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Port Blair का नाम बदलकर श्री विजयपुरम रखा गया

चर्चा में क्यों ?

हाल ही में केंद्रीय मंत्री अमित शाह (Union Minister Amit Shah) ने शुक्रवार (13 सितंबर) को अंडमान और निकोबार द्वीप समूह (Andaman and Nicobar Islands) की राजधानी का नाम बदलकर पोर्ट ब्लेयर (Port Blair) से ‘श्री विजयपुरम’ (Shri Vijayapuram) कर दिया है। उन्होंने कहा कि यह नाम बदलने का निर्णय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस सोच से प्रेरित है कि देश को उपनिवेशीय प्रभावों (colonial influences) से मुक्त किया जाए। शाह ने बताया कि पुराना नाम उपनिवेशीय (colonial) था, जबकि श्री विजयपुरम (Shri Vijayapuram) हमारे स्वतंत्रता संग्राम की जीत और अंडमान द्वीप समूह की महत्वपूर्ण भूमिका का प्रतीक है।

अंडमान और निकोबार (Andaman and Nicobar):

  • अंडमान और निकोबार द्वीप समूह दो मुख्य द्वीप समूहों से मिलकर बना है: अंडमान द्वीप और निकोबार द्वीप (Andaman Islands and Nicobar Islands)।
  • इसका कुल क्षेत्रफल 8,249 वर्ग किलोमीटर है।
  • इस द्वीप समूह (archipelago) में कुल 836 द्वीप शामिल हैं, जिनमें से कुछ छोटे द्वीप और चट्टानी हिस्से हैं।
  • इनमें से लगभग 38 द्वीप स्थायी रूप से आबाद (permanently inhabited) हैं।
  • यह केंद्र शासित प्रदेश (Union Territory) भारत सरकार द्वारा अंडमान-निकोबार प्रशासन के माध्यम से शासित होता है।
  • पोर्ट ब्लेयर (Port Blair) इसकी राजधानी है।

पोर्ट ब्लेयर का नामकरण: ऐतिहासिक पृष्ठभूमि (Naming of Port Blair: Historical Background):

प्रारंभिक इतिहास (Early History):

पोर्ट ब्लेयर (Port Blair) का नामकरण अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह के केंद्र में स्थित एक प्रमुख बंदरगाह और प्रशासनिक शहर के रूप में किया गया है। अंडमान द्वीपों की इतिहास की जड़ें अत्यंत प्राचीन काल से जुड़ी हुई हैं। यहाँ पर 2000 ईसा पूर्व से विभिन्न आदिवासी जनजातियाँ बसी हुई थीं, जिनमें प्रमुख रूप से ओंगेस (Onges), जारवा (Jarawa), सेंटिनलिस (Sentinelese) और अन्य आदिवासी समूह शामिल थे। वे अपनी पारंपरिक जीवनशैली में वन्य जीवन पर निर्भर थे और बाहरी दुनिया से अलग-थलग रहते थे।

प्रारंभिक उल्लेख (Early mention):

अंडमान द्वीपसमूह का यूरोपियों द्वारा सबसे पहला उल्लेख 9वीं सदी के अरब व्यापारी सुलैमान (Solomon) के यात्रा वृतांत में मिलता है। उसने इन द्वीपों का नाम ‘आंगमान’ (Angman) रखा था, जो शायद संस्कृत शब्द ‘अंधमान’ (हनुमान से व्युत्पन्न/derived from Hanuman) से आया हो। यह उल्लेख दर्शाता है कि भारतीय उपमहाद्वीप के व्यापारी और यात्रा करने वाले लोग अंडमान द्वीपों के बारे में जानते थे।

औपनिवेशिक युग का प्रारंभ (Beginning of the colonial era):

  • 17वीं शताब्दी तक, यूरोपीय शक्तियाँ (Beginning of the colonial era:), विशेष रूप से ब्रिटिश (British), डच (Dutch) और पुर्तगाली (Portuguese), भारतीय उपमहाद्वीप में अपना प्रभाव स्थापित करने का प्रयास कर रहे थे।
  • अंडमान द्वीपों का पहला व्यवस्थित सर्वेक्षण 1789 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी (British East India Company) द्वारा किया गया।
  • 1789 में ही लेफ्टिनेंट आर्चिबाल्ड ब्लेयर, एक ब्रिटिश नौसेना अधिकारी, को अंडमान द्वीपों पर ब्रिटिश नौसैनिक अड्डा स्थापित करने के लिए भेजा गया।

