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इसरो का 100वां मिशन: NVS-02 उपग्रह

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संदर्भ:

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) जनवरी 2025 में अपने 100वें मिशन के तहत NVS-02 उपग्रह को जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (GSLV) के माध्यम से प्रक्षेपित करेगा।

NVS-02 उपग्रह के बारे में:

  • परिचय:
    • NVS-02 भारत के दूसरे-पीढ़ी के नेविगेशन उपग्रहों की श्रृंखला में दूसरा और NavIC प्रणाली का नौवां उपग्रह है।
    • NavIC (Navigation with Indian Constellation) में कुल 7 प्रथम-पीढ़ी के उपग्रह शामिल हैं।
    • NVS-01, पहला द्वितीय-पीढ़ी का उपग्रह, 29 मई 2023 में प्रक्षेपित किया गया था।
    • प्रक्षेपण वाहन: NVS-02 को GSLV Mark II रॉकेट के माध्यम से प्रक्षेपित किया जाएगा।
  • प्रमुख विशेषताएँ:
    • NVS-02 उपग्रह में दो प्रकार के पेलोड होंगे:
      • नेविगेशन पेलोड – सटीक पोजिशनिंग और टाइमिंग सेवाओं के लिए।
      • रेंजिंग पेलोड – उपग्रह की स्थिति और गति ट्रैकिंग के लिए।
  • निर्माण एवं परीक्षण:
    • इस उपग्रह को UR सैटेलाइट सेंटर (URSC) में डिज़ाइन, विकसित और इंटीग्रेट किया गया है।
    • नवंबर-दिसंबर 2024 के दौरान इसे सैटेलाइट स्तर पर थर्मोवैक परीक्षणों से गुजारा गया।
    • दिसंबर 2024 में डायनामिक परीक्षण सफलतापूर्वक पूरा हुआ, जिससे यह लॉन्च के दौरान आने वाले गतिशील भारों को सहने के योग्य सिद्ध हुआ।
  • उद्देश्य:
    • भारत की सटीक नेविगेशन प्रणाली को मजबूत बनाना।
    • सामरिक और नागरिक उपयोगों के लिए उच्च गुणवत्ता की पोजिशनिंग सेवाएं प्रदान करना।

NavIC और भविष्य की संभावनाएँ:

  • उन्नत सुरक्षा और संभावनाएँ:
    • दूसरी पीढ़ी के NavIC उपग्रहों में सुरक्षित संचार के लिए उन्नत एन्क्रिप्शन शामिल किया गया है।
    • वर्तमान में NavIC एक क्षेत्रीय प्रणाली है, लेकिन भविष्य में इसे वैश्विक स्तर पर विस्तारित करने की योजना है।
  • NavIC की दूसरी पीढ़ी के उपग्रह:
    • तीसरी फ्रीक्वेंसी (L1): L5 और S के साथ L1 फ्रीक्वेंसी से अन्य नेविगेशन सिस्टम के साथ बेहतर समन्वय।
    • मजबूत एन्क्रिप्शन: संचार को पूरी तरह सुरक्षित बनाने के लिए।
    • लंबी मिशन आयु: 12+ वर्ष (पहली पीढ़ी: 10 वर्ष)।

NavIC क्या है?

  • NavIC (Navigation with Indian Constellation) भारत का स्वदेशी क्षेत्रीय सैटेलाइट नेविगेशन सिस्टम है, जिसे ISRO द्वारा विकसित किया गया है।
  • इसे पहले IRNSS (Indian Regional Navigation Satellite System) के रूप में जाना जाता था।
  • यह भारत और आसपास के क्षेत्रों में सटीक पोजिशनिंग, नेविगेशन और टाइमिंग सेवाएं प्रदान करता है।
  • यह GPS, GLONASS, Galileo और BeiDou जैसे वैश्विक नेविगेशन सिस्टम के साथ इंटरऑपरेबल है, जिससे इसकी विश्वसनीयता और उपयोगिता बढ़ जाती है।

NavIC की आवश्यकता:

  1. राष्ट्रीय सुरक्षा: संकट के समय विदेशी प्रणालियों (जैसे GPS) पर निर्भरता कम करने के लिए एक स्वतंत्र और सुरक्षित नेविगेशन सिस्टम।
  2. क्षेत्रीय नेविगेशन में सुधार: दक्षिण एशिया के लिए विशेष रूप से उच्च सटीकता प्रदान करता है, जो वैश्विक प्रणालियों में उपलब्ध नहीं है।
  3. नागरिक उपयोग: कृषि, परिवहन और आपदा प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में NavIC उपयोगी है।

दुनिया के प्रमुख सैटेलाइट नेविगेशन सिस्टम:

वर्तमान में चार प्रमुख वैश्विक उपग्रह नेविगेशन प्रणालियाँ हैं:

  1. अमेरिका: GPS (Global Positioning System)
  2. रूस: GLONASS (Global Navigation Satellite System)
  3. चीन: BeiDou
  4. यूरोपीय संघ: Galileo

इसके अलावा, जापान का एक क्षेत्रीय नेविगेशन सिस्टम है: QZSS (Quasi-Zenith Satellite System) – चार उपग्रहों पर आधारित।

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