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संदर्भ:
भारत-अमेरिका परमाणु समझौता: अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जैक सुलिवन ने घोषणा की है कि भारत सरकार के संस्थानों, जैसे भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC), इंदिरा गांधी परमाणु अनुसंधान केंद्र (IGCAR), और इंडियन रेयर अर्थ्स लिमिटेड (IREL), को अमेरिकी प्रतिबंध सूची से हटाने की योजना बनाई जा रही है। इस पहल का उद्देश्य भारत के परमाणु संस्थानों और अमेरिकी कंपनियों के बीच सहयोग को प्रोत्साहित करना है।
US एंटिटी लिस्ट (US Entity List):
US एंटिटी लिस्ट में विदेशी व्यक्तियों, व्यवसायों, और संगठनों को शामिल किया गया है, जिन पर विशेष वस्तुओं और तकनीकों के निर्यात और लाइसेंसिंग से संबंधित प्रतिबंध लगाए गए हैं।
सूची का उद्देश्य:
यह सूची यूएस डिपार्टमेंट ऑफ कॉमर्स के तहत ब्यूरो ऑफ इंडस्ट्री एंड सिक्योरिटी (BIS) द्वारा तैयार की जाती है। इसका उद्देश्य अनधिकृत व्यापार को रोकना है, जो निम्नलिखित का समर्थन कर सकता है:
- आतंकवाद (Terrorism): किसी भी प्रकार की आतंकवादी गतिविधियों को सहायता देना।
- महाविनाश के हथियार कार्यक्रम (Weapons of Mass Destruction – WMD): ऐसे कार्यक्रम जो परमाणु, रासायनिक, या जैविक हथियारों के निर्माण से जुड़े हों।
- यूएस विदेशी नीति और राष्ट्रीय सुरक्षा के खिलाफ गतिविधियां (Activities against US Foreign Policy or National Security): ऐसे कार्य जो अमेरिका की विदेशी नीति या राष्ट्रीय सुरक्षा के हितों को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
यह सूची सुनिश्चित करती है कि संवेदनशील वस्तुओं और प्रौद्योगिकियों का गलत उपयोग न हो।
पृष्ठभूमि:
- भारत–अमेरिका के बीच परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग के लिए सहमति समझौता (123 समझौता):
- यह समझौता यूएस एटॉमिक एनर्जी एक्ट 1954 की धारा 123 के तहत हुआ है।
- इसलिए इसे आमतौर पर 123 समझौता के नाम से जाना जाता है।
- समझौते का उद्देश्य:
- भारत के खिलाफ तीन दशकों से लागू तकनीकी प्रतिबंध व्यवस्था को समाप्त करना।
- भारत के न्यूक्लियर आइसोलेशन (परमाणु अलगाव) को समाप्त करना।
- परिणाम: यह समझौता भारत के लिए दरवाजे खोलता है कि वह नागरिक परमाणु सहयोग में अमेरिका और विश्व के बाकी देशों के साथ समान भागीदार के रूप में शामिल हो सके।
भारत-अमेरिका परमाणु समझौता के बारे में:
- भारत–अमेरिका नागरिक परमाणु समझौता (2008):
- मुख्य बिंदु:
- भारत को NPT पर हस्ताक्षर किए बिना परमाणु व्यापार की अनुमति।
- IAEA की निगरानी में नागरिक और सैन्य परमाणु कार्यक्रमों को अलग करना।
- भारत को परमाणु ईंधन, रिएक्टर और तकनीक तक पहुंच।
- प्रगति:
- शुरुआती उत्साह के साथ समझौता हुआ; अमेरिका ने कानून संशोधन किए।
- भारत ने कई देशों से समझौते किए, लेकिन रिएक्टर निर्माण और निवेश में धीमी प्रगति।
- मुख्य बिंदु:
प्रगति धीमी क्यों?
- कानूनी बाधाएं:
- 10CFR810: यूएस एटॉमिक एनर्जी एक्ट 1954 के तहत टाइटल 10, कोड ऑफ फेडरल रेगुलेशन्स के भाग 810 के नियम, अमेरिकी परमाणु विक्रेताओं को भारत में उपकरण निर्माण या डिज़ाइन कार्य करने से रोकते हैं।
- नागरिक दायित्व अधिनियम (2010): दुर्घटना की स्थिति में आपूर्तिकर्ताओं की जवाबदेही विदेशी निवेशकों को हतोत्साहित करती है।
- तकनीकी सीमाएं: भारत का PHWR तकनीक पर निर्भरता, जबकि वैश्विक प्रगति LWR में।
- अन्य चुनौतियां: उच्च लागत, नौकरशाही, सार्वजनिक विरोध (फुकुशिमा आपदा के बाद), और भूराजनीतिक मतभेद।
भारत–अमेरिका नागरिक परमाणु सहयोग का महत्व:
- iCET (क्रिटिकल और उभरती प्रौद्योगिकी पहल): नवाचार को बढ़ावा देने और परमाणु घटकों के संयुक्त निर्माण को सक्षम करने का लक्ष्य।
- भारत में अमेरिकी परमाणु रिएक्टरों की तैनाती और परस्पर सहयोग को बढ़ावा मिल सकता है।
- भारत का SMRs (स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर) पर जोर: उभरती प्रौद्योगिकियों में सहयोग से भारत के ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता बढ़ेगी।
- लाइट वाटर रिएक्टर (LWR) में सहयोग: आधुनिक रिएक्टर प्रौद्योगिकी अपनाने के लिए भारत और अमेरिका के बीच साझेदारी।