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बांग्लादेश के अंतरिम सरकार के प्रमुख, मुहम्मद युनुस, एक के बाद एक ऐसे फैसले ले रहे हैं, जो बांग्लादेश की स्थापना के समय की मूल भावना के खिलाफ प्रतीत हो रहे हैं।
- वर्तमान में यह संभावना जताई जा रही है कि बांग्लादेश खुद को एक इस्लामिक मुल्क घोषित कर सकता है, जो उसकी धारा के बदलाव को दर्शाता है।
- बांग्लादेश के शीर्ष कानून अधिकारी ने यह प्रस्ताव रखा है कि देश के संविधान से ‘धर्मनिरपेक्षता’ और ‘समाजवादी’ शब्दों को हटा दिया जाए। इस बदलाव से बांग्लादेश की मूल पहचान पर असर पड़ सकता है।
अंतरिम सरकार संविधान से जुड़े मुख्य बिंदु:
- बांग्लादेश की अंतरिम सरकार संविधान से ‘सेक्युलर’ और ‘सोशलिजम’ शब्द हटाने का प्रस्ताव लाई है।
- अटॉर्नी जनरल मोहम्मद असाज्जमान ने बुधवार को हाईकोर्ट में यह प्रस्ताव रखा।
- इसके अलावा, असाज्जमान ने संविधान से आर्टिकल 7A को समाप्त करने की भी मांग की, जो गैर-संवैधानिक सत्ता परिवर्तन पर मौत की सजा का प्रावधान करता है।
- अटॉर्नी जनरल ने मुजीबुर्रहमान को राष्ट्रपिता का दर्जा देने वाले प्रावधान को हटाने की भी मांग की।
- ढाका हाईकोर्ट में शेख हसीना की सरकार द्वारा 2011 में किए गए 15वें संविधान संशोधन की वैधता पर सुनवाई हो रही थी।
संविधान संशोधन की वैधता को चुनौती
- संविधान संशोधन पर कोर्ट में रिट याचिका
बांग्लादेशी कोर्ट में एक रिट याचिका दायर की गई है, जिसमें 2011 में तत्कालीन शेख हसीना सरकार द्वारा किए गए संविधान के 15वें संशोधन की वैधता को चुनौती दी गई है। इस संशोधन में कई महत्वपूर्ण परिवर्तन किए गए थे, जैसे कि धर्मनिरपेक्षता की बहाली, चुनाव की निगरानी के लिए अंतरिम सरकार के सिस्टम को खत्म करना, और शेख मुजीबुर रहमान को राष्ट्रपिता का दर्जा देना। - शेख मुजीबुर रहमान का राजनीतिकरण
कोर्ट में यह दलील दी गई है कि शेख मुजीबुर रहमान बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम के नेता थे, लेकिन अवामी लीग पार्टी ने उनका राजनीतिकरण अपने हितों के लिए किया है। - कोर्ट द्वारा अंतरिम सरकार से जवाब की मांग
बांग्लादेश की हाई कोर्ट के दो जजों की पीठ ने इस मामले में अंतरिम सरकार से अपना रुख स्पष्ट करने को कहा है। इस मामले की सुनवाई में 5 अगस्त को छात्रों के प्रदर्शन और हिंसा के दौरान बांग्लादेश में शेख हसीना की अवामी लीग सरकार का तख्तापलट हो गया था।
15वां संविधान संशोधन (2011)
- धर्मनिरपेक्ष राज्य का दर्जा बहाल करना:
- 15वें संशोधन के तहत बांग्लादेश में धर्मनिरपेक्ष राज्य के सिद्धांत को फिर से बहाल किया गया।
- 1977 में जियाउर रहमान की सरकार द्वारा इसे हटाया गया था, और 1988 में बांग्लादेश को इस्लामिक राज्य घोषित किया गया था।
- 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे गैर-संवैधानिक बताते हुए खारिज किया।
- शेख हसीना की सरकार ने 15वें संशोधन के जरिए इसे कानूनी रूप दिया।
- कार्यवाहक सरकार में चुनाव कराने का नियम खत्म किया:
- 15वें संशोधन के माध्यम से चुनाव कराने के लिए कार्यवाहक सरकार बनाने के नियम को समाप्त कर दिया गया।
- इससे पहले चुनावों की निगरानी के लिए कार्यवाहक सरकार का प्रावधान था।
- राष्ट्रपिता का दर्जा देना:
- इस संशोधन में मुजीबुर्रहमान को राष्ट्रपिता का दर्जा देने का प्रावधान भी शामिल किया गया।
- गैर-संवैधानिक तरीकों से सत्ता हासिल करने पर मौत की सजा:
- गैर-संवैधानिक तरीकों से सत्ता हासिल करने पर मौत की सजा का प्रावधान जोड़ा गया।
- अटॉर्नी जनरल ने इस प्रावधान की आलोचना करते हुए कहा कि यह लोकतांत्रिक बदलावों को सीमित करता है और जनआक्रोश को नजरअंदाज करता है।
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