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संदर्भ:
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने न्यू इंडिया को-ऑपरेटिव बैंक में धन के दुरुपयोग की आशंका के चलते हस्तक्षेप किया है। केंद्रीय बैंक ने एक प्रशासक नियुक्त किया और जमाकर्ताओं की सुरक्षा के लिए कुछ प्रतिबंध लगाए हैं।
सहकारी बैंक (को-ऑपरेटिव बैंक):
- परिभाषा:
- सहकारी बैंक एक सहकारी समिति होती है, जो राज्य सहकारी समितियाँ अधिनियम या बहु-राज्य सहकारी समितियाँ अधिनियम, 2002 के तहत पंजीकृत होती है और बैंकिंग सेवाएँ प्रदान करती है।
- ये बैंक सदस्यों के स्वामित्व और संचालन में होते हैं, जो स्वयं ग्राहक भी होते हैं।
- इन बैंकों में “एक व्यक्ति, एक वोट” के सहकारी सिद्धांत के आधार पर सभी सदस्यों के समान मतदान अधिकार होते हैं।
- प्रकार:
- शहरी सहकारी बैंक (Urban Cooperative Banks – UCBs)
- ग्रामीण सहकारी बैंक (Rural Cooperative Banks – RCBs)
- उद्देश्य:
- ग्रामीण वित्तपोषण (Rural Financing) और सूक्ष्म-वित्तपोषण (Micro-Financing) को बढ़ावा देना।
- कृषि, लघु उद्योगों और स्वरोजगार को वित्तीय सहायता प्रदान करना।
भारत में सहकारी बैंकों का नियमन:
भारत में सहकारी बैंकों का नियमन दो संस्थाएँ करती हैं:
- भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI):
- बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 और सहकारी समितियों पर बैंकिंग कानून (अनुप्रयोग) अधिनियम, 1965 के तहत RBI इन बैंकों के बैंकिंग से जुड़े पहलुओं का नियमन करता है।
- इसमें पूंजी पर्याप्तता (Capital Adequacy), जोखिम नियंत्रण (Risk Control) और ऋण देने के नियम (Lending Norms) शामिल हैं।
- सहकारी समितियों के रजिस्ट्रार:
- राज्य या केंद्र सरकार के अंतर्गत आने वाले यह रजिस्ट्रार इन बैंकों के प्रबंधन-संबंधी पहलुओं का निरीक्षण करते हैं।
- इसमें पंजीकरण (Registration), प्रबंधन (Management), लेखा परीक्षा (Audit), निदेशक मंडल का विघटन और परिसमापन (Liquidation) शामिल है।
शहरी सहकारी बैंक (Urban Cooperative Banks):
परिचय:
- ये प्राथमिक सहकारी बैंक होते हैं जो शहरी और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में कार्यरत हैं।
- इनका कानूनी दर्जा राज्य सहकारी समितियों अधिनियम या बहु-राज्य सहकारी समितियों अधिनियम, 2002 के तहत पंजीकृत होता है।
- भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 के तहत इनकी बैंकिंग गतिविधियों का नियमन और पर्यवेक्षण करता है।
शहरी सहकारी बैंकों से जुड़े प्रमुख मुद्दे
- कम पूंजीकरण (Low Capitalization) – कई UCBs में पूंजी पर्याप्तता का स्तर कम होता है, जिससे वे आर्थिक संकटों के प्रति संवेदनशील होते हैं।
- गवर्नेंस समस्याएँ: धोखाधड़ी और कुप्रबंधन के मामलों से निवेशकों में चिंता बढ़ती है।
- उच्च गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाँ (High NPAs)– बढ़ते NPA से इन बैंकों की लाभप्रदता और वित्तीय स्थिरता प्रभावित होती है।
शहरी सहकारी बैंकों के सुधार हेतु उठाए गए कदम:
- नया त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई (PCA) ढांचा: RBI की यह नियामक प्रणाली वित्तीय रूप से कमजोर UCBs पर कुछ प्रतिबंध लगाकर उनकी स्थिति सुधारने में मदद करती है।
- राष्ट्रीय शहरी सहकारी वित्त एवं विकास निगम (NUCFDC): यह राष्ट्रीय स्तर की छत्र संगठन है, जो UCBs की कार्य क्षमता और दक्षता बढ़ाने का काम करती है।
- बैंकिंग विनियमन (संशोधन) अधिनियम, 2020: यह RBI कोजरूरत पड़ने पर किसी सहकारी बैंक के बोर्ड को भंग करने का अधिकार देता है।
- अन्य सुधार: UCBs को चार स्तरों में वर्गीकृत किया गया है। उन्हें शेयर जारी करने की अनुमति दी गई है ताकि वे पूंजी जुटा सकें।