पराक्रम दिवस 2025: नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती के उपलक्ष्य में 23 जनवरी को प्रतिवर्ष पराक्रम दिवस मनाया जाता है ।
पराक्रम दिवस के बारे में:
- पहला पराक्रम दिवस, नेताजी की 125वीं जयंती के अवसर पर वर्ष 2021 में मनाया गया था।
- पहला पराक्रम दिवस कोलकाता के विक्टोरिया मेमोरियल में आयोजित किया गया था।
- वर्ष 2022 में इंडिया गेट, नई दिल्ली में नेताजी की होलोग्राम प्रतिमा का अनावरण किया गया।
सुभाष चंद्र बोस: जीवन परिचय
- जन्म: सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा के कटक में हुआ। उनकी माता का नाम प्रभावती दत्त बोस और पिता का नाम जानकीनाथ बोस था।
प्रारंभिक जीवन और प्रेरणा:
- शिक्षा और त्याग: सुभाष ने 1920 में भारतीय सिविल सेवा (ICS) परीक्षा पास की, लेकिन जल्द ही देश की स्वतंत्रता के लिए अपने पद से त्यागपत्र दे दिया।
- आध्यात्मिक और राजनीतिक गुरु: वे स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं से गहराई से प्रभावित थे और उन्हें अपना आध्यात्मिक गुरु मानते थे। उनके राजनीतिक गुरु चितरंजन दास थे।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ संबंध:
- स्वराज का समर्थन: सुभाष चंद्र बोस ने बिना शर्त स्वराज (पूर्ण स्वतंत्रता) का समर्थन किया और मोतीलाल नेहरू रिपोर्ट का विरोध किया, जिसमें भारत को डोमिनियन स्टेटस देने की बात कही गई थी।
- आंदोलन में भागीदारी:
- 1930 के नमक सत्याग्रह में सक्रिय भूमिका निभाई।
- 1931 में गांधी-इरविन समझौते का विरोध किया।
- कॉन्ग्रेस अध्यक्ष पद:
- 1938 में हरिपुरा अधिवेशन में कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए।
- 1939 में त्रिपुरी अधिवेशन में गांधी जी द्वारा समर्थित पट्टाभि सीतारमैय्या को हराकर पुनः अध्यक्ष बने।
- गांधी जी से वैचारिक मतभेद के कारण उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष पद और पार्टी से इस्तीफा दे दिया।
- फॉरवर्ड ब्लॉक: 1939 में कांग्रेस से अलग होकर उन्होंने फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना की। इसका उद्देश्य बंगाल में वामपंथी राजनीति को मजबूत करना था।
भारतीय राष्ट्रीय सेना (INA)
- स्थापना और नारा: जुलाई 1943 में जापान-नियंत्रित सिंगापुर पहुँचकर उन्होंने ‘दिल्ली चलो’ का नारा दिया। 21 अक्टूबर 1943 को उन्होंने आज़ाद हिंद सरकार और भारतीय राष्ट्रीय सेना (INA) की स्थापना की।
- INA का गठन:
- INA का गठन पहले मोहन सिंह और जापानी मेजर इविची फुजिवारा के नेतृत्व में किया गया था।
- इसमें जापान द्वारा बंदी बनाए गए ब्रिटिश-भारतीय सेना के सैनिक, सिंगापुर के जेल में बंद भारतीय कैदी, और दक्षिण-पूर्व एशिया के भारतीय नागरिक शामिल थे।
- इसकी संख्या बढ़कर 50,000 तक पहुँच गई।
- लड़ाई और प्रभाव:
- INA ने 1944 में इम्फाल और बर्मा में मित्र देशों की सेनाओं से मुकाबला किया।
- 1945 में ब्रिटिश सरकार द्वारा INA के सैनिकों पर मुकदमा चलाए जाने के बाद पूरे भारत में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए।
सुभाष चंद्र बोस का जीवन राष्ट्रभक्ति और अदम्य साहस का प्रतीक है। उनका संघर्ष और त्याग भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है।