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जाति आधारित जनगणना

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संदर्भ:

जाति आधारित जनगणना: भारत में जाति आधारित जनगणना वंचित वर्गों, खासकर पिछड़े वर्गों की स्थिति समझने और उनके पिछड़ेपन को दूर करने के लिए जरूरी है। बिहार की 2023 की जाति आधारित जनगणना इस दिशा में एक अहम पहल है।

भारत में जनगणना:

जनगणना के बारे में:

  • जनगणना से मानव संसाधन, जनसांख्यिकी, संस्कृति और आर्थिक संरचना से संबंधित बुनियादी आँकड़े प्राप्त होते हैं।
  • भारत में पहली जनगणना 1872 में असमयिक (non-synchronous) रूप से की गई थी।
  • पहली समकालिक (synchronous) जनगणना 1881 में ब्रिटिश शासन के दौरान डब्ल्यू.सी. प्लॉडेन (Census Commissioner of India) के नेतृत्व में हुई।
  • हर 10 साल में जनगणना कराने की जिम्मेदारी भारत के रजिस्ट्रार जनरल और जनगणना आयुक्त कार्यालय की होती है, जो गृह मंत्रालय के अंतर्गत आता है।

भारत में जनगणना का कानूनी/संवैधानिक आधार:

  1. संवैधानिक प्रावधान: जनगणना को भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची के संघ सूची (Union List) की एंट्री 69 में सूचीबद्ध किया गया है।
  2. कानूनी प्रावधान: जनगणना Census Act, 1948 के तहत आयोजित की जाती है।

जाति आधारित जनगणना (Caste Census):

  1. ब्रिटिश कालीन जनगणना (1881-1931): ब्रिटिश शासन के दौरान जनगणना में जातियों की गिनती की जाती थी।
  2. स्वतंत्रता के बाद जनगणना (1951-2023):
    • 1951 की जनगणना से जातियों की गणना बंद कर दी गई, सिवाय अनुसूचित जातियों (SCs) और अनुसूचित जनजातियों (STs) के।
    • 1961 में केंद्र सरकार ने राज्यों को राज्य-विशिष्ट OBC सूचियों के लिए अपने सर्वेक्षण करने की सिफारिश की।
    • Census Union विषय होने के बावजूद, Statistics Act, 2008 के तहत राज्य और स्थानीय निकाय आवश्यक आँकड़े एकत्र कर सकते हैं।
      • उदाहरण: कर्नाटक (2015) और बिहार (2023) द्वारा OBC सर्वेक्षण।

जाति जनगणना की आवश्यकता:

  1. सामाजिक आवश्यकता:
    • भारत में जाति एक प्रमुख सामाजिक संरचना है, जो विवाह, निवास, और राजनीतिक चयन को प्रभावित करती है।
    • 2011-12 तक केवल 5% विवाह ही अंतरजातीय थे।
    • चुनाव और मंत्रिमंडल गठन में जाति महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
  2. कानूनी आवश्यकता:
    • संविधान में वर्ग का उल्लेख है, लेकिन जाति को पिछड़े वर्गों की पहचान और आरक्षण नीतियों के लिए अहम माना गया है।
    • जाति डेटा से सामाजिक न्याय नीतियों को बेहतर तरीके से लागू किया जा सकता है।
  3. प्रशासनिक आवश्यकता:
    • जाति डेटा से:
    • गलत जातियों को शामिल/बाहर करने में सुधार,
    • आरक्षित वर्गों में लाभ की समान भागीदारी सुनिश्चित करना,
    • जातियों का उप-वर्गीकरण करना, और
    • क्रीमी लेयर की आय/धन सीमा तय करने में मदद मिलती है।
  4. नैतिक आवश्यकता: जाति डेटा के अभाव में उच्च जाति और प्रभावशाली OBC वर्गों ने राष्ट्रीय संसाधनों, आय और शक्ति पर अधिक नियंत्रण कर लिया है।

निष्कर्ष और विश्लेषण: बिहार जनगणना 2023 राज्य में गहरी सामाजिक-आर्थिक असमानताओं को उजागर करती है।

महत्त्व:

  • यह जनगणना जाति आधारित डेटा की आवश्यकता को सिद्ध करती है।
  • नीतियों को प्रभावी बनाने और संसाधनों के न्यायसंगत वितरण में इसकी अहम भूमिका हो सकती है।

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