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मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया और बंगाली भाषाओं को मिला शास्त्रीय भाषा का दर्जा

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प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया और बंगाली भाषाओं को शास्त्रीय भाषा (classical language) का दर्जा दिए जाने की स्वीकृति प्रदान की है। यह कदम भारत की प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने और प्रत्येक भाषा की ऐतिहासिक व सांस्कृतिक उपलब्धियों को मान्यता देने के उद्देश्य से उठाया गया है।

पृष्ठभूमि और विवरण:

  1. शास्त्रीय भाषाओं की श्रेणी:
    • 2004 में भारत सरकार ने शास्त्रीय भाषाओं की एक नई श्रेणी का निर्माण किया। तमिल पहली भाषा थी जिसे शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिला था।
    • संस्कृत को 2005 में शास्त्रीय भाषा घोषित किया गया, और समय के साथ तेलुगु, कन्नड़, मलयालम, और उड़िया भी इस सूची में शामिल हुईं।
  2. मानदंड:
    • भाषा के शुरुआती ग्रंथों या लिखित इतिहास को 1500-2000 वर्षों से अधिक पुराना होना चाहिए।
    • मूल साहित्यिक परंपरा: उस भाषा का साहित्य मौलिक होना चाहिए, जो किसी अन्य भाषा से उधार न लिया गया हो।
    • भाषा का साहित्य और आधुनिक रूप: शास्त्रीय भाषा का साहित्य वर्तमान स्वरूप से भिन्न हो सकता है, जिसमें भाषा और उसकी शाखाओं के बीच एक विशिष्ट अंतर हो सकता है।
  3. शास्त्रीय भाषा का दर्जा प्राप्त भाषाएं:
    • तमिल (2004)
    • संस्कृत (2005)
    • तेलुगु (2008)
    • कन्नड़ (2008)
    • मलयालम (2013)
    • उड़िया (2014)
  4. भाषा विशेषज्ञ समिति (LEC):
    • नवंबर 2004 में संस्कृति मंत्रालय द्वारा साहित्य अकादमी के तहत भाषा विशेषज्ञ समिति (LEC) का गठन किया गया, जो शास्त्रीय भाषा के दर्जे के लिए प्रस्तावित भाषाओं का मूल्यांकन करती है।
    • 2024 में मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया और बंगाली को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने के लिए मानदंडों को संशोधित किया गया।

कार्यान्वयन और लाभ:

  1. शैक्षिक और सांस्कृतिक पहल:
    • प्राचीन भाषाओं के अध्ययन और संरक्षण के लिए विभिन्न केंद्रीय विश्वविद्यालय और शोध संस्थान स्थापित किए गए हैं।
    • शास्त्रीय भाषाओं के प्रचार और अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों की व्यवस्था की गई है।
    • शास्त्रीय भाषाओं के अध्ययन के लिए उत्कृष्टता केंद्र भी स्थापित किए गए हैं, जैसे कि मैसूर में स्थापित केंद्र।
  2. रोजगार सृजन: शास्त्रीय भाषाओं के संरक्षण, अनुवाद, और डिजिटलीकरण के लिए संग्रह, प्रकाशन, और शोध के क्षेत्रों में रोजगार के अवसर बढ़ेंगे।
  3. सांस्कृतिक प्रभाव: महाराष्ट्र, बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल और असम में इन भाषाओं को शास्त्रीय दर्जा मिलने से इन राज्यों की सांस्कृतिक और शैक्षिक धरोहर को वैश्विक स्तर पर पहचान मिलेगी।

यह निर्णय भारतीय भाषाओं की समृद्धता को वैश्विक मंच पर प्रकट करने और भाषाई विविधता को संरक्षित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

संविधान में भाषा से संबंधित प्रावधान:

भारतीय संविधान ने भाषा के संदर्भ में कई प्रावधान किए हैं, जिनका उद्देश्य भाषा के उपयोग, संरक्षण और संवर्धन को सुनिश्चित करना है। यहाँ इन प्रावधानों का विवरण दिया गया है:

  1. आठवीं अनुसूची (8th Schedule):
  • आठवीं अनुसूची का उद्देश्य हिंदी के प्रगामी प्रयोग को बढ़ावा देना और अन्य भाषाओं को संवर्धित करना है।
  • अनुच्छेद 344(1): यह अनुच्छेद संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए हिंदी के प्रयोग के संबंध में आयोग के गठन का प्रावधान करता है, जो संविधान के प्रारंभ से 5 साल बाद स्थापित किया जाना चाहिए।
  • अनुच्छेद 351: इसके तहत हिंदी भाषा का प्रचार-प्रसार और उसका विकास करना संघ का कर्तव्य है ताकि यह भारत की सामासिक संस्कृति के सभी तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके।
  1. आठवीं अनुसूची में शामिल भाषाएँ:

संविधान की आठवीं अनुसूची में वर्तमान में 22 भाषाएँ शामिल हैं: असमिया, बांगला, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, सिंधी, तमिल, तेलुगु, उर्दू, बोडो, संथाली, मैथिली एवं डोगरी

  • शुरुआती 14 भाषाएँ: संविधान के प्रारंभ में 14 भाषाएँ शामिल थीं।
  • सिंधी: वर्ष 1967 (21वें संशोधन) में जोड़ी गई।
  • कोंकणी, मणिपुरी, नेपाली: 1992 (71वें संशोधन) में जोड़ी गईं।
  • बोडो, डोगरी, मैथिली, संथाली: 2004 (92वें संशोधन) में जोड़ी गईं।
  1. संघ की भाषा (Union Language):
  • अनुच्छेद 343: संघ की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी।
  • अनुच्छेद 120: संसद में प्रयोग की जाने वाली भाषाओं से संबंधित है।
  • अनुच्छेद 210: यह अनुच्छेद राज्यों के विधानमंडलों में भाषाओं के उपयोग के संबंध में है।
  1. क्षेत्रीय भाषाएँ (Regional Languages):
  • अनुच्छेद 345: राज्य विधानमंडल को राज्य के लिए किसी भी आधिकारिक भाषा को अपनाने की अनुमति देता है।
  • अनुच्छेद 346: यह राज्यों के बीच और संघ के साथ संचार की आधिकारिक भाषा निर्दिष्ट करता है।
  • अनुच्छेद 347: राष्ट्रपति को अधिकार देता है कि वह राज्य की किसी भी भाषा को मान्यता दे, यदि उसे राज्य की आबादी के किसी वर्ग द्वारा बोली जाने वाली माना जाता है।
  1. विशेष निर्देश (Special Provisions):
  • अनुच्छेद 29: अल्पसंख्यकों को अपनी भाषा, लिपि और संस्कृति को संरक्षित करने का अधिकार प्रदान करता है।
  • अनुच्छेद 350: किसी भी भाषा में शिकायत के निवारण के लिए अभ्यावेदन देने का अधिकार है।
  • अनुच्छेद 350A: राज्यों को निर्देशित करता है कि वे भाषाई अल्पसंख्यकों के बच्चों के लिए प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में उपलब्ध कराएँ।
  • अनुच्छेद 350B: राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त विशेष अधिकारी को भाषाई अल्पसंख्यकों के अधिकारों की सुरक्षा की जाँच करने का कार्य सौंपा गया है।
  1. आठवीं अनुसूची में अन्य भाषाओं को शामिल करने की माँग: वर्तमान में, 38 और भाषाओं को आठवीं अनुसूची में शामिल करने की माँग की जा रही है, जिनमें अंगिका, बंजारा, बज्जिका, भोजपुरी जैसी भाषाएँ प्रमुख हैं।
  2. भाषा से संबंधित अन्य समितियाँ: पाहवा (1996) और सीताकांत महापात्र (2003) समितियों ने भाषाओं के संदर्भ में विभिन्न अनुशंसाएँ की हैं, जिनपर विचार किया जा रहा है।

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