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संदर्भ:
भारत-तालिबान संबंध: भारत-तालिबान के साथ अपनी सहभागिता बढ़ा रहा है, और रिपोर्ट्स के अनुसार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अफगानिस्तान शासन को नई दिल्ली में अपने दूतावास के लिए नए राजदूत की नियुक्ति की अनुमति दे सकते हैं।
भारत-तालिबान संबंध: भारत की तालिबान के साथ बढ़ती भागीदारी के मुख्य कारण
- अफगानिस्तान में रणनीतिक प्रभाव:
- भारत अफगानिस्तान में अपनी दीर्घकालिक भू-राजनीतिक हितों की रक्षा करने के लिए अपनी उपस्थिति बनाए रखना चाहता है।
- भारत ने जून 2022 में काबुल में अपना दूतावास फिर से खोला, जिससे कूटनीतिक संबंध बने रहें।
- क्षेत्रीय सुरक्षा और आतंकवाद–निरोध सुनिश्चित करना:
- एक स्थिर अफगानिस्तान यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है कि यह भारत विरोधी आतंकवादी समूहों का केंद्र न बने।
- भारत, ISIS-K और लश्कर-ए-तैयबा (LeT) जैसे समूहों पर रोक लगाने के लिए तालिबान के सहयोग की उम्मीद करता है।
- आर्थिक और मानवीय हित:
- तालिबान के साथ जुड़ाव भारत को विकास परियोजनाएं जारी रखने और मानवीय सहायता प्रदान करने की अनुमति देता है।
- भारत ने मानवीय सहायता कार्यक्रमों के तहत अफगानिस्तान को कई बार गेहूं और चिकित्सा आपूर्ति भेजी है।
- चीन की बढ़ती भूमिका का मुकाबला करना: चीन ने तालिबान के एक दूत को स्वीकार कर लिया है और अफगानिस्तान को बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) में शामिल कर रहा है।
- पाकिस्तान के घटते प्रभाव का मुकाबला करना:
- तालिबान-पाकिस्तान संबंधों में कड़वाहट के कारण, भारत को काबुल पर इस्लामाबाद के प्रभाव को कम करने का अवसर मिला है।
- तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) के खिलाफ कार्रवाई न करने की तालिबान की अनिच्छा ने पाकिस्तान के साथ संबंधों में तनाव पैदा कर दिया है, जिससे भारत को अवसर मिला है।
चुनौतियाँ और जोखिम:
- आतंकवाद और सुरक्षा चिंताएँ:
- अफगानिस्तान आतंकवादी संगठनों- इस्लामिक स्टेट के लिए एक प्रजनन स्थल बन चुका है।
- भारत पहले ही IS से धमकियों का सामना कर चुका है, जिसमें दिसंबर 2024 में अफगानिस्तान के जलालाबाद में उसके वाणिज्य दूतावास पर हमला शामिल है।
- तालिबान के तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) जैसे समूहों से संबंध भारत की सुरक्षा पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं।
- मानवाधिकार और नैतिक चिंताएँ:
- तालिबान ने महिलाओं पर कठोर प्रतिबंध लगाए हैं, जिसमें शिक्षा, रोजगार और सार्वजनिक स्थलों पर जाने पर प्रतिबंध शामिल है।
- संयुक्त राष्ट्र ने इस स्थिति को “लिंग भेदभाव” के रूप में वर्णित किया है, जिससे तालिबान के साथ कोई भी संपर्क नैतिक और कूटनीतिक दृष्टिकोण से विवादास्पद बन जाता है।
- कूटनीतिक जोखिम:
- तालिबान के एक दूत को आधिकारिक रूप से स्वीकार करना इस शासन की मान्यता के रूप में देखा जा सकता है, जो एक लोकतांत्रिक अफगानिस्तान का समर्थन करने के भारत के पिछले रुख के विपरीत होगा।
- अमेरिका और यूरोपीय संघ सहित पश्चिमी सहयोगियों ने तालिबान को मान्यता नहीं दी है, और भारत का यह कदम उसकी वैश्विक कूटनीतिक स्थिति को प्रभावित कर सकता है।
आगे का रास्ता:
भारत को तालिबान के साथ संलग्न रहते हुए अपने रणनीतिक, सुरक्षा और मानवीय हितों की रक्षा करने के लिए संतुलित कूटनीति अपनानी चाहिए, जिसमें आतंकवाद-रोधी सहयोग, मानवीय सहायता और क्षेत्रीय स्थिरता को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।