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हाल ही में बीजू जनता दल (बीजद) ने आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा निर्मित पोलावरम बांध परियोजना के ओडिशा के मलकानगिरी जिले के आदिवासी समुदायों पर संभावित प्रतिकूल प्रभावों को उजागर करने के लिए अपने प्रयास तेज कर दिए हैं।
पोलावरम परियोजना के बारे में:
- परिचय:
- पोलावरम परियोजना गोदावरी नदी पर निर्माणाधीन बहुउद्देश्यीय सिंचाई परियोजना है।
- यह आंध्र प्रदेश के एलुरु और पूर्वी गोदावरी जिलों में स्थित है।
- भारत सरकार ने इसे राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा दिया है।
- परियोजना की शुरुआत:
- परियोजना की अवधारणा: गोदावरी जल विवाद न्यायाधिकरण (GWDT) की सिफारिशों के तहत इस परियोजना की परिकल्पना की गई थी।
- समझौता: 2 अप्रैल 1980 को आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश और ओडिशा के बीच एक समझौते के तहत इसे आंध्र प्रदेश द्वारा लागू किया जाना था।
- राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा: 2014 में आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम (APRA) के तहत इसे राष्ट्रीय परियोजना घोषित किया गया।
- वित्तीय लागत: 2005-06 में परियोजना की प्रारंभिक लागत ₹10,151.04 करोड़ थी, जो 2019 में ₹55,548.87 करोड़ तक पहुंच गई।
- डैम की ऊंचाई: जल शक्ति मंत्रालय के अनुसार, पोलावरम परियोजना के कंक्रीट डैम की अधिकतम ऊंचाई -50 मीटर के गहरे नींव स्तर से 72.60 मीटर तक है।
- उद्देश्य:
- सिंचाई: पूर्वी गोदावरी, विशाखापत्तनम, पश्चिम गोदावरी और कृष्णा जिलों में सिंचाई विकास।
- जल विद्युत उत्पादन: 960 मेगावाट की जल विद्युत उत्पादन क्षमता।
- पेयजल आपूर्ति: 611 गांवों की 50 लाख की आबादी को पेयजल उपलब्ध कराना।
- सिंचाई क्षमता: 368 लाख हेक्टेयर भूमि की अंतिम सिंचाई क्षमता।
- प्रमुख विशेषताएं:
- नदी जोड़ने की परियोजना: यह परियोजना गोदावरी- कृष्णा लिंक को लागू करती है।
- जल स्थानांतरण: गोदावरी नदी से 80 टीएमसी अधिशेष जल कृष्णा नदी में स्थानांतरित किया जाएगा।
- इस जल को आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र के बीच साझा किया जाएगा।
पोलावरम परियोजना की वर्तमान स्थिति:
- आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू ने 2027 तक गोदावरी नदी पर पोलावरम परियोजना को पूरा करने का संकल्प लिया है।
- परियोजना से संबंधित अंतर्राज्यीय विवाद (मुख्य रूप से ओडिशा, छत्तीसगढ़ और आंध्र प्रदेश के बीच) एक महत्वपूर्ण चरण में है।
- केंद्र सरकार ने इस साल के बजट में परियोजना की completion के लिए ₹15,000 करोड़ का आश्वासन दिया है।
बीजद के आरोप:
- बीजू जनता दल (बीजद) ने आरोप लगाया कि केंद्रीय जल आयोग (CWC) ने परियोजना के संशोधित डिज़ाइन के लिए बैकवाटर अध्ययन करने से इनकार कर दिया।
- विशेषज्ञों की सिफारिशों और ओडिशा सरकार की चिंताओं के बावजूद, परियोजना के कारण संभावित डूब क्षेत्र का अभी तक उचित अध्ययन नहीं हुआ है।
- अध्ययन निष्कर्ष:
- 2009 में आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार, 50 लाख क्यूसेक बाढ़ से ओडिशा में जल स्तर 216 फीट तक पहुंच सकता है, जबकि पहले अधिकतम स्तर 22 फीट तय किया गया था।
- 2019 में आईआईटी रुड़की की एक रिपोर्ट के अनुसार, 58 लाख क्यूसेक बाढ़ से जल स्तर 28 फीट तक पहुंच सकता है।
प्रमुख चिंताएं:
- भूमि और लोगों का विस्थापन:
- ओडिशा सरकार ने 2016 में राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) को बताया कि परियोजना से मलकानगिरी जिले में 7,656 हेक्टेयर भूमि डूब सकती है।
- इस क्षेत्र में जंगल की भूमि भी शामिल है और 6,800 से अधिक लोग, जिनमें 5,916 आदिवासी शामिल हैं, विस्थापित हो सकते हैं।
- सुरक्षा उपाय:
- आंध्र प्रदेश जल संसाधन विभाग ने सुझाव दिया है कि ओडिशा में सिलेरु और सबरी नदी के किनारे 30 किमी और छत्तीसगढ़ में सबरी नदी के किनारे 12 किमी तक सुरक्षा बांध बनाने से डूब क्षेत्र को पूरी तरह से रोका जा सकता है।
- केंद्र सरकार ने अगस्त 2024 में ओडिशा और छत्तीसगढ़ के राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों से इस बांध निर्माण पर सार्वजनिक सुनवाई करने को कहा था।
- ओडिशा सरकार की आपत्तियां:
- ओडिशा सरकार ने उच्च सुरक्षा बांध के निर्माण को अव्यावहारिक बताते हुए इसका विरोध किया है।
- उनका कहना है कि इससे जंगल की भूमि का बड़ा हिस्सा प्रभावित होगा और ओडिशा के क्षेत्रों में बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
- अब तक ओडिशा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने सार्वजनिक सुनवाई नहीं की है।