आर्चिबाल्ड ब्लेयर और नामकरण (Archibald Blair and Naming):

  • आर्चिबाल्ड ब्लेयर (Archibald Blair) ने अंडमान द्वीपसमूह का सर्वेक्षण करने के बाद उत्तरी अंडमान में एक नौसैनिक अड्डा (naval base in North Andaman) स्थापित करने का सुझाव दिया।
  • इसके बाद, ब्रिटिश सरकार ने 1789 में ‘चाथम आइलैंड’ (Chatham Island) पर एक बस्ती की स्थापना की, जिसे आज पोर्ट ब्लेयर के नाम से जाना जाता है।
  • यह नामकरण आर्चिबाल्ड ब्लेयर के सम्मान में किया गया था, क्योंकि उन्होंने इस बंदरगाह के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
  • इस बस्ती का नाम ‘ब्लेयर’ के नाम पर रखा गया, और इसे ‘पोर्ट ब्लेयर’ के नाम से जाना जाने लगा। यह नाम तभी से प्रयोग में आया और इसने ब्रिटिश उपनिवेशवाद के दौरान अंडमान द्वीपों के प्रमुख केंद्र के रूप में स्थान बना लिया।

काले पानी की सजा और सेलुलर जेल (Black Water Punishment and Cellular Jail):

19वीं शताब्दी (19th century) के उत्तरार्ध में, पोर्ट ब्लेयर का नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के साथ जुड़ गया। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद, ब्रिटिश सरकार ने अंडमान द्वीपों को राजनीतिक कैदियों (political prisoners) को निर्वासित करने का केंद्र बनाया। इस निर्वासन को काले पानी की सजा कहा जाता था, और कैदियों को अंडमान की दूरस्थता में कठोर कारावास दिया जाता था।

1896 में पोर्ट ब्लेयर में ‘सेलुलर जेल’ (Cellular Jail) का निर्माण शुरू हुआ, जो 1906 में पूरी तरह से तैयार हुआ। यह जेल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के वीरों जैसे कि वीर सावरकर (Veer Savarkar), बटुकेश्वर दत्त (Batukeshwar Dutt) और अन्य प्रमुख नेताओं को काले पानी की सजा देने के लिए उपयोग की गई। इस जेल ने पोर्ट ब्लेयर को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक विशेष स्थान दिया।

भारत की स्वतंत्रता के बाद (After the Independence of India):

भारत की स्वतंत्रता के बाद, पोर्ट ब्लेयर का महत्व और बढ़ गया। 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद, अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह का प्रबंधन भारत सरकार के हाथों में आ गया। पोर्ट ब्लेयर को इस द्वीपसमूह की राजधानी बनाया गया। आज, यह शहर पर्यटन (tourism), प्रशासन और सांस्कृतिक (administration and cultural) दृष्टिकोण से अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह का प्रमुख केंद्र है।

पोर्ट ब्लेयर का चोल और श्रीविजय से संबंध (Port Blair’s connection to the Cholas and Srivijayas):

11वीं सदी में चोल सम्राट राजेंद्र प्रथम (Rajendra I) ने अंडमान द्वीपों (Andaman Islands) का इस्तेमाल श्रीविजय साम्राज्य (वर्तमान इंडोनेशिया) पर हमले के लिए एक नौसैनिक अड्डे के रूप में किया था। तंजावुर में मिले एक शिलालेख (1050 CE) के अनुसार, चोलों ने इन द्वीपों को “मा-नक्कवरम” (Ma-Nakkavaram) कहा, जो बाद में ब्रिटिश काल में निकोबार नाम बना।

इतिहासकारों का मानना है की चोलो ने श्रीविजय साम्राज्य (Srivijaya Empire) पर हमला इसलिए किया था क्योंकि श्रीविजय ने चोलों के व्यापार में रुकावट का कारण बन रहा था, या राजेंद्र प्रथम अपनी समुद्री विजय और विस्तार की आकांक्षा रखते थे।

