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भारत में महिला श्रम बल की भागीदारी एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गई है, खासकर अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की हालिया रिपोर्ट के बाद। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय महिलाओं पर देखभाल संबंधी अत्यधिक जिम्मेदारियां उनकी श्रम बल भागीदारी को बाधित कर रही हैं।
महिला श्रम बल भागीदारी की स्थिति:
- श्रम बल से बाहर महिलाएं: भारत में 53% महिलाएं कार्यबल से बाहर हैं, जबकि पुरुषों में यह दर मात्र 1.1% है। इस अंतर का मुख्य कारण महिलाओं द्वारा किए जाने वाले अवैतनिक देखभाल और घरेलू कार्य हैं।
- अवैतनिक घरेलू कार्य: भारत के आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) 2023-24 के अनुसार, 36.7% महिलाएं और 19.4% पुरुष अवैतनिक घरेलू कार्य में संलग्न हैं।
- घरेलू कार्यों में लैंगिक असमानताएं: राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) के समय उपयोग सर्वेक्षण 2019 के अनुसार, 81% भारतीय महिलाएं प्रतिदिन पांच घंटे से अधिक समय घरेलू गतिविधियों में बिताती हैं, जबकि पुरुषों की तुलना में यह आंकड़ा काफी अधिक है।
- देखभाल कार्यों में असमानता: देखभाल कार्यों में, 26.2% महिलाएं प्रतिदिन दो घंटे से अधिक समय देखभाल में बिताती हैं, जबकि केवल 12.4% पुरुष ऐसा करते हैं।
वैश्विक परिप्रेक्ष्य में देखभाल जिम्मेदारियों का प्रभाव:
- वैश्विक श्रम बल से बाहर महिलाएं: 2023 में वैश्विक स्तर पर 748 मिलियन लोग देखभाल कर्तव्यों के कारण श्रम बल से बाहर हैं, जिनमें से 708 मिलियन महिलाएं हैं।
- क्षेत्रीय अंतर: उत्तरी अफ्रीका, अरब राज्यों, और एशिया-प्रशांत क्षेत्र में देखभाल जिम्मेदारियों के कारण श्रम बल से बाहर महिलाओं की संख्या सबसे अधिक है। ईरान, मिस्र, जॉर्डन और भारत में भी देखभाल जिम्मेदारियों से बंधी महिलाओं की संख्या अधिक है।
- प्रेरक मॉडल: बेलारूस, बुल्गारिया, और स्वीडन जैसे देश प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा (ECCE) में निवेश करते हैं, जिससे महिला श्रम भागीदारी दर में वृद्धि होती है। इन देशों में महिलाओं के कार्यबल से बाहर होने की दर 10% से भी कम है।
प्रमुख बाधाएं:
- शैक्षणिक योग्यता में कमी: महिलाओं की शिक्षा के स्तर में अंतर उनकी रोजगार संभावनाओं को सीमित करता है। शिक्षा तक सीमित पहुंच, विशेषकर ग्रामीण और पिछड़े इलाकों में, महिलाओं को कुशल श्रम बल में शामिल होने से रोकती है।
- सीमित रोजगार के अवसर: महिलाओं के लिए रोजगार के अवसर सीमित हैं, विशेषकर उन क्षेत्रों में जहां पारंपरिक भूमिका की अपेक्षा अधिक होती है। कई उद्योगों और क्षेत्रों में महिलाओं के लिए काम का अभाव उनकी श्रम भागीदारी में बाधा उत्पन्न करता है।
- बुनियादी ढांचे की अपर्याप्तता: महिलाओं के लिए सुरक्षित कार्यस्थल, परिवहन सुविधाओं की कमी, और कार्यस्थलों पर बच्चा देखभाल सुविधाओं का अभाव भी महिलाओं की कार्यबल में भागीदारी को सीमित करता है।
- सांस्कृतिक और सामाजिक मानदंड: सांस्कृतिक रूप से महिलाओं पर देखभाल और घरेलू कार्यों की जिम्मेदारी होती है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में, जिससे उन्हें श्रम बाजार में स्वतंत्र रूप से प्रवेश करने में बाधा आती है।
आगे का रास्ता:
- देखभाल अर्थव्यवस्था में निवेश: आईएलओ की सिफारिशों के अनुसार, प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा (ECCE) में निवेश से महिलाओं की देखभाल जिम्मेदारियों में कमी आएगी। इससे महिलाएं कार्यबल में समय और ऊर्जा दे पाएंगी, जिससे उनकी भागीदारी बढ़ेगी।
- महिलाओं के लिए शिक्षा और कौशल विकास: महिलाओं को विशेष रूप से रोजगार योग्य बनाने के लिए शिक्षा और कौशल विकास के क्षेत्र में निवेश जरूरी है। इसके लिए महिलाओं को व्यावसायिक शिक्षा, तकनीकी प्रशिक्षण और डिजिटल कौशल में सक्षम बनाना आवश्यक है।
- सुरक्षित कार्यस्थल और आवश्यक बुनियादी ढांचे का विकास: महिलाओं के लिए कार्यस्थलों पर सुरक्षित वातावरण और बच्चा देखभाल जैसी सुविधाएं उपलब्ध कराना आवश्यक है। इससे महिलाओं को अपने पेशेवर जीवन को प्राथमिकता देने में सहूलियत होगी।
- लचीले कार्य घंटे और दूरस्थ कार्य विकल्प: कार्यबल में महिला भागीदारी बढ़ाने के लिए लचीले कार्य घंटे और दूरस्थ कार्य के विकल्प प्रस्तुत किए जा सकते हैं, जिससे महिलाएं घरेलू जिम्मेदारियों और पेशेवर जीवन के बीच संतुलन बना सकें।
- सांस्कृतिक बदलाव को प्रोत्साहन: महिलाओं की देखभाल संबंधी भूमिकाओं के प्रति समाज के नजरिए को बदलना आवश्यक है। इसके लिए जागरूकता कार्यक्रम और सामुदायिक पहल शुरू की जा सकती हैं, जो महिलाओं की आर्थिक भागीदारी को समान रूप से महत्वपूर्ण मानें।
निष्कर्ष: देखभाल अर्थव्यवस्था में निवेश, महिलाओं के लिए शिक्षा और कौशल विकास, और बुनियादी ढांचे में सुधार के माध्यम से भारत में महिला श्रम बल में भागीदारी को प्रोत्साहित किया जा सकता है। ऐसे उपाय न केवल महिलाओं को अधिक आर्थिक स्वतंत्रता देंगे, बल्कि देश की आर्थिक क्षमता को भी मजबूत करेंगे।
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