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बाल यौन शोषण और दुर्व्यवहार (CSEAM) से संबंधित सामग्री को देखना, संग्रहीत करना अपराध: सुप्रीम कोर्ट

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हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास उच्च न्यायालय के 2024 के फैसले को पलट दिया, जिसमें यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012 और आईटी अधिनियम, 2000 के तहत संचारण के इरादे के बिना निजी डोमेन में CSEAM को रखने या देखने को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया था।

सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के मुख्य बिंदु:

  1. CSEAM का अपराधीकरण: बिना किसी वास्तविक संचरण के CSEAM को अपने पास रखना एक प्रकार का अपूर्ण अपराध है, जिसके लिए POCSO अधिनियम की धारा 15 के तहत दंडनीय प्रावधान है।
  2. आईटी एक्ट की धारा 67बी: बाल यौन शोषण के लिए दंड का प्रावधान करती है, जिसमें इलेक्ट्रॉनिक फॉर्म में बच्चों को यौन रूप से स्पष्ट रूप से चित्रित करने वाली सामग्री को प्रकाशित या प्रसारित करने पर दंड का प्रावधान है।
  3. अपूर्ण/अविकसित अपराध: किसी अन्य अपराध की तैयारी के लिए किए जाते हैं।

CSEAM का प्रमुख प्रभाव:

  • CSEAM को देखने से व्यक्ति असंवेदनशील हो जाता है, जिससे इसकी मांग बढ़ती है और निर्माण एवं वितरण में वृद्धि होती है।
  • इससे बच्चे के भावनात्मक, सामाजिक और मानसिक कल्याण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
  • बच्चे तीव्र सामाजिक कलंक और अलगाव का सामना करते हैं, और विश्वास संबंधी समस्याओं के कारण स्वस्थ रिश्ते बनाए रखना कठिन हो जाता है।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा संघ और न्यायालयों को दिए गए सुझाव:

  1. POCSO में संशोधन: बाल पोर्नोग्राफी के स्थान पर CSEAM को लाने के लिए।
  2. विशेषज्ञ समिति का गठन: स्वास्थ्य और यौन शिक्षा के लिए कार्यक्रम तैयार करने हेतु।
  3. सार्वजनिक अभियान: CSEAM की वास्तविकताओं और इसके परिणामों के बारे में जागरूकता बढ़ाने से इसकी व्यापकता को कम करने में मदद मिल सकती है।

POCSO अधिनियम, 2012

  • उद्देश्य: बच्चों के विरुद्ध यौन अपराधों से निपटना।
  • इसमें बालक (18 वर्ष से कम आयु का व्यक्ति) को परिभाषित किया गया है और निवारण के लिए बाल अनुकूल प्रक्रियाओं के साथ यौन दुर्व्यवहार के विभिन्न रूपों को रेखांकित किया गया है।
  • POCSO अधिनियम की धारा 15 बाल पोर्नोग्राफी को “साझा करने या प्रसारित करने के इरादे से” संग्रहीत करने पर दंड का प्रावधान करती है।
  • बाल पोर्नोग्राफी पर अंकुश लगाने के लिए 2019 में संशोधन किया गया, जिसमें दोषियों के खिलाफ सख्त कदम उठाने का प्रावधान किया गया।

यह निर्णय न केवल बच्चों के अधिकारों की रक्षा करता है, बल्कि समाज में जागरूकता बढ़ाने और सुरक्षा के नए मानक स्थापित करने में भी महत्वपूर्ण है।

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