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संदर्भ:
हालिया अध्ययन में खुलासा हुआ है कि अरुणाचल प्रदेश के पूर्वी हिमालय में 32 वर्षों (1988-2020) के दौरान 110 ग्लेशियर गायब हो चुके हैं। यह ग्लेशियरों के तेज़ी से पिघलने को दर्शाता है, जो क्षेत्र की जल प्रणाली और जलवायु पर गंभीर प्रभाव डाल सकता है।
अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष:
- शोध और तकनीकी उपयोग: यह अध्ययन नागालैंड विश्वविद्यालय और कॉटन विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया था, जिसमें रिमोट सेंसिंग और GIS तकनीकी का उपयोग करके ग्लेशियर की सीमाओं का पता लगाया गया।
- ग्लेशियर की संख्या में कमी: अरुणाचल प्रदेश में अध्ययन के दौरान ग्लेशियरों की संख्या 756 से घटकर 646 हो गई।
- ग्लेशियर कवर में कमी: कुल ग्लेशियर क्षेत्र 23 वर्ग किमी से घटकर 309.85 वर्ग किमी हो गया, जो 47% से अधिक की कमी को दर्शाता है।
- ग्लेशियरों का स्थान और स्थिति: अधिकांश ग्लेशियर 4,500–4,800 मीटर की ऊंचाई पर स्थित हैं, जो उत्तर की दिशा में हैं और 15°–35° के ढलान पर स्थित हैं।
- ग्लेशियर के नुकसान के परिणाम: इस तेजी से हो रहे ग्लेशियर नुकसान ने बेडरॉक को उजागर किया है और ग्लेशियर झीलों का निर्माण किया है, जो ग्लेशियर लेक आउटबर्स्ट फ्लड्स (GLOFs) के जोखिम को बढ़ा रहे हैं।
ग्लेशियर की पीछे हटने की प्रक्रिया (Glacial Retreat):
ग्लेशियर की पीछे हटना उस प्रक्रिया को कहते हैं, जिसमें ग्लेशियरों का आकार घटता है क्योंकि उनकी बर्फ तेजी से पिघलने लगती है, जबकि नई बर्फ की मात्रा कम होती है। यह वैश्विक जलवायु परिवर्तन का एक प्रमुख संकेतक है और यह विशेष रूप से हिमालय जैसे उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्रों में चिंताजनक दर पर हो रहा है।
ग्लेशियर की पीछे हटने के कारण:
- जलवायु परिवर्तन (Climate Change): वैश्विक तापमान में वृद्धि के कारण बर्फ का पिघलना बढ़ गया है, जो बर्फ की जमावट से अधिक है।
- वृष्टि के पैटर्न में परिवर्तन (Changes in Precipitation Patterns): असामान्य बर्फबारी और कम सर्दी वृष्टि से ग्लेशियरों का विकास धीमा हो जाता है।
- ब्लैक कार्बन का जमाव (Black Carbon Deposition): मानवीय गतिविधियों से प्रदूषक ग्लेशियरों पर जमते हैं, जो अधिक गर्मी को अवशोषित करते हैं और पिघलने की प्रक्रिया को तेज करते हैं।
- भौतिक कारक (Geological Factors): ढलान, ऊंचाई, और चट्टानों के प्रकार जैसे भौगोलिक कारक ग्लेशियरों के गर्म होने पर उनके प्रतिक्रिया को प्रभावित करते हैं।
ग्लेशियर की पीछे हटने का प्रभाव:
- ताजे पानी का संकट (Freshwater Crisis): पीछे हटते हुए ग्लेशियर पानी की उपलब्धता और वितरण को गंभीर रूप से प्रभावित करेंगे, जिससे कृषि और पीने के पानी की आपूर्ति पर प्रतिकूल असर पड़ेगा।
- GLOF (ग्लेशियर झीलों से बाढ़) का बढ़ता जोखिम (Increased GLOF Risk): ग्लेशियरों की झीलों का निर्माण प्राकृतिक बाढ़ों के खतरे को बढ़ाता है। उदाहरण के लिए, 2023 सिक्किम आपदा में कम से कम 55 लोगों की मौत हुई और एक 1,200 MW हाइड्रोपावर परियोजना को नष्ट कर दिया।
- इकोसिस्टम में व्यवधान (Ecosystem Disruptions): तापमान और वृष्टि पैटर्न में बदलाव से इकोसिस्टम अस्थिर हो सकते हैं, जिससे जैव विविधता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।