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जीन-संपादित केला

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संदर्भ:

जीन-संपादित केला: यूके स्थित बायोटेक कंपनी ट्रॉपिक (Tropic) ने आनुवंशिक रूप से संशोधित केले विकसित किए हैं, जो छिलने के बाद 12 घंटे तक ताजे और पीले बने रहते हैं। ये केले कटाई और परिवहन के दौरान टकराने पर भूरे पड़ने की संभावना को भी कम करते हैं

जीन-संपादित केला:

  • पकने की प्रक्रिया (Ripening Process):
    • केले में पके होने की प्रक्रिया हार्मोन इथाइलीन (Ethylene) के कारण होती है।
    • काटने के बाद भी, केले बड़ी मात्रा में इथाइलीन का उत्पादन करते हैं, जो पॉलीफेनॉल ऑक्सिडेज (PPO) नामक एंजाइम के उत्पादन से जुड़े जीन्स को सक्रिय करता है।
  • भूरा होने की प्रक्रिया (Browning Process): PPO जब ऑक्सीजन के संपर्क में आता है, तो यह पीले रंगद्रव्य (Yellow Pigment) को तोड़ देता है, जिससे केला भूरा हो जाता है।
  • चोट और इथाइलीन उत्पादन (Bruising and Ethylene Production):
    • संभालने के दौरान चोट लगने से इथाइलीन का उत्पादन बढ़ जाता है।
    • इथाइलीन का बढ़ा हुआ स्तर पकने और भूरा होने की प्रक्रिया को और तेज कर देता है।

भूरा होने को रोकने के लिए आनुवंशिक संशोधन:

  • PPO उत्पादन को रोकना (Disabling PPO Production):
    • वैज्ञानिकों ने PPO के उत्पादन को बंद करने के लिए सटीक आनुवंशिक बदलाव (Genetic Changes) किए।
    • यह बदलाव पकने की प्रक्रिया को नहीं रोकता, लेकिन भूरा होने की प्रक्रिया को धीमा कर देता है, जिससे फल की सुंदरता बरकरार रहती है।
  • अन्य फलों में सफलता (Success in Other Fruits): यह तकनीक सफलतापूर्वक टमाटर (Tomatoes)खरबूजे (Melons)कीवीफ्रूट्स (Kiwifruits) और मशरूम (Mushrooms) में भी लागू की गई है।
  • आर्कटिक सेब का उदाहरण (Example of Arctic Apples): ओकानागन स्पेशलिटी फ्रूट्स इंक (Okanagan Specialty Fruits Inc.) ने इस तकनीक का उपयोग करके आर्कटिक सेब (Arctic Apples) बनाए, जो 2017 से व्यावसायिक रूप से उपलब्ध हैं।

जीन एडिटिंग (Genome editing):

  • परिभाषा (Definition):
    • यह एक ऐसी विधि है जो वैज्ञानिकों को विभिन्न जीवों (पौधों, बैक्टीरिया, जानवरों) के DNA में बदलाव करने की अनुमति देती है।
    • इसका उद्देश्य शारीरिक लक्षणों (जैसे, आँखों का रंग) और बीमारियों के जोखिम में बदलाव करना है।
  • इतिहास (History):
    • प्रारंभिक जीनोम एडिटिंग तकनीकें 1900 के दशक के अंत में विकसित की गई थीं।
    • CRISPR टूलका आविष्कार 2009 में हुआ, जिसने जीनोम एडिटिंग को सरल, तेज़, सस्ता और अधिक सटीक बना दिया।
    • इसकी दक्षता और सटीकता के कारण वैज्ञानिकों द्वारा यह व्यापक रूप से उपयोग में लाई जा रही है।

यह क्यों महत्वपूर्ण है?

  1. केला बर्बादी: प्रतिवर्ष वैश्विक केला उत्पादन का लगभग 50% खराब होने के कारण नष्ट हो जाता है।
  2. आर्थिक और पर्यावरणीय प्रभाव: केवल यूके में ही प्रतिदिन 4 मिलियन खाने योग्य केले फेंक दिए जाते हैं।
  3. जलवायु प्रभाव: खाद्य अपशिष्ट (Food Waste), ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन में महत्वपूर्ण योगदान देता है, जिससे वैश्विक तापमान वृद्धि (Global Warming) और भी खराब होती है।
  4. CO2 उत्सर्जन में संभावित कमी: Tropic के अनुसार, ये नॉनब्राउनिंग केले (Non-Browning Bananas) हर साल सड़क से 2 मिलियन यात्री वाहनों को हटाने के बराबर उत्सर्जन में कटौती करने में मदद कर सकते हैं।

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