  • अमेरिकी इतिहासकार जी डब्ल्यू स्पेंसर ( W. Spencer) के अनुसार, यह हमला चोल साम्राज्य के विस्तार का हिस्सा था, जो दक्षिण भारत और श्रीलंका के अन्य साम्राज्यों के खिलाफ भी युद्ध कर रहा था।

शिलालेखों के अनुसार, राजेंद्र प्रथम (Rajendra I ) ने श्रीविजय पर हमला कर वहां के राजा संग्राम विजयत्तुंगवर्मन (Vijayattungavarman) को बंदी बनाया और बौद्ध साम्राज्य से भारी मात्रा में खजाना लूटा, जिसमें श्रीविजय का प्रसिद्ध विद्याधर तोरण‘ (जवाहरातों से सजी युद्ध द्वार) भी शामिल था।

नामकरण बदलने के पीछे का कारण (Reason behind changing the nomenclature):

नाम बदलने के पीछे का करना उपनिवेशीय प्रभावों (colonial influences) से मुक्ति पाना है।

भारत के प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी जी ने  15 अगस्त 2022 को लाल किले से अमृत काल के पाँच प्रण लिए थे जिनमे से एक प्रण था की “गुलामी का एक भी अंश अगर अब भी है, तो उसको किसी भी हालत में बचने नहीं देना है”।

  • इसके बाद से कई नाम बदले गए जैसे पुराने संसद भवन का, राजपथ का, मुगल गार्डन का, हिन्द महासागर के तीन अंतर्जलीय संरचनाएँ के नाम, और राष्ट्रपति भवन के अशोक हाल और दरबार हाल के नाम बदले गए इसके अतिरिक्त भी और कई बदलाव हुए नई शिक्षा का लागू होना, क्रिमिनल नियमों मे बदलाव होना आदि।
  • यह सभी बदलाव उपनिवेशीय प्रभावों (colonial influences) से मुक्ति पाने के लिए किए गए थे, और भारत के गौरव को बढ़ाने और उनके सम्मान के लिए किए गए है।
  • और अब पोर्ट ब्लेयर का नाम बदलकर भारत ने यह साबित कर दिया है की वह विदेशी प्रभावों को भारत से मिटा देगा और भारत के गौरव और सम्मान को बढ़ावा देगा।

अंडमान और निकोबार द्वीपों का भारत के लिए महत्व और विशेषता (Importance and Features of Andaman and Nicobar Islands for India):

