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अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) एक स्वायत्त अंतर-सरकारी संगठन है जो आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) के ढांचे के अंतर्गत कार्य करता है। इसका मुख्य उद्देश्य सभी के लिए सुरक्षित और सतत ऊर्जा भविष्य को सुनिश्चित करना है। 1974 में स्थापित, IEA की शुरुआत 1973-1974 के तेल संकट के दौरान वैश्विक तेल आपूर्ति की सुरक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से हुई थी। उस समय, प्रमुख तेल उत्पादकों द्वारा आपूर्ति प्रतिबंध के कारण औद्योगिक देशों में तेल की कमी और कीमतों में भारी वृद्धि देखी गई थी।
IEA की भूमिका और कार्यक्षेत्र:
समय के साथ, IEA का कार्यक्षेत्र बढ़ा है, जिसमें अब यह सभी प्रकार की ऊर्जा (जैसे तेल, गैस, नवीकरणीय ऊर्जा, और परमाणु ऊर्जा) पर डेटा, विश्लेषण और समाधान प्रदान करता है। यह न केवल ऊर्जा आपूर्ति की सुरक्षा सुनिश्चित करता है बल्कि नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने और जलवायु परिवर्तन से निपटने में भी सक्रिय भूमिका निभा रहा है। IEA की नवीनतम रिपोर्ट में बताया गया है कि स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों का वैश्विक बाजार 2023 के $700 बिलियन से बढ़कर 2035 तक $2 ट्रिलियन से अधिक हो सकता है, जो तेल बाजार के मूल्य के करीब है।
सदस्यता और मानदंड:
IEA में 31 सदस्य देश, 13 सहयोगी देश, और 5 परिग्रहण देश शामिल हैं। IEA का सदस्य बनने के लिए, देश का OECD का सदस्य होना आवश्यक है, और उसे निम्नलिखित मानदंडों को पूरा करना होता है:
- पिछले वर्ष के शुद्ध तेल आयात के 90 दिनों के बराबर कच्चे तेल का भंडार।
- आपातकालीन स्थिति में 10% तक राष्ट्रीय तेल खपत कम करने का कार्यक्रम।
- समन्वित आपातकालीन प्रतिक्रिया उपायों (CERM) का संचालन।
- सभी तेल कंपनियों से जानकारी प्राप्त करने के लिए कानून।
- सामूहिक कार्रवाई में सहयोग की क्षमता।
भारत की सदस्यता: भारत 2017 में IEA में एक सहयोगी सदस्य के रूप में शामिल हुआ। यह सदस्यता IEA के वैश्विक ऊर्जा सुरक्षा और स्थिरता के लक्ष्यों में भारत के योगदान को और सुदृढ़ करती है।
IEA की प्रमुख रिपोर्टें:
IEA वैश्विक ऊर्जा पर कई महत्वपूर्ण रिपोर्टें प्रकाशित करता है, जिनमें शामिल हैं:
- विश्व ऊर्जा आउटलुक (World Energy Outlook) – ऊर्जा प्रवृत्तियों का विश्लेषण
- विश्व ऊर्जा संतुलन (World Energy Balances)
- ऊर्जा प्रौद्योगिकी परिप्रेक्ष्य (Energy Technology Perspectives)
- विश्व ऊर्जा सांख्यिकी (World Energy Statistics)
- 2050 तक नेट जीरो (Net Zero by 2050) – जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए आवश्यक कदम
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