Download Today Current Affairs PDF
संदर्भ:
अनुबंध खेती: भारत ने आयातक से जमे हुए फ्रेंच फ्राइज (FF) का प्रमुख निर्यातक बनने की यात्रा पूरी कर ली है। कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के माध्यम से निर्यात घरेलू खपत को पार कर गया है।
अनुबंध खेती क्या हैं?
अनुबंध खेती (कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग) एक समझौता है जिसमें किसान (उत्पादक) और खरीदार पहले से कृषि उत्पादों के उत्पादन और विपणन के लिए शर्तों पर सहमत होते हैं। इसमें आमतौर पर किसान को भुगतान की जाने वाली कीमत, उत्पाद की मात्रा और गुणवत्ता, और डिलीवरी की तारीख शामिल होती है। कुछ मामलों में उत्पादन की प्रक्रिया और आवश्यक इनपुट (बीज, खाद, तकनीकी सलाह) भी खरीदार द्वारा प्रदान किए जा सकते हैं।
अनुबंध खेती से किसानों के फायदे:
- वित्तीय समर्थन: इनपुट, सेवाएं और क्रेडिट की आसान उपलब्धता।
- उत्पादन और प्रबंधन कौशल में सुधार।
- सुरक्षित बाजार और नए बाजारों तक पहुंच।
- मूल्य से संबंधित जोखिमों में कमी।
- स्थिर आय और बेहतर योजना बनाने में मदद।
- नई तकनीकों का परिचय।
अनुबंध खेती से किसानों की चिंताएँ:
- लचीलापन की कमी: जब कीमतें बढ़ती हैं तो वैकल्पिक खरीदारों को बेचने की स्वतंत्रता का नुकसान।
- भुगतान में देरी और इनपुट की देर से डिलीवरी।
- उधारी से ऋण का जोखिम।
- पर्यावरण पर प्रभाव: केवल एक प्रकार की फसल उगाने से पर्यावरणीय जोखिम बढ़ते हैं।
- खरीदार और किसानों के बीच असमान सौदेबाजी शक्ति।
फ्रेंच फ्राइज सफलता:
परिचय: भारत ने फ्रेंच फ्राइज के मामले में एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है। पहले भारत इसका आयात करता था, लेकिन अब निर्यात कर रहा है। यह कांट्रैक्ट फार्मिंग और कृषि उद्योग के बेहतरीन सहयोग का उदाहरण है।
सफलता के प्रमुख कारण:
- विशेष प्रकार के आलू: इनोवेटर, अटलांटिक, और मार्कीज जैसी आलू की खास किस्में उगाई जाती हैं, जो फ्रेंच फ्राइज बनाने के लिए उपयुक्त हैं।
- कंपनियों और किसानों का सहयोग: मैककेन फूड्स, हाईफन फूड्स, और इस्कॉन बालाजी फूड्स जैसी कंपनियाँ किसानों के साथ मिलकर काम करती हैं, जिससे उच्च गुणवत्ता वाले आलू की निरंतर आपूर्ति बनी रहती है।
- किसानों और कंपनियों को लाभ:
- किसानों के लिए:
- निश्चित बाजार और स्थिर आय।
- आधुनिक खेती की तकनीकों का मार्गदर्शन।
- कंपनियों के लिए: लगातार अच्छी गुणवत्ता वाले आलू की उपलब्धता।
- किसानों के लिए:
- आर्थिक प्रभाव: भारत के कृषि निर्यात में वृद्धि हुई है और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती मिली है।
- गुजरात फ्रेंच फ्राइज उत्पादन का प्रमुख केंद्र बन गया है।
भारत में अनुबंध खेती का नियामक ढांचा:
- प्रारंभिक नियम: शुरुआत में कांट्रैक्ट फार्मिंग को भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 के तहत नियंत्रित किया गया था।
- एपीएमसी अधिनियम, 2003: मॉडल एपीएमसी अधिनियम, 2003 में कांट्रैक्ट फार्मिंग के लिए अनिवार्य पंजीकरण और विवाद निपटारे की व्यवस्था की गई। हालांकि, कमीशन एजेंटों के विरोध के कारण राज्यों ने इसे बढ़ावा देने में ज्यादा रुचि नहीं दिखाई।
- राष्ट्रीय किसान आयोग (2004): एम.एस. स्वामीनाथन आयोग ने कांट्रैक्ट फार्मिंग के लिए एक आचार संहिता तैयार करने की सिफारिश की।
- राष्ट्रीय किसान नीति, 2007: इस नीति ने कांट्रैक्ट फार्मिंग को प्रोत्साहित किया और एक आचार संहिता बनाने का वादा किया।
- मॉडल कांट्रैक्ट फार्मिंग अधिनियम, 2018: कृषि मंत्रालय ने फरवरी 2018 में एक ड्राफ्ट मॉडल अधिनियम जारी किया, जिसमें कांट्रैक्ट फार्मिंग के लिए एक नियामक ढांचा बनाने की बात की गई। राज्यों को इस आधार पर अपने कानून बनाने की अनुमति दी गई।
- मौजूदा स्थिति: वर्तमान में कुछ राज्यों में कांट्रैक्ट फार्मिंग के लिए कृषि उपज विपणन समिति (APMC) में पंजीकरण जरूरी है, जो अनुबंधों को दर्ज करने और विवाद सुलझाने का कार्य करती है।