  1. भौगोलिक-रणनीतिक और भौगोलिक-राजनीतिक महत्व (Geo-strategic and geo-political importance):
  • इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में शांति और सुरक्षा (Peace and security in the Indo-Pacific region): अंडमान और निकोबार द्वीपों की रणनीतिक स्थिति का उपयोग करके भारत इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में ‘सुरक्षा प्रदाता’ (‘security provider) की भूमिका के रूप मे कर सकता है।
  • समुद्री साझेदारी का विस्तार (Expanding maritime partnerships): इन द्वीपों की भौगोलिक स्थिति भारत की अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और फ्रांस के साथ समुद्री साझेदारी को मजबूत करती है।
  • चीन के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला (Countering China’s growing influence): अंडमान और निकोबार द्वीप ‘धातु श्रृंखला’ की तरह बंगाल की खाड़ी से लेकर मलक्का जलडमरूमध्य (Strait of Malacca) तक फैले हुए हैं, जो चीन की भारतीय महासागर तक पहुंच को रोक सकते हैं। यहां सैन्य संरचना चीन के लिए ‘मलक्का डाइलेमा’ (‘Malacca Dilemma) पैदा करती है।
  • समुद्री चोक प्वाइंट्स की सुरक्षा (Security of maritime choke points): इन द्वीपों की स्थिति भारत को मलक्का जलडमरूमध्य की सुरक्षा का फायदा देती है, जहां से हर साल लगभग 30% वैश्विक व्यापारिक माल के साथ 90,000 से अधिक व्यापारी जहाज गुजरते हैं।
  1. भौगोलिक-आर्थिक महत्व (Geo-economic importance):
  • खनिज संसाधन (Mineral resources): ये द्वीप भारत को 3,00,000 वर्ग किलोमीटर का विशेष आर्थिक क्षेत्र प्रदान करते हैं, जिसमें समुद्र के नीचे हाइड्रोकार्बन और खनिज भंडार की संभावना है।
  • पर्यटन की संभावनाएं(Tourism potential): अंडमान और निकोबार द्वीपों के सुंदर समुद्र तटों में बड़ा पर्यटन अवसर है, जो भारत के आतिथ्य क्षेत्र में विदेशी निवेश को आकर्षित कर सकता है।
  • समुद्री और स्टार्टअप हब (Maritime and Startup Hub): NITI Aayog ने अंडमान और निकोबार द्वीपों को समुद्री और स्टार्टअप हब के रूप में विकसित करने की संभावनाएं पहचानी हैं। जैसे, NITI Aayog द्वारा ग्रेट निकोबार के लिए प्रस्तावित परियोजनाओं में अंतरराष्ट्रीय कंटेनर टर्मिनल, हवाई अड्डा और टाउनशिप कॉम्प्लेक्स शामिल हैं।
  1. सामाजिक महत्व (Social significance):
  • जनजातियों (Tribes): यहां 5 विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूह रहते हैं – ग्रेट अंडमानीज, जरावा, ओंगे, शॉम्पेन और नॉर्थ सेंटिनलीज़, जो मानवशास्त्रीय अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण हैं।
  • मानवीय सहायता और आपदा राहत (Humanitarian assistance and disaster relief): अंडमान और निकोबार द्वीप भारत को आपदा राहत, चिकित्सा सहायता, समुद्री लुटेरों का मुकाबला, और विमान/पनडुब्बी खोज एवं बचाव कार्यों में सहायता प्रदान करने का अवसर देता है।

चुनौतियां:

  • पर्यावरणीय चिंताएं (Environmental concerns): बड़े पैमाने पर विकास परियोजनाओं से यहां के पर्यावरण, वनस्पति और जीवों को खतरा है। जैसे, प्रस्तावित ग्रेट निकोबार परियोजना से गालाथिया बे क्षेत्र में विशाल लेदरबैक कछुए और प्रवाल भित्तियों को खतरा हो सकता है।
  • भूराजनीतिक असुरक्षा (Geopolitical insecurity): म्यांमार के कोको द्वीप पर स्थित चीनी सैन्य सुविधा, जो अंडमान और निकोबार द्वीप से 55 किमी उत्तर में है, भारत की समुद्री सुरक्षा और नीली अर्थव्यवस्था के लिए खतरा है।
  • समुद्री चुनौतियां (Maritime challenges): समुद्री क्षेत्र से अवैध प्रवास, मानव तस्करी, शिकार और अन्य समुद्री खतरों का सामना करना पड़ता है।
  • भूवैज्ञानिक असुरक्षा (Geological vulnerability): ये द्वीप भूवैज्ञानिक रूप से सक्रिय क्षेत्र में स्थित हैं, जिससे यहां प्राकृतिक आपदाओं का खतरा बना रहता है। जैसे, 2004 की सुनामी और भूकंप ने निकोबार द्वीपों की एक-तिहाई आबादी और 90% मैंग्रोव नष्ट कर दिए थे।
  • समन्वय की कमी (Lack of coordination): द्वीपों के विकास और रणनीतिक संरचना में कई मंत्रालयों और विभागों की भागीदारी होती है, जिससे समन्वय में चुनौतियां आती हैं।
  • जनजातीय क्षेत्रों में अतिक्रमण (Encroachment in tribal areas): विकास के नाम पर जनजातीय क्षेत्रों में अतिक्रमण और प्रभावी पुनर्वास कार्यक्रम की कमी से इन समुदायों को नुकसान हो रहा है।
  • सामाजिक-आर्थिक चुनौतियां (Socio-economic challenges): बाहरी लोगों, नौकरी तलाशने वालों और प्रवासियों के आगमन से यहां सामाजिक और आर्थिक समस्याएं बढ़ रही हैं। जीवन यापन की ऊंची लागत, रोजगार के अवसरों की कमी और मुख्य भूमि से दूरी के कारण द्वीपवासियों में नकारात्मकता बढ़ रही है।

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