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संदर्भ:
परमाणु दायित्व कानून में संशोधन: भारत ने न्यूक्लियर सेक्टर में अमेरिकी और फ्रांसीसी कंपनियों की भागीदारी बढ़ाने के लिए सिविल लायबिलिटी फॉर न्यूक्लियर डैमेज एक्ट, 2010 और एटॉमिक एनर्जी एक्ट, 1962 में संशोधन करने की योजना घोषित की है।
भारत के परमाणु दायित्व कानून में संशोधन के कारण:
- विदेशी कंपनियों की चिंताओं का समाधान–
- CLNDA, 2010 में आपूर्तिकर्ताओं (suppliers) पर भारी जिम्मेदारी, जिससे निवेश हतोत्साहित हुआ।
- अंतरराष्ट्रीय मानकों (CSC) में मुख्य रूप से संचालकों (operators) को उत्तरदायी ठहराया जाता है।
- भोपाल गैस त्रासदी (1984) और फुकुशिमा दुर्घटना (2011) के कारण भारत ने कड़े नियम बनाए।
- अमेरिकी और फ्रांसीसी कंपनियां इन सख्त नियमों को वित्तीय जोखिम मानती हैं।
- भारत की परमाणु ऊर्जा क्षमता का विस्तार–
- वर्तमान क्षमता: 6,780 मेगावाट (22 रिएक्टर), केवल रूस की रोसाटॉम विदेशी ऑपरेटर।
- 2025 के बजट में ₹20,000 करोड़ परमाणु ऊर्जा के लिए आवंटित।
- लक्ष्य: 2047 तक 100 GW परमाणु ऊर्जा उत्पादन।
- SMRs (छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर) विकसित करने की योजना – 2033 तक 5 इकाइयां।
- अमेरिका और फ्रांस के साथ रणनीतिक साझेदारी मजबूत करना–
- भारत–अमेरिका परमाणु समझौता (2008) उत्तरदायित्व मुद्दों के कारण रुका हुआ।
- फ्रांस की EDF कंपनी का जैतापुर प्रोजेक्ट वर्षों से अटका हुआ।
- पीएम मोदी की वॉशिंगटन और पेरिस यात्राओं का लक्ष्य – परमाणु निवेश में आ रही रुकावटें हटाना।
- न्यायिक दायित्व (सिविल लायबिलिटी) परमाणु क्षति अधिनियम, 2010 (CLNDA):
- 2010 में अधिनियमित, यह कानून परमाणु दुर्घटनाओं के पीड़ितों को त्वरित मुआवजा प्रदान करने के लिए बनाया गया।
- परमाणु संयंत्र ऑपरेटर की कड़ी और दोष-रहित (Strict & No-Fault) जिम्मेदारी तय की गई है, यानी गलती चाहे किसी की भी हो, ऑपरेटर उत्तरदायी रहेगा।
प्रतिगमन का अधिकार (Right to Recourse): ऑपरेटर मुआवजा देने के बाद निम्नलिखित स्थितियों में आपूर्तिकर्ता (Supplier) पर कानूनी कार्रवाई कर सकता है:
- यदि आपूर्तिकर्ता या उसके कर्मचारी द्वारा दोषपूर्ण उपकरण, सामग्री या निम्न-स्तरीय सेवाएं प्रदान की गई हों।
- यदि किसी व्यक्ति द्वारा जानबूझकर किए गए कार्य से परमाणु क्षति हुई हो।
वित्तीय सुरक्षा (Financial Security):
- ऑपरेटर को अधिकतम ₹1,500 करोड़ तक की परमाणु क्षति का बीमा या अन्य वित्तीय सुरक्षा रखनी होगी।
- यदि दावा ₹1,500 करोड़ से अधिक होता है, तो केंद्र सरकार शेष राशि वहन करेगी।
- सरकार की अधिकतम देनदारी 300 मिलियन SDRs (लगभग ₹2,100 – ₹2,300 करोड़) होगी।
CLNDA में संशोधन की चुनौतियाँ:
- घरेलू राजनीतिक विरोध–
- 2010 का CLNDA कड़े सार्वजनिक और संसदीय बहस के बाद पारित हुआ, जिसमें विदेशी कंपनियों की जवाबदेही सुनिश्चित की गई थी।
- आपूर्तिकर्ताओं की जिम्मेदारी कम करने वाले संशोधनविपक्षी दलों और नागरिक संगठनों के विरोध का सामना कर सकते हैं।
- कानूनी और नियामक अनिश्चितता–
- विशेषज्ञ वैश्विक मानकों के अनुरूप CLNDA में बदलाव का समर्थन करते हैं, लेकिन संशोधनों की संरचना पर संदेह है।
- विदेश मंत्रालयने संशोधनों के विवरण साझा करने से इनकार कर दिया है।
- निवेशकों का विश्वास और बीमा संबंधी समस्याएँ–
- 2019 में ₹1,500 करोड़ का बीमा पूलबनाया गया, लेकिन यह बड़े निवेशकों को आकर्षित नहीं कर पाया।
- संशोधन वैश्विक कंपनियों और भारतीय संचालकों को उचित कानूनी सुरक्षा और मुआवजा ढांचा प्रदान करने चाहिए।