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यूरोपीय परमाणु अनुसंधान संगठन, जिसे सामान्यतः CERN कहा जाता है, ने हाल ही में अपनी 70वीं वर्षगांठ मनाई। यह संगठन उच्च ऊर्जा कण भौतिकी में सहयोगात्मक अनुसंधान के लिए स्थापित किया गया था।
CERN के बारे में
- स्थापना: 1954 में, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यूरोप के पहले संयुक्त उद्यम के रूप में।
- स्थान: जिनेवा, स्विटजरलैंड के पास।
- सदस्यता: 23 सदस्य राज्य और 10 सहयोगी सदस्य राज्य। भारत CERN का एक सहयोगी सदस्य है।
- वैज्ञानिक चरित्र: CERN की परंपरा है कि इसका कार्य सैन्य आवश्यकताओं से मुक्त रहेगा।
मुख्य सफलताएँ:
- जेड बोसोन और डब्ल्यू बोसोन की खोज: ये कमजोर बल को समझने में महत्वपूर्ण हैं।
- वर्ल्ड वाइड वेब: इसका आविष्कार 1989 में ब्रिटिश वैज्ञानिक टिम बर्नर्स-ली द्वारा CERN में किया गया।
- एंटी-मैटर का अध्ययन: एंटीप्रोटोन डिसेलेरेटर की सहायता से ब्रह्मांड की उत्पत्ति के अध्ययन में सहायता मिलती है।
- हिग्स बोसोन कण: जिसे “गॉड पार्टिकल” के नाम से भी जाना जाता है, की खोज CERN के लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर (LHC) में की गई। हिग्स बोसोन हिग्स क्षेत्र से जुड़ा मूलभूत कण है, जो इलेक्ट्रॉनों जैसे अन्य कणों को द्रव्यमान प्रदान करता है।
- LHC: CERN का LHC दुनिया का सबसे बड़ा कण त्वरक है, जो प्रकाश की गति के करीब ऊर्जा पर प्रोटॉन या लेड आयनों को टकराता है।
भारत का योगदान:
- संस्थान: भारतीय भौतिक विज्ञानी टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (TIFR) जैसे संस्थानों के माध्यम से CERN के प्रयोगों में शामिल हैं, जैसे कि EL3 प्रयोग और LHC।
- नवीन त्वरक प्रौद्योगिकी (NAT): परमाणु ऊर्जा विभाग ने CERN के साथ सहयोग किया है।
- डब्ल्यूएलसीजी: भारत विश्वव्यापी एलएचसी कंप्यूटिंग ग्रिड (WLCG) के लिए दो टियर-2 केंद्र संचालित करता है।
निष्कर्ष: CERN ने विज्ञान के क्षेत्र में अनेक महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ हासिल की हैं, और इसकी 70वीं वर्षगांठ इस बात का प्रमाण है कि यह संगठन उच्च ऊर्जा कण भौतिकी में अनुसंधान का एक प्रमुख केंद्र बना हुआ है। भारत का योगदान भी इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण है, जो वैश्विक वैज्ञानिक समुदाय के साथ सहयोग में निरंतर वृद्धि को दर्शाता है।
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