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संदर्भ:
मकरविलक्कु उत्सव : मकरविलक्कु केरल का सात दिवसीय वार्षिक उत्सव है, जो मकर संक्रांति के दिन सबरीमाला मंदिर में आयोजित किया जाता है। इस दिन भगवान श्रीराम और शबरी की भेंट की वर्षगांठ मनाई जाती है।
मकरविलक्कु उत्सव के बारे में:
- परिचय:
- मकरविलक्कु एक वार्षिक उत्सव है, जो केरल के सबरीमाला मंदिर में भगवान अय्यप्पा को समर्पित है।
- यह 41 दिनों की कठिन तीर्थयात्रा (जो मध्य नवंबर से शुरू होकर मकर संक्रांति पर समाप्त होती है) का समापन है, जो भगवान अय्यप्पा के सम्मान में मनाई जाती है।
- इस दिन भगवान अय्यप्पा के दिव्य प्रकाश के रूप में प्रकट होने की मान्यता है, जो समृद्धि और खुशी का प्रतीक है।
मकरविलक्कु उत्सव के प्रमुख अनुष्ठान:
- 41-दिवसीय व्रतम (तप और अनुशासन):
- व्रत की अवधि: भक्तों को मकरविलक्कु उत्सव में भाग लेने के लिए 41 दिनों का व्रत करना पड़ता है।
- आचरण के नियम:
- ब्रह्मचर्य का पालन।
- उपवास करना।
- काले या भगवा वस्त्र पहनना।
- महत्व: यह व्रत आत्म-शुद्धि, अनुशासन और भगवान अय्यप्पा के प्रति भक्ति का प्रतीक है।
- मकर ज्योति (दिव्य प्रकाश का दर्शन):
- आकर्षण का केंद्र:
- मकर ज्योति, भगवान अय्यप्पा की दिव्य उपस्थिति मानी जाती है।
- यह प्रकाश मंदिर के पास एक विशिष्ट स्थान पर मकरविलक्कु के दिन शाम को प्रकट होता है।
- आध्यात्मिक महत्व: यह दर्शन भक्तों के लिए सौभाग्य और आशीर्वाद का प्रतीक है।
- आकर्षण का केंद्र:
- तिरुवाभरणम जुलूस (शाही आभूषण का जुलूस):
- जुलूस की यात्रा: भगवान अय्यप्पा के पवित्र तिरुवाभरणम (शाही आभूषण) को पांडलम महल से सबरीमाला मंदिर तक भव्य जुलूस के रूप में ले जाया जाता है।
- उत्सव का माहौल: भजन, संगीत और भक्तों की उपस्थिति इस जुलूस को भक्तिमय और उल्लासपूर्ण बनाते हैं।
सबरीमाला मंदिर:
- समर्पित देवता: सबरीमाला श्री अय्यप्पन मंदिर भगवान अय्यप्पन (धर्म शास्ता) को समर्पित है।
- पौराणिक मान्यता: हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान अय्यप्पा भगवान शिव और भगवान विष्णु (मोहन रूप में) के पुत्र हैं।
- तीर्थ स्थल: यह दुनिया के सबसे बड़े वार्षिक तीर्थ स्थलों में से एक है, जहाँ हर वर्ष लगभग 10 से 15 मिलियन भक्त आते हैं।
महिला प्रवेश परंपरा और कानूनी विवाद:
- परंपरा: मंदिर में 10 से 50 वर्ष की आयु वर्ग की महिलाओं का प्रवेश वर्जित था।
- न्यायिक निर्णय:
- 2018 में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने इस प्रतिबंध को असंवैधानिक घोषित कर दिया।
- इस निर्णय ने महिला अधिकारों और धार्मिक परंपराओं के बीच बहस को जन्म दिया।
मामले का घटनाक्रम:
- 2006: याचिका: इंडियन यंग लॉयर्स एसोसिएशन ने सर्वोच्च न्यायालय में जनहित याचिका (PIL) दायर कर इस प्रथा को चुनौती दी।
- 2008: मामला तीन-न्यायाधीशों की पीठ को सौंपा गया।
- 2017: सर्वोच्च न्यायालय ने इसे संविधान पीठ को भेजने का संकेत दिया।
- निर्णय का आदेश: मामले पर निर्णय के लिए पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ का गठन।
- 2018: निर्णय: 4:1 के बहुमत से अदालत ने महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध को असंवैधानिक घोषित किया।