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न्यायपालिका में असहमति की प्रकृति

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संदर्भ:

न्यायपालिका में असहमति: न्यायपालिका किसी भी देश के कामकाज का एक अभिन्न हिस्सा है और यह न तो समाज में और न ही खुद के भीतर असहमति से मुक्त हो सकती है। असहमति, विचारों के आदान-प्रदान और न्यायिक प्रक्रिया के विकास के लिए आवश्यक है।

न्यायपालिका में असहमतिपूर्ण मत (Dissent):

  1. अर्थ: असहमतिपूर्ण (Dissent) मत का मतलब है, न्यायालय में बहुमत के विचार से सहमत न होना।
  2. महत्व: यह न्यायिक प्रणाली में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  3. विचारों की विविधता: यह न्यायाधीशों को कानूनी मुद्दों पर अलग-अलग विचार व्यक्त करने का अवसर देता है, जो राजनीतिक, सामाजिक या बौद्धिक कारणों पर आधारित हो सकते हैं।
  4. विचारों की विविधता का प्रदर्शन: यह न्यायिक प्रणाली में विचारों की विविधता को प्रदर्शित करता है।

संविधान में असहमतिपूर्ण मत (Dissent) का अधिकार:

  1. संवैधानिक स्थिति:
    • असहमतिपूर्ण मत को अप्रत्यक्ष रूप से भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 के माध्यम से मौलिक अधिकार के रूप में स्वीकार किया गया है।
    • यह अधिकार नागरिकों को उनके विपरीत विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता देता है।
  2. अनुच्छेद 19 के तहत अधिकार:
    • अनुच्छेद 19 (1) (a): यह सभी नागरिकों को बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान करता है।
    • अनुच्छेद 19 (1) (b): यह शांति से और बिना हथियारों के सभा आयोजित करने का अधिकार देता है।
    • अनुच्छेद 19 (1) (c): यह नागरिकों को संघ या संगठनों का निर्माण करने की स्वतंत्रता प्रदान करता है।
  3. असहमति और लोकतंत्र:
    • लोकतंत्र का आधार असहमति में निहित होता है।
    • जिन समाजों में स्वतंत्रता का मूल्य है, वहाँ सवाल उठाना, चुनौती देना और आलोचना करना सिर्फ सहन नहीं किया जाता, बल्कि इसे नागरिक जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है।

न्यायपालिका में असहमति (Dissent) के महत्व:

  • न्यायिक स्वतंत्रता की रक्षा: असहमति न्यायाधीशों को बहुमत के फैसलों से असहमति व्यक्त करने की स्वतंत्रता देती है।
    • यह न्यायपालिका में खुली बहस की संस्कृति को प्रोत्साहित करती है, जो लोकतंत्र के लिए आवश्यक है।
  • कानूनी मिसाल का निर्माण: असहमति भविष्य के कानूनी निर्णयों को प्रभावित कर सकती है।
    • उदाहरण: ADM जबलपुर और पी.वी. नरसिम्हा राव जैसे मामलों में असहमति ने भविष्य के निर्णयों को आकार दिया।
  • सार्वजनिक चर्चा को बढ़ावा: असहमति महत्वपूर्ण कानूनी और संवैधानिक मुद्दों पर सार्वजनिक चर्चा को प्रोत्साहित करती है।
    • यह वैकल्पिक दृष्टिकोण प्रस्तुत कर समाज के मूल्यों और चिंताओं को उजागर करती है, जिससे लोकतांत्रिक संवाद समृद्ध होता है।

भारत में न्यायिक असहमति से जुड़ी चुनौतियां और आलोचनाएं:

  • प्रतिशोध का जोखिमः
    • असहमति जताने वाले न्यायाधीश पेशेवर नुकसान या पदोन्नति में बाधा का सामना कर सकते हैं।
    • उदाहरण: एडीएम जबलपुर मामले में असहमति के बाद न्यायमूर्ति एच.आर. खन्ना को मुख्य न्यायाधीश नहीं बनाया गया।
  • दुर्लभ असहमतिः
    • सुप्रीम कोर्ट में असहमति के मामले कम ही देखे जाते हैं।
    • मुख्य न्यायाधीश आमतौर पर संवैधानिक पीठ के मामलों में असहमति से बचते हैं, जिससे स्वतंत्र विचारों पर सामूहिकता हावी होती है।
  • जन धारणा का दबावः
    • असहमति को कभी-कभी न्यायिक एकता के खिलाफ समझा जाता है।
    • नकारात्मक प्रतिक्रिया के डर से न्यायाधीश खुलकर असहमति जताने से बचते हैं।

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