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बिरसा मुंडा जयंती

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15 नवम्बर को हर साल बिरसा मुंडा जयंती मनाई जाती है, इस बार 150वीं जयंती धूमधाम से मनाई जा रही है।

बिरसा मुंडा जयंती:

यह दिन सम्मानित जनजातीय नेता और स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा की जयंती के रूप में मनाया जाता है। भारत के प्रधानमंत्री ने बिरसा मुंडा की याद में एक स्मारक सिक्का और डाक टिकट जारी किया, जो उनकी अमिट विरासत को सम्मानित करता है।

जातीय गौरव दिवस 2024 की मुख्य विशेषताएँ:

PM-JANMAN (प्रधानमंत्री जनजाति आदिवासी न्याय महाअभियान): प्रधानमंत्री ने इस अभियान के तहत 11,000 घरों का उद्घाटन किया।

स्वास्थ्य सेवा में सुधार: दूरदराज के आदिवासी क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की पहुँच में सुधार के लिए 23 मोबाइल मेडिकल यूनिट्स (MMUs) शुरू की गईं।

DAJGUA (धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान): इस अभियान के तहत 30 अतिरिक्त एमएमयू का उद्घाटन किया गया।

जनजातीय उद्यमिता और शिक्षा: प्रधानमंत्री ने जनजातीय छात्रों के लिए 300 वन धन विकास केंद्र (VDVKs) और 10 एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय (EMRS) का उद्घाटन किया, साथ ही 25 नए EMRS की आधारशिला रखी।

सांस्कृतिक संरक्षण: मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा और जबलपुर में दो जनजातीय स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालयों का उद्घाटन किया गया जम्मू और कश्मीर के श्रीनगर और सिक्किम के गंगटोक में दो जनजातीय अनुसंधान संस्थानों का उद्घाटन किया गया।

  • इस दिन का उद्देश्य जनजातीय समुदायों की संस्कृति, उनकी सामाजिक स्थिति और उनके योगदान को बढ़ावा देना और सम्मानित करना है।

जनजातीय गौरव दिवस:

जनजातीय गौरव दिवस 15 नवम्बर को मनाया जाता है, जो स्वतंत्रता सेनानी और जनजातीय समाज के महान नेता बिरसा मुंडा की जयंती के रूप में मनाया जाता है। यह दिन जनजातीय समुदायों के संघर्ष, संस्कृति और उनके योगदान को सम्मानित करने के लिए समर्पित है।

बिरसा मुंडा ने ब्रिटिश शासन और जमींदारी प्रथा के खिलाफ संघर्ष किया और जनजातीय अधिकारों के लिए आवाज उठाई। उनके योगदान को याद करते हुए इस दिन को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाया जाता है, ताकि जनजातीय समुदाय के महत्व को समझा जा सके और उनके संघर्ष को सम्मानित किया जा सके।

जनजातीय गौरव दिवस पहली बार वर्ष 2021 में मनाया गया, जो भारत की स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में मनाए जा रहे आज़ादी का अमृत महोत्सव का हिस्सा था। यह दिवस आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान को मान्यता देने के लिए स्थापित किया गया था।

  • संथाल, तमाड़, भील, खासी, और मिज़ो जैसे जनजातीय समुदायों ने बिरसा मुंडा के उलगुलान (क्रांति) सहित कई उपनिवेश-विरोधी आंदोलनों का नेतृत्व किया।
  • इन आंदोलनों में जनजातीय समुदायों ने अपार साहस और बलिदान का परिचय दिया, जो उनके संघर्ष की अमिट धरोहर है।

बिरसा मुंडा: एक महान स्वतंत्रता सेनानी

बिरसा मुंडा (15 नवंबर 1875 – 9 जून 1900) एक प्रमुख आदिवासी नेता और मुंडा जनजाति के महान नायक थे, जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्हें ‘धरती आबा’ के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ मुंडा विद्रोह का नेतृत्व किया और आदिवासियों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया।

प्रारंभिक जीवन:

  • जन्म: 15 नवंबर 1875, उलिहातु, राँची जिला (अब झारखंड)।
  • माता-पिता: सुगना मुंडा (पिता), करमी मुंडा (माँ)।
  • शिक्षा: प्रारंभिक शिक्षा साल्गा गाँव और चाईबासा में हुई। मिशनरी स्कूल में पढ़ाई के दौरान बिरसा ने आदिवासियों की धार्मिक मान्यताओं पर आधारित विचारधारा अपनाई।

आदिवासी विद्रोह के नायक:

  • 19वीं शताब्दी के अंत में अंग्रेजों ने आदिवासियों की ज़मीन और संसाधनों पर कब्ज़ा करना शुरू किया।
  • बिरसा मुंडा ने 1895 में आदिवासियों के हित में आंदोलन शुरू किया, जो एक संगठित विद्रोह ‘उलगुलान’ में बदल गया।
  • उन्होंने आदिवासी अस्मिता, संस्कृति और स्वायत्तता को बचाने के लिए संघर्ष किया।

आदिवासी पुनरुत्थान:

  • बिरसा मुंडा ने आदिवासियों को मिशनरी शिक्षा से बचने और अपने पारंपरिक धर्म एवं संस्कृति से जुड़े रहने के लिए प्रेरित किया।
  • आदिवासियों के बीच उन्होंने स्वास्थ्य संबंधी उपायों, जैसे चेचक और हैजा से बचाव के उपाय सिखाए।

विद्रोह और संघर्ष:

  • बिरसा मुंडा ने आदिवासी समुदाय को संगठित करके अंग्रेजों और मिशनरी के खिलाफ बड़ा विद्रोह शुरू किया।
  • 3 मार्च 1900 को ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा उन्हें गिरफ्तार किया गया और 9 जून 1900 को राँची कारागार में उनकी रहस्यमय मृत्यु हो गई।
  • कहा जाता है कि उन्हें ज़हर देकर मारा गया, क्योंकि अंग्रेजों को डर था कि वह छूटने पर बड़े विद्रोह का कारण बन सकते थे।

स्मृति और सम्मान:

  • बिरसा मुंडा की समाधि राँची में स्थित है, और उनकी याद में कई स्मारक बनाए गए हैं।
  • 15 नवंबर को बिरसा मुंडा की जयंती को ‘जनजातीय गौरव दिवस’ के रूप में मनाया जाता है, जिसे भारत सरकार ने 2021 में घोषित किया था।

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