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सार्वजनिक स्वास्थ्य शिक्षा

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संदर्भ:

भारत का सार्वजनिक स्वास्थ्य शिक्षा क्षेत्र गंभीर संकट का सामना कर रहा है। इसकी प्रमुख चुनौतियों में रोजगार की कमी, मानकीकरण का अभाव और वित्तीय संसाधनों की कमी शामिल हैं, जिससे इस क्षेत्र की प्रगति बाधित हो रही है।

WHO से अमेरिका की वापसी का वैश्विक प्रभाव:

  • अमेरिका के WHO से हटने और US-AID फंडिंग में कटौती के फैसले से वैश्विक सहायता और स्वास्थ्य सेवाएं प्रभावित हुई हैं। हालांकि, भारत की स्वास्थ्य प्रणाली अंतरराष्ट्रीय सहायता पर केवल 1% निर्भर होने के कारण, इस फैसले का सीमित प्रभाव पड़ा है।

सार्वजनिक स्वास्थ्य शिक्षा:

  1. परिभाषा: सार्वजनिक स्वास्थ्य शिक्षा का उद्देश्य पेशेवरों को रोगों की रोकथाम, स्वास्थ्य प्रबंधन (Healthcare Management), महामारी विज्ञान (Epidemiology), और स्वास्थ्य नीतियों (Health Policies) में प्रशिक्षित करना है।
  2. संवैधानिक प्रावधान: भारतीय संविधान का अनुच्छेद 47 राज्य को यह निर्देश देता है कि वह सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार को अपनी प्राथमिक जिम्मेदारी बनाए।

भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य शिक्षा का विकास:

  1. प्रारंभिक विकास:
    • भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य शिक्षा की शुरुआत औपनिवेशिक युग में हुई, लेकिन यह लंबे समय तक चिकित्सा प्रशिक्षण (Medical Training) में ही सीमित रही।
    • ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ हाइजीन एंड पब्लिक हेल्थ (1932) और उसके बाद सामुदायिक चिकित्सा पाठ्यक्रम (Community Medicine Courses) प्रारंभिक सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रशिक्षण प्रयास थे।
  2. विकास की गति:
    • 2005 के बाद, राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (National Rural Health Mission – NRHM) के लागू होने के साथ इसमें तेजी आई।
    • MPH (Master of Public Health) कार्यक्रमों की संख्या 2000 में 1 से बढ़कर आज 100 से अधिक हो गई है।
    • हालांकि, सरकारी नियुक्तियों की संख्या सीमित रही, जबकि स्नातकों की संख्या में वृद्धि होती रही, जिससे अधिक आपूर्ति की स्थिति उत्पन्न हो गई।

सार्वजनिक स्वास्थ्य स्नातकों के सामने चुनौतियाँ:

  1. आपूर्ति और मांग में असंतुलन:
    • प्रवेश स्तर की सार्वजनिक स्वास्थ्य नौकरियों के लिए बहुत अधिक आवेदक होते हैं, जबकि पद सीमित हैं।
    • सरकारी नियुक्तियों में कमी और सार्वजनिक स्वास्थ्य भूमिकाओं में कमी से समस्या और गंभीर हो जाती है।
  2. निजी क्षेत्र का बढ़ता वर्चस्व:
    • निजी स्वास्थ्य प्रणाली (Private Healthcare System) में सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों की बजाय अस्पताल/व्यवसाय प्रबंधन (Hospital/Business Management) पेशेवरों को प्राथमिकता दी जाती है।
    • शोध और विकास के अवसर काफी हद तक विदेशी वित्त पोषण पर निर्भर हैं, जो धीरे-धीरे घट रहा है।
  3. शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर चिंताएँ:
    • कई MPH कार्यक्रम मानकीकरण की कमी से ग्रस्त हैं और संकाय अक्सर पर्याप्त रूप से प्रशिक्षित नहीं होते।
    • MPH शिक्षा की निगरानी के लिए NMC या UGC जैसी कोई एकल नियामक संस्था (Regulatory Body) नहीं है।
    • संस्थानों के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा के कारण प्रवेश मानकों में गिरावट आई है।

आगे की राह:

  • नए सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थान: पिछड़े राज्यों में MPH कॉलेजों की स्थापना की जाए।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी: प्रशिक्षण क्षमता बढ़ाने के लिए सार्वजनिक-निजी साझेदारी को मजबूत किया जाए।
  • प्रशिक्षण: सभी MPH पाठ्यक्रमों में फील्ड वर्क को अनिवार्य किया जाए।
  • नौकरी के अवसर बढ़ाना: राज्य स्तर पर पब्लिक हेल्थ कैडर बनाकर रोजगार के अवसर बढ़ाए जाएं।
  • सरकारी स्वास्थ्य प्रणाली में भर्ती: प्राथमिक, राज्य और राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रणालियों में भर्ती प्रक्रिया तेज की जाए
  • केंद्रीय नियामक निकाय: UGC या NMC के तहत सार्वजनिक स्वास्थ्य शिक्षा परिषद (Public Health Education Council) स्थापित की जाए।
  • प्रशिक्षण और योग्यता का मानकीकरण: संकाय योग्यता, व्यावहारिक प्रशिक्षण और पाठ्यक्रम को सामान्य मानकों पर लाया जाए।

 

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