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लिग्नोसैट

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लिग्नोसैट दुनिया का पहला लकड़ी का उपग्रह है, जिसे जापानी शोधकर्ताओं ने चंद्रमा और मंगल पर अन्वेषण के लिए लकड़ी के उपयोग के प्रारंभिक परीक्षण के रूप में अंतरिक्ष में भेजा है। इसका नाम लैटिन में “लकड़ी” को दर्शाने वाले शब्द “लिग्नो” और “सैटेलाइट” को मिलाकर रखा गया है। इसे क्योटो विश्वविद्यालय और सुमितोमो वानिकी कंपनी के अनुसंधानकर्ताओं ने मिलकर विकसित किया है।

लिग्नोसैट की विशेषताएँ:

  • निर्माण सामग्री: लिग्नोसैट का निर्माण विशेष रूप से चुनी गई मैगनोलिया की लकड़ी से किया गया है, जो अपनी स्थायित्व और अनुकूलनशीलता के लिए जानी जाती है।
  • प्रक्षेपण और परीक्षण: इसे स्पेसएक्स रॉकेट के माध्यम से कैनेडी स्पेस सेंटर से अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) भेजा जाएगा। वहाँ जापानी प्रयोग मॉड्यूल से इसे अंतरिक्ष में छोड़ा जाएगा, जहाँ इसकी स्थायित्व और शक्ति का परीक्षण किया जाएगा।
  • उद्देश्य: लिग्नोसैट का उद्देश्य अंतरिक्ष अन्वेषण में लकड़ी की पर्यावरण-मित्रता और लागत-प्रभावशीलता का परीक्षण करना है, ताकि भविष्य में अंतरिक्ष में रहने के दौरान नवीकरणीय सामग्री का उपयोग संभव हो सके।

लकड़ी के उपग्रह का महत्त्व:

  • लकड़ी के उपग्रह पर्यावरण के लिए अधिक अनुकूल होते हैं, क्योंकि वे वायुमंडल में पुनः प्रवेश के दौरान जल जाते हैं, जिससे धातु कणों का निर्माण नहीं होता और वायु प्रदूषण की संभावना कम होती है।
  • यह लागत-प्रभावी होने के साथ-साथ पृथ्वी पर भी कम पर्यावरणीय प्रभाव डालता है, जो अंतरिक्ष अन्वेषण को अधिक टिकाऊ बना सकता है।

अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS):

अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) इतिहास की सबसे जटिल और विशाल अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक और इंजीनियरिंग परियोजनाओं में से एक है, जो मानवता द्वारा बाह्य अंतरिक्ष में स्थापित की गई सबसे बड़ी संरचना है। यह एक उन्नत प्रयोगशाला, उच्च उपग्रहीय उड़ान के लिए एक परीक्षण केंद्र, और खगोलीय, पर्यावरणीय, और भूवैज्ञानिक अनुसंधान का मंच है। ISS को भविष्य के अंतरिक्ष अन्वेषण के लिए एक मील का पत्थर भी माना जाता है, जो बाह्य अंतरिक्ष में स्थायी स्थान के निर्माण की दिशा में पहला कदम है।

प्रमुख विशेषताएँ:

  1. स्थान और गति: ISS पृथ्वी से लगभग 400 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थित है और करीब 28,000 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से हर 90 मिनट में पृथ्वी की परिक्रमा करता है।
  2. प्रदर्शन: ISS रात के समय आकाश में एक चमकती हुई चलती रोशनी के रूप में देखा जा सकता है, जो बिना दूरबीन के भी दिखाई देती है, यदि इसकी स्थिति और समय का अंदाजा हो।
  3. मूल्य और भागीदारी: इसका निर्माण 15 देशों का प्रतिनिधित्व करने वाली पांँच प्रमुख अंतरिक्ष एजेंसियों (नासा, रोस्कोस्मोस, जेएक्सए, ईएसए, और सीएसए) द्वारा किया गया था, जिसमें करीब 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर का खर्च आया।
  4. संरचना और संचालन: ISS को विभिन्न मॉड्यूल और नोड्स के माध्यम से कक्षा में धीरे-धीरे तैयार किया गया, जिसमें निवास योग्य क्वार्टर, प्रयोगशालाएँ, और बाहरी ट्रस हैं जो संरचना को सहारा देने के साथ-साथ सौर पैनलों द्वारा विद्युत भी प्रदान करते हैं।

विकास यात्रा:

  • शुरुआती मॉड्यूल: पहला मॉड्यूल, रूस का ज़रया (Zarya), 1998 में लॉन्च हुआ था।
  • चालक दल: आरंभिक चालक दल में तीन लोग शामिल थे, हालांकि कोलंबिया शटल हादसे के बाद इसे अस्थायी रूप से दो सदस्यों में बदल दिया गया था। 2009 में इसके आकार को बढ़ाकर छह सदस्यीय कर दिया गया, जब नए मॉड्यूल और प्रयोगशालाओं को जोड़ा गया।
  • विस्तार: पहले ISS का संचालन वर्ष 2020 तक सीमित था, जिसे नासा के अनुरोध पर 2024 तक बढ़ा दिया गया है।

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