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कानून और न्याय मंत्रालय ने भारतीय न्यायपालिका में सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) के बुनियादी ढांचे को उन्नत बनाने के उद्देश्य से ई-कोर्ट मिशन मोड परियोजना के क्रियान्वयन की घोषणा की। यह परियोजना न्यायिक प्रक्रियाओं को तेज, पारदर्शी और कुशल बनाने के लिए चरणबद्ध तरीके से न्याय विभाग और सुप्रीम कोर्ट की ई-कमेटी के सहयोग से लागू की जा रही है।
ई-कोर्ट मिशन मोड परियोजना के बारे में:
ई-कोर्ट परियोजना का उद्देश्य भारतीय न्यायपालिका को सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) के माध्यम से सशक्त बनाना है। यह परियोजना सुप्रीम कोर्ट की e-कमेटी द्वारा 2005 में प्रस्तुत “भारतीय न्यायपालिका में ICT के कार्यान्वयन के लिए राष्ट्रीय नीति और कार्य योजना” पर आधारित है।
मुख्य बिंदु:
- e-कमेटी: भारत सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के प्रस्ताव पर गठित एक निकाय, जो न्यायपालिका के डिजिटलीकरण और तकनीकी प्रबंधन में सुधार हेतु सलाह देती है।
- देशव्यापी परियोजना: यह पूरे देश के जिला न्यायालयों के लिए न्याय विभाग, कानून और न्याय मंत्रालय द्वारा वित्तपोषित और निगरानी की जाने वाली अखिल भारतीय परियोजना है।
लक्ष्य:
- नागरिकों को समयबद्ध और कुशल सेवाएं प्रदान करना।
- न्यायालयों में निर्णय सहायता प्रणाली विकसित और लागू करना।
- प्रक्रियाओं को स्वचालित कर जानकारी की पारदर्शिता सुनिश्चित करना।
- न्याय प्रक्रिया को सुलभ, किफायती, प्रभावी और पारदर्शी बनाना।
ई-कोर्ट परियोजना के चरण:
चरण I (2007-2015):
- न्यायालयों का बुनियादी कंप्यूटरीकरण।
- इंटरनेट कनेक्टिविटी की स्थापना।
- केस सूचना प्रणाली (CIS) का कार्यान्वयन।
चरण II (2015-2023):
- जिला और अधीनस्थ न्यायालयों का ICT सशक्तिकरण।
- वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग सुविधाओं की शुरुआत।
- नागरिक केंद्रित सेवाएं जैसे e-पेमेंट गेटवे और प्रमाणित ऑनलाइन दस्तावेज़ उपलब्ध कराना।
चरण III (2023-2027):
- डिजिटल और पेपरलेस न्यायालयों का विकास।
- पुराने रिकॉर्ड और लंबित मामलों का डिजिटलीकरण।
- अस्पतालों और जेलों तक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग का विस्तार।
- डेटा प्रबंधन के लिए क्लाउड कंप्यूटिंग आर्किटेक्चर पर जोर।
लाभ:
- प्रभावशीलता: न्यायिक प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करना, विलंब को कम करना, और केस प्रबंधन को बेहतर बनाना।
- पारदर्शिता: न्यायालय की जानकारी को सार्वजनिक रूप से सुलभ बनाकर पारदर्शिता और उत्तरदायित्व बढ़ाना।
- सुलभता: दूरस्थ क्षेत्रों और सीमित गतिशीलता वाले लोगों के लिए न्याय तक पहुंच को बेहतर बनाना।
- कम लागत: कागजी कार्रवाई और यात्रा से जुड़े खर्चों को कम करना।
- आधुनिकीकरण: भारतीय न्यायपालिका को वैश्विक मानकों के अनुरूप आधुनिक बनाना।
चुनौतियां:
- डिजिटल साक्षरता: न्यायाधीशों, वकीलों और न्यायालय कर्मचारियों सहित सभी हितधारकों में डिजिटल साक्षरता सुनिश्चित करना।
- डेटा सुरक्षा: साइबर खतरों से संवेदनशील न्यायालय डेटा की सुरक्षा।
- इन्फ्रास्ट्रक्चर की खामियां: विशेष रूप से दूरस्थ क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे से जुड़ी चुनौतियों का समाधान करना।