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ग्रीन बैंक की आवश्यकता

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संदर्भ:

काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वॉटर (CEEW) और नैचुरल रिसोर्सेज डिफेंस काउंसिल इंडिया (NRDC) द्वारा किए गए विस्तृत अध्ययन में भारत में एक ग्रीन बैंक की आवश्यकता को प्रमुख रूप से उजागर किया गया है।

ग्रीन बैंक के बारे में:

  1. मिशनप्रेरित संस्थाएँ: ग्रीन बैंक ऐसे संस्थान होते हैं जो विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन को कम करने और अनुकूलन परियोजनाओं के लिए फंडिंग प्रदान करने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं।
  2. सार्वजनिक, अर्धसार्वजनिक, या गैरलाभकारी संस्थाएँ: ये संस्थाएँ सार्वजनिक और निजी पूंजी का उपयोग करके स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाओं के लिए लक्ष्यों को पूरा करने के लिए कार्य करती हैं, जिससे उत्सर्जन को कम किया जा सके।
  3. महंगे ग्रीन प्रोजेक्ट्स और सस्ती वित्तीय मदद के बीच की खाई को भरना: ग्रीन बैंक का उद्देश्य महंगे ग्रीन प्रोजेक्ट्स के लिए सस्ती वित्तीय सहायता उपलब्ध कराना है, ताकि उन्हें साकार किया जा सके।

ग्रीन बैंक की आवश्यकता:

  1. अधिकारियों द्वारा की गई विस्तृत अध्ययन: काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर (CEEW) और नेचुरल रिसोर्सेज डिफेंस काउंसिल इंडिया (NRDC) द्वारा की गई एक विस्तृत अध्ययन ने भारत में ग्रीन बैंक की आवश्यकता को उजागर किया है।
  2. वाणिज्यिक बैंकों के उच्च ब्याज दर और संक्षिप्त अवधि: सामान्यतः वाणिज्यिक बैंक उच्च ब्याज दरों पर और कम अवधि के लिए क्रेडिट सुविधाएं प्रदान करते हैं, जो ग्रीन प्रोजेक्ट्स की प्रकृति के साथ मेल नहीं खाते।
  3. विकसित देशों की तुलना में उच्च ब्याज दरें: विकासशील देशों के निवासियों के लिए, जहाँ ब्याज दरें विकसित देशों की तुलना में अधिक होती हैं, सस्ती क्रेडिट प्राप्त करना कठिन होता है, जिससे ग्रीन प्रोजेक्ट्स में निवेश आकर्षित नहीं हो पाता।
  4. विदेशी स्रोतों से सस्ती ऋणों का प्राप्त करना: इससे ग्रीन प्रोजेक्ट्स को सस्ते ऋणों के लिए विदेशों से ऋण लेना पड़ता है, जो अंततः पूंजी पलायन और पुनर्निवेश की कमी का कारण बनता है।
  5. भारत में सस्ती क्रेडिट स्रोत की आवश्यकता: यदि भारत में एक सस्ती क्रेडिट स्रोत उपलब्ध हो, तो यह दीर्घकालिक सतत वित्तीयता को सुनिश्चित करेगा।

COP29 की मुख्य उपलब्धि और कमी:

  1. आश्वासन दिया गया जलवायु वित्त: विकसित देशों ने विकासशील देशों को प्रति वर्ष $300 बिलियन जलवायु वित्त प्रदान करने का आश्वासन दिया।
  2. ग्लोबल साउथ की मांग: ग्लोबल साउथ (विकासशील देशों) ने $1.3 ट्रिलियन वार्षिक जलवायु वित्त की मांग की थी, जो आश्वासन की गई राशि से काफी अधिक है।
  3. अंतर की चुनौती: यह अंतर दर्शाता है कि विकसित देशों और विकासशील देशों की जलवायु वित्त आवश्यकताओं और प्रतिबद्धताओं के बीच बड़ा असंतुलन है।

ग्रीन बैंक कैसे काम करते हैं?

  1. पूंजी जुटाना: ग्रीन बैंक सरकारी अनुदान, पर्यावरण सेस (cess), और ग्रीन बॉन्ड जारी करके धन जुटाते हैं।
  2. लक्षित ऋण: ये बैंक उन स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाओं को ऋण प्रदान करते हैं जो आर्थिक रूप से व्यवहार्य हैं और जिनकी पुनर्भुगतान क्षमता सुनिश्चित है।
  3. बाजार विकास: ग्रीन बैंक ऐसे अवसरों की पहचान करते हैं और उनका वित्तपोषण करते हैं, जिससे पर्यावरणीय और आर्थिक लाभ अधिकतम हो।
  4. पुनर्निवेश चक्र: वापस लौटे हुए धन को नई ग्रीन परियोजनाओं में पुनर्निवेश किया जाता है, जिससे एक आत्मनिर्भर वित्तपोषण चक्र बनता है।

ग्रीन बैंक के लाभ:

  1. डीकार्बोनाइजेशन लक्ष्य: ग्रीन प्रोजेक्ट्स को सस्ती वित्तीय सहायता देकर 2070 तक नेट-ज़ीरो लक्ष्य में मदद।
  2. सस्ता वित्तपोषण: कम ब्याज और दीर्घकालिक ऋण।
  3. निवेश आकर्षण: घरेलू-विदेशी निवेश को प्रोत्साहन।
  4. पूंजी संरक्षण: विदेशी ऋण की जरूरत घटाकर निवेश भारत में बनाए रखना।
  5. नवाचार बढ़ावा: ग्रीन तकनीक और स्टार्टअप्स को सहयोग।

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