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हर निजी संपत्ति सामुदायिक संसाधन नहीं है: सुप्रीम कोर्ट

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हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय की नौ सदस्यीय संविधान पीठ ने एक ऐतिहासिक निर्णय में स्पष्ट किया कि राज्य केवल ‘सामान्य हित’ के आधार पर निजी संपत्ति पर कब्जा नहीं कर सकता। यह निर्णय विशेष रूप से महाराष्ट्र आवास और क्षेत्र विकास अधिनियम, 1976 की संवैधानिकता को चुनौती देने वाले एक मामले पर दिया गया, जिसमें राज्य को निजी संपत्ति का अधिग्रहण करने के प्रावधान थे।

पृष्ठभूमि:

  • इस मामले की शुरुआत मुंबई के संपत्ति मालिक संघ ने की थी। या
  • चिकाकर्ताओं ने कानून की उस धारा को चुनौती दी थी, जो सरकार को मासिक किराए के सौ गुना मुआवजे के साथ संपत्ति अधिग्रहण का अधिकार देती है।
  • इस मामले की सुनवाई 1992 में शुरू हुई थी और 2002 में इसे नौ सदस्यीय संविधान पीठ के पास भेजा गया था, जिसका फैसला 2024 में आया।

निजी संपत्ति का अधिकार:

  • संविधान के अनुच्छेद 19(1)(एफ) और अनुच्छेद 31 के अंतर्गत मूल रूप से ‘संपत्ति का अधिकार’ मौलिक अधिकार था।
  • 1978 में 44वें संविधान संशोधन के बाद इसे अनुच्छेद 300 ए के तहत केवल एक संवैधानिक अधिकार बना दिया गया, जिससे सरकार को केवल उचित प्रक्रिया और पर्याप्त मुआवजे के साथ संपत्ति अधिग्रहण का अधिकार मिला।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला:

  • सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि सभी निजी संपत्तियों को सामुदायिक संसाधन नहीं माना जा सकता। अदालत ने 1978 के उस फैसले को पलट दिया जिसमें अनुच्छेद 39(बी) की व्यापक व्याख्या करते हुए सभी निजी संपत्तियों को सामुदायिक संसाधन मानने का सुझाव दिया गया था।
  • अदालत ने कहा कि अनुच्छेद 39(बी) के तहत संसाधनों को पुनर्वितरित करने का निर्देश दिया गया है ताकि वे सामान्य भलाई के लिए कार्य कर सकें, लेकिन सभी निजी संपत्तियों पर इसे लागू करना व्यावहारिक नहीं है।

असहमति के स्वर:

न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना ने आंशिक असहमति व्यक्त करते हुए कहा कि ‘भौतिक संसाधनों’ को दो श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है – राज्य के स्वामित्व वाले और निजी स्वामित्व वाले। उन्होंने व्यक्तिगत संपत्ति के अधिकारों और समुदाय की आवश्यकताओं के बीच संतुलन की आवश्यकता पर जोर दिया।

समुदाय के भौतिक संसाधनोंके लिए मानदंड:

निर्णय के अनुसार, किसी संसाधन को सामुदायिक संसाधन मानने के लिए विभिन्न कारकों का आकलन जरूरी है:

  1. संसाधन की प्रकृति और विशेषताएं
  2. सार्वजनिक कल्याण पर प्रभाव
  3. संसाधन का स्वामित्व (राज्य या निजी)
  4. उसकी उपलब्धता और कमी
  5. निजी स्वामित्व के प्रभाव

फैसले के निहितार्थ:

इस निर्णय से राज्य द्वारा मनमाने संपत्ति अधिग्रहण पर रोक लगेगी और एक संतुलित दृष्टिकोण को बल मिलेगा। यह भारत में संपत्ति अधिकारों को सुरक्षित करते हुए आर्थिक नीति में बाजार-उन्मुख बदलाव का संकेत भी देता है, जो समाजवादी विचारधारा से हटकर अधिक उदारवादी दृष्टिकोण को अपनाता है।

सर्वोच्च न्यायालय के बारे में :

भारत का सर्वोच्च न्यायालय भारतीय न्यायपालिका का सर्वोच्च संवैधानिक न्यायालय है, जिसे न्यायिक समीक्षा की शक्ति प्राप्त है। यह न्यायालय भारत के संविधान के तहत सर्वोच्च न्यायालय और अंतिम अपील का न्यायालय है। देश में न्यायिक प्रणाली एकल और एकीकृत है, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय के साथ उच्च न्यायालय और अधीनस्थ न्यायालय शामिल हैं।

सर्वोच्च न्यायालय का संक्षिप्त इतिहास:

  • 1773: रेग्युलेटिंग एक्ट के तहत कलकत्ता में एक अभिलेख न्यायालय के रूप में सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना हुई थी। इसका उद्देश्य बंगाल, बिहार, और उड़ीसा में किसी भी शिकायत या कार्रवाई का समाधान करना था।
  • 1800 और 1823: मद्रास और बंबई में क्रमशः किंग जॉर्ज III के द्वारा सर्वोच्च न्यायालयों की स्थापना की गई।
  • 1861: भारत उच्च न्यायालय अधिनियम ने विभिन्न प्रांतों के लिए उच्च न्यायालयों का गठन किया और कलकत्ता, मद्रास, तथा बंबई में सर्वोच्च न्यायालयों को समाप्त कर दिया गया।
  • 1935: भारत सरकार अधिनियम, 1935 के अंतर्गत संघीय न्यायालय की स्थापना हुई, जिसका उद्देश्य प्रांतों और संघीय राज्यों के बीच विवादों का समाधान करना था।
  • 1950: भारत की स्वतंत्रता के बाद, 26 जनवरी 1950 को भारतीय संविधान लागू हुआ और 28 जनवरी 1950 को सर्वोच्च न्यायालय की पहली बैठक हुई।

सर्वोच्च न्यायालय के संवैधानिक प्रावधान:

सर्वोच्च न्यायालय का प्रावधान भारतीय संविधान के भाग V और अध्याय 6 में किया गया है। अनुच्छेद 124 से 147 में सर्वोच्च न्यायालय के संगठन, अधिकार, शक्तियाँ और प्रक्रियाएं निर्दिष्ट की गई हैं। अनुच्छेद 124(1) के अनुसार, सर्वोच्च न्यायालय में एक मुख्य न्यायाधीश (CJI) और संसद द्वारा निर्धारित संख्या के अनुसार अन्य न्यायाधीश होंगे।

सर्वोच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र:

सर्वोच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र को तीन प्रमुख भागों में वर्गीकृत किया गया है:

  1. मूल अधिकार क्षेत्र: संघ और राज्यों के बीच विवादों के समाधान के लिए।
  2. अपीलीय अधिकार क्षेत्र: उच्च न्यायालयों के निर्णयों के विरुद्ध अपील सुनने के लिए।
  3. सलाहकार अधिकार क्षेत्र: राष्ट्रपति के प्रश्नों पर परामर्श देने के लिए।

संगठनात्मक ढांचा:

वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय में एक मुख्य न्यायाधीश सहित कुल 34 न्यायाधीश हैं। शुरुआत में, यह संख्या आठ थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट (न्यायाधीशों की संख्या) विधेयक, 2019 के तहत यह संख्या बढ़ाई गई। न्यायाधीशों की संख्या को विनियमित करने का अधिकार संसद को है।

सुप्रीम कोर्ट की सीट:

संविधान दिल्ली को सर्वोच्च न्यायालय का मुख्यालय घोषित करता है। मुख्य न्यायाधीश को राष्ट्रपति की स्वीकृति के साथ अन्य स्थान को भी मुख्यालय के रूप में नियुक्त करने का अधिकार है, पर यह अनिवार्य नहीं है।

निष्कर्ष: सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय भारत में निजी संपत्ति अधिकारों को लेकर एक अहम मोड़ है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि राज्य केवल उचित प्रक्रिया और पर्याप्त मुआवजे के माध्यम से ही संपत्ति का अधिग्रहण कर सकता है। यह फैसला न केवल आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करता है, बल्कि व्यक्तिगत अधिकारों और सामान्य हित के बीच संतुलन स्थापित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

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