संदर्भ:
न्यायपालिका की आंतरिक जांच: भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI संजीव खन्ना) ने दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायाधीश यशवंत वर्मा के खिलाफ तीन सदस्यीय आंतरिक जांच शुरू की। उनके सरकारी आवास में आग लगने के बाद वहां से नोट बरामद होने के आरोप लगे थे। यह संविधान में उल्लिखित महाभियोग प्रक्रिया से अलग एक आंतरिक जांच है।
भारतीय संविधान में न्यायाधीशों को हटाने का प्रावधान:
- अनुच्छेद 124(4): सुप्रीम कोर्ट (SC) के न्यायाधीश को हटाने का प्रावधान।
- अनुच्छेद 218: उच्च न्यायालय (HC) के न्यायाधीश को हटाने का प्रावधान।
न्यायाधीश को हटाने के आधार:
- सिद्ध दुराचरण (Proven Misbehavior)
- सिद्ध असमर्थता (Incapacity) (हालाँकि, संविधान में इनका स्पष्ट परिभाषा नहीं दी गई है।)
महाभियोग (Impeachment) प्रक्रिया:
- संसद में लोकसभा और राज्यसभा दोनों में विशेष बहुमत (Special Majority) से प्रस्ताव पारित होना चाहिए।
- कम से कम दो–तिहाई (2/3rd) उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्य प्रस्ताव के पक्ष में हों।
- यह संख्या सदन की कुल सदस्यता के 50% से अधिक होनी चाहिए।
- संसद से मंजूरी मिलने के बाद, राष्ट्रपति न्यायाधीश को हटाने का अंतिम आदेश जारी करते हैं।
भारत में न्यायपालिका की आंतरिक जांच प्रक्रिया:
पृष्ठभूमि:
- 1995 में बॉम्बे हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ए.एम. भट्टाचार्य पर वित्तीय कदाचार के आरोप लगे।
- बॉम्बे बार एसोसिएशन ने उनके इस्तीफे की मांग की।
- C. रविचंद्रन अय्यर बनाम न्यायमूर्ति ए.एम. भट्टाचार्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि
- ऐसा कोई तंत्र नहीं था जो “न्यायिक आचरण की खराबी” को संबोधित करे।
- यदि कदाचार महाभियोग (impeachment) के लिए पर्याप्त गंभीर नहीं था, तो उसे संभालने की कोई प्रक्रिया नहीं थी।
- इस समस्या को दूर करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने इन–हाउस प्रक्रिया का निर्माण किया।
भारत में न्यायपालिका की आंतरिक जांच प्रक्रिया का निर्माण:
- 1997 में एक पाँच–सदस्यीय समिति गठित की गई:
- न्यायमूर्ति एस.सी. अग्रवाल, ए.एस. आनंद, एस.पी. भरूचा (SC से)
- न्यायमूर्ति पी.एस. मिश्रा, डी.पी. मोहपात्र (वरिष्ठ HC मुख्य न्यायाधीश)
- इस समिति ने न्यायाधीशों के खिलाफ शिकायतों की जांच के लिए एक प्रक्रिया प्रस्तावित की।
- सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर 1999 में संशोधनों के साथ इस रिपोर्ट को स्वीकार किया।
भारत में न्यायपालिका की आंतरिक जांच प्रक्रिया के चरण:
- शिकायत प्राप्ति: शिकायतें CJI या भारत के राष्ट्रपति के माध्यम से आ सकती हैं।
- प्रारंभिक मूल्यांकन: CJI संबंधित हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से प्रारंभिक रिपोर्ट मांग सकते हैं।
- जांच समिति का गठन: यदि आवश्यक हो, तो तीन–सदस्यीय समिति बनाई जाती है, जिसमें अन्य हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश शामिल होते हैं।
- जांच प्रक्रिया: समिति नैसर्गिक न्याय (Natural Justice) के सिद्धांतों का पालन करते हुए जांच करती है।
- रिपोर्टिंग: समिति अपनी रिपोर्ट CJI को सौंपती है, जिसमें आरोपों की सत्यता का उल्लेख होता है।
- सिफारिशें: यदि आरोप सही पाए जाते हैं, तो समिति निम्नलिखित सुझाव दे सकती है:
- न्यायाधीश को इस्तीफा देने की सलाह।
- हटाने की प्रक्रिया शुरू करने की अनुशंसा।
- अनुपालन कार्रवाई: यदि न्यायाधीश इस्तीफा देने से इनकार करता है, तो CJI राष्ट्रपति को सूचित करता है ताकि हटाने की प्रक्रिया शुरू की जा सके।