख्य कारण:
- उभरती हुई प्रौद्योगिकियाँ
- कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI): सैन्य तकनीक में AI का उपयोग हथियारों की नई प्रजातियाँ और खतरे उत्पन्न कर सकता है, जिससे भारत को समय रहते इनसे निपटने के लिए तैयारी करनी होगी।
- सिंथेटिक बायोलॉजी: जैविक हथियारों या नए जीवन रूपों के विकास की संभावना को देखते हुए, भारत को अपने रक्षा ढाँचे को इन खतरों से निपटने के लिए तैयार करना है।
- साइबर सुरक्षा: साइबर हमले प्रमुख सैन्य और सुरक्षा प्रणालियों को कमजोर कर सकते हैं, जिससे रक्षा तंत्र को और भी मजबूत बनाने की आवश्यकता है।
- अंतरिक्ष युद्ध: अंतरिक्ष में सैन्यीकरण और उपग्रह प्रणालियाँ संचार, नेविगेशन और मौसम प्रणालियों जैसे महत्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे को प्रभावित कर सकती हैं, जिससे इनके सुरक्षा उपायों को मजबूत करना अनिवार्य है।
- आतंकवाद और ड्रोन खतरे: ड्रोन का उपयोग पारंपरिक रक्षा प्रणालियों को चुनौती देने के लिए किया जा सकता है, जिससे भारत को इसके खिलाफ रक्षा तंत्र विकसित करना आवश्यक है।
- भू-राजनीतिक तनाव और वैश्विक अस्थिरता: चीन-अमेरिका तनाव और यूक्रेन युद्ध जैसे भू-राजनीतिक संघर्षों से क्षेत्रीय स्थिरता प्रभावित हो सकती है, जिससे भारत को अपनी रक्षा रणनीतियों में बदलाव करने की आवश्यकता है।
- पर्यावरण सुरक्षा: बढ़ते तापमान, समुद्र के जल स्तर में परिवर्तन और चरम मौसमी घटनाएँ नई सुरक्षा चुनौतियाँ उत्पन्न कर सकती हैं, जैसे जनसंख्या विस्थापन और संसाधन आधारित संघर्ष।
अनुकूल रक्षा प्रणाली के लिए सरकारी पहल:
- आत्मनिर्भरता को बढ़ावा: मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत अभियान के माध्यम से भारत की रक्षा क्षमताओं को मजबूत करना।
- ड्रोन हब बनने का लक्ष्य: ड्रोन उद्योग को समर्थन देना और वैश्विक ड्रोन केंद्र बनना।
- संस्थागत सुदृढ़ीकरण की पहल: चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) पद का सृजन, सेवाओं के बीच संयुक्तता को बढ़ावा देना, और प्रशिक्षण पाठ्यक्रम में सुधार करना।
- iDEX योजना: रक्षा क्षेत्र में स्टार्टअप्स और नवाचार को प्रोत्साहित करना।
- सशस्त्र बलों में समन्वय: थल सेना, वायु सेना और नौसेना के बीच तालमेल और एकीकरण को बढ़ावा देना।
- स्वदेशीकरण को प्राथमिकता: रक्षा उत्पादों के स्वदेशीकरण को बढ़ावा देना।
- प्रौद्योगिकी विकास निधि: रक्षा क्षेत्र में नवाचार को बढ़ावा देने के लिए निधि प्रदान करना।
- एफडीआई को बढ़ावा देना: रक्षा क्षेत्र में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) को बढ़ाना।
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