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डीप ओशन मिशन: भारत सरकार ने समुद्र की गहराई में मानव को भेजने की योजना बनाई है। यह मिशन 2026 की शुरुआत में मानव अंतरिक्ष मिशन के साथ पूरा हो सकता है। इस मिशन के तहत भारत का लक्ष्य तीन लोगों को समुद्रतल से 6,000 मीटर नीचे भेजकर वहां के रहस्यों को जानना है।
डीप ओशन मिशन के बारे में:
- ब्लू इकोनॉमी को समर्थन: यह मिशन भारत सरकार की ब्लू इकोनॉमी पहल का समर्थन करने के लिए शुरू किया गया है।
- बहु–मंत्रालयीय और बहु–विषयक कार्यक्रम: यह मिशन भारतीय महासागर के गहरे समुद्र के जीवित और अजीवित संसाधनों को समझने के लिए उच्च-स्तरीय बहु-मंत्रालयीय और बहु-विषयक कार्यक्रम है।
- ब्लू इकोनॉमी का दर्जा हासिल करने में मदद: यह मिशन भारत के ब्लू इकोनॉमी का दर्जा प्राप्त करने के प्रयासों में सहायक होगा।
- नई तकनीकों का विकास: इस मिशन का उद्देश्य गहरे समुद्र से जीवित और अजीवित संसाधनों को प्राप्त करने के लिए तकनीकों का विकास करना है।
- नोडल मंत्रालय: इस मिशन को पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (MoES) द्वारा क्रियान्वित किया जाएगा।
- मिशन की लागत और समय: इस मिशन की अनुमानित लागत 5 वर्षों (2021-26) के लिए 4077 करोड़ रुपये है, जिसे चरणबद्ध तरीके से लागू किया जाएगा।
- मिशन के मुख्य घटक:
- गहरे समुद्र की खनन और मानवयुक्त पनडुब्बी तथा पानी के अंदर रोबोटिक्स के लिए तकनीक का विकास।
- महासागर जलवायु परिवर्तन परामर्श सेवाओं का विकास।
- गहरे समुद्र की जैव विविधता के अन्वेषण और संरक्षण के लिए तकनीकी नवाचार।
- गहरे समुद्र का सर्वेक्षण और अन्वेषण।
- महासागर से ऊर्जा और ताजा पानी प्राप्त करना।
- समुद्री जीव विज्ञान के लिए उन्नत समुद्री स्टेशन।
महत्वपूर्ण पहलू:
- ‘न्यू इंडिया 2030’ दस्तावेज़ में ब्लू इकोनॉमी को भारत की प्रगति के छठे मुख्य उद्देश्य के रूप में दर्शाया गया है।
- 2021-2030 को संयुक्त राष्ट्र द्वारा ‘महासागर विज्ञान का दशक’ घोषित किया गया है।
- डीप ओशन मिशन (DOM) प्रधानमंत्री के विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार सलाहकार परिषद (PMSTIAC) के तहत नौ मिशनों में से एक है।
- यह मिशन मूल्यवान संसाधनों, जैसे पॉलीमेटालिक नोड्यूल्स और पॉलीमेटालिक सल्फाइड्स, के सतत उपयोग के लिए महत्वपूर्ण है।
चुनौतियां:
- गहरे महासागर में उच्च दबाव: ऐसी परिस्थितियों में काम करने के लिए मजबूत धातुओं या टिकाऊ सामग्री से बने विशेष उपकरणों की आवश्यकता होती है।
- समुद्र तल पर लैंडिंग: महासागर की सतह बेहद नरम और कीचड़युक्त होने के कारण लैंडिंग एक चुनौतीपूर्ण कार्य है।
- ऊर्जा की आवश्यकता: खनिजों को सतह पर लाने के लिए बहुत अधिक ऊर्जा और शक्ति की आवश्यकता होती है।
- कम दृश्यता: गहराई में प्राकृतिक प्रकाश केवल कुछ मीटर तक ही पहुंच पाता है, जिससे कार्य कठिन हो जाता है।
पर्यावरणीय चिंताएं:
- पारिस्थितिकी तंत्र को खतरा: गहरे समुद्र का केवल एक छोटा हिस्सा ही खोजा गया है। पर्यावरणविदों को चिंता है कि खनन के कारण पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान हो सकता है, विशेषकर जब कोई पर्यावरणीय प्रोटोकॉल नहीं अपनाया गया हो।
- संबंधित नुकसान: खनन प्रक्रिया में शोर, कंपन, प्रकाश प्रदूषण, और ईंधन व रसायनों के रिसाव जैसे नुकसान हो सकते हैं।
- समुद्री जीवन को नुकसान: कीमती सामग्री निकालने के बाद, गाद और अवसाद को समुद्र में वापस डाल दिया जाता है। यह कोरल और स्पंज जैसे फिल्टर-फीडिंग जीवों को गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है।