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भारत में आर्थिक विकास के बीच ग्रामीण मजदूरी की स्थिरता एक महत्वपूर्ण विरोधाभास है, जो कि देश में समावेशी विकास और ग्रामीण समृद्धि के लक्ष्यों को चुनौती देता है। पिछले कुछ वर्षों में अर्थव्यवस्था की प्रभावशाली वृद्धि दर के बावजूद, ग्रामीण मजदूरी विशेष रूप से वास्तविक रूप में स्थिर बनी हुई है। इसके कई कारण हैं और सरकार ने इसे कम करने के लिए कई प्रयास किए हैं, फिर भी दीर्घकालिक समाधान हेतु अतिरिक्त नीतिगत कदमों की आवश्यकता है।
ग्रामीण मजदूरी बनाम आर्थिक विकास: अवलोकन
- आर्थिक विकास दर: भारत की जीडीपी 2019-20 से 2023-24 तक औसतन 4.6% और पिछले तीन वर्षों में 7.8% की दर से बढ़ी है। कृषि क्षेत्र की औसत वृद्धि दर भी 3.6% और 4.2% के बीच रही है।
- मजदूरी वृद्धि डेटा: श्रम ब्यूरो के अनुसार, 2019 से 2024 तक ग्रामीण मजदूरी में नाममात्र वृद्धि 5.2% सालाना रही, लेकिन मुद्रास्फीति समायोजन के बाद यह वास्तविक वृद्धि -0.4% रही।
ग्रामीण मजदूरी में स्थिरता के कारण:
- महिला श्रम बल भागीदारी में वृद्धि:
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- कार्यबल में अधिक महिलाओं की भागीदारी: महिला श्रम बल भागीदारी दर में वृद्धि हुई है, जो 2018-19 में 24.5% से बढ़कर 2023-24 में 41.7% हो गई है, और ग्रामीण महिला श्रम भागीदारी 47.6% हो गई है।
- आपूर्ति में बढ़ोतरी से मजदूरी पर दबाव: महिलाओं की बढ़ती भागीदारी के कारण श्रमिकों की आपूर्ति बढ़ी है, जिससे मांग और आपूर्ति के असंतुलन ने मजदूरी दर पर दबाव बