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अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स के नियमन में चुनौतियाँ

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संदर्भ:

अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स: भारत में मोटापा और मधुमेह की बढ़ती दरों ने अल्ट्राप्रोसेस्ड फूड्स (UPFs) के सार्वजनिक स्वास्थ्य पर प्रभाव को लेकर गंभीर चिंताएँ पैदा कर दी हैं।

भारत में मोटापा और मधुमेह की समस्या:

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) के नवीनतम संस्करण के अनुसार, भारत में हर 4 में से 1 वयस्क या तो मोटापे का शिकार है या मधुमेह से पीड़ित है। अल्ट्राप्रोसेस्ड फूड्स (UPFs) इस स्वास्थ्य संकट में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं।

महत्वपूर्ण पहल (Key Initiatives):

  1. आर्थिक सर्वेक्षण 2025: अल्ट्राप्रोसेस्ड फूड्स (UPFs)पर ‘स्वास्थ्य कर (Health Tax)’ लगाने की सिफारिश की गई है।
  2. प्रधानमंत्री का आह्वान: मोटापे की समस्या से निपटने के लिए ठोस कदम उठाने की बात कही गई है।

अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स के नियमन में चुनौतियाँ:

  1. अस्पष्ट और अप्रभावी कानून (Ambiguous and Ineffective Laws):
    • उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 (Consumer Protection Act, 2019): इसमें पोषण संबंधी जानकारी के खुलासे पर स्पष्ट दिशानिर्देशों की कमी है।
    • FSSAI नियम (FSSAI Rules): उच्च वसा, चीनी और नमक (HFSS) वाले खाद्य पदार्थों या अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स (UPFs) की स्पष्ट परिभाषा नहीं है।
    • विभिन्न कानूनों में समन्वय की कमी (Lack of Harmonisation): कई कानून हैं, लेकिन उनके बीच कोई समन्वय नहीं है, जिससे कमजोर प्रवर्तन हो रहा है।
  2. नीतियों पर उद्योग का प्रभाव (Industry Influence on Policy):
    • FSSAI की आलोचना (Criticism of FSSAI):
      • इसके नियामक ढांचे को बड़े खाद्य निगमों के पक्ष में माना जाता है, जो सार्वजनिक स्वास्थ्य की अनदेखी करता है।
      • उद्योग प्रतिनिधियों का बैठक में दबदबा होता है, जबकि वैज्ञानिक विशेषज्ञों को नज़रअंदाज कर दिया जाता है।
    • इंडियन न्यूट्रिशन रेटिंग (INR) 2022 (Indian Nutrition Rating 2022):
      • ऑस्ट्रेलिया के असफल ‘हेल्थ स्टार’ सिस्टम की नकल पर आधारित है।
      • यह प्रणाली अस्वस्थ खाद्य पदार्थों को भी भ्रामक स्टार रेटिंग देने की अनुमति देती है।
    • ट्रैफिक लाइट प्रणाली की अनदेखी (Ignoring Traffic Light System): 2021 में प्रस्तावित ‘ट्रैफिक लाइट’ रंग-कोडेड चेतावनी प्रणाली को उद्योग के दबाव के कारण छोड़ दिया गया।
  3. फ्रंटऑफपैक लेबल (FOPL) लागू करने में देरी:
    • 2017 से अनुशंसाएँ (Recommendations since 2017): भारत में अब तक अनिवार्य चेतावनी लेबलिंग लागू नहीं हुई है।
    • भ्रामक विज्ञापन: चीनी, नमक या वसा की मात्रा को विज्ञापनों में खुलासा करने की कोई अनिवार्य आवश्यकता नहीं है।
    • बच्चों और युवाओं को निशाना बनाना: कोला ड्रिंक्स और प्रोसेस्ड फूड्स खुलेआम बिना स्पष्ट चेतावनी के बच्चों और युवाओं को आकर्षित कर रहे हैं।
    • 2025 का आर्थिक सर्वेक्षण: तत्काल सुधार की मांग की गई है, लेकिन कोई स्पष्ट रोडमैप नहीं है।
  4. वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं की अनदेखी:
    • चिली का उदाहरण (Example of Chile): आसानी से पहचाने जाने वाले हेक्सागोनल ‘हाई इन’ चेतावनी लेबल्स ने UPFs की खपत को 24% तक कम कर दिया।
    • सफल देशों के तरीके: अधिकांश देश फ्रंट-ऑफ-पैक लेबलिंग (FOPL) के लिए सितारों के बजाय स्पष्ट चेतावनी लेबल का उपयोग करते हैं।
  5. सार्वजनिक जागरूकता अभियानों की कमी: अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स के खतरों के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए बड़े स्तर पर अभियान नहीं चलाए जा रहे हैं।

FSSAI की पहलें:

  • India@75: Freedom from Trans-fats (2022) – ट्रांस-फैट खत्म करने का लक्ष्य।
  • Eat Right India अभियान – सुरक्षित, स्वस्थ और टिकाऊ भोजन को बढ़ावा।
  • भारतीय पोषण रेटिंग (INR) (2022) – स्टार रेटिंग प्रणाली, लेकिन उद्योग-हितैषी होने की आलोचना।
  • अनिवार्य फूड फोर्टिफिकेशन – नमक, तेल और गेहूं के आटे में पोषक तत्वों की पूर्ति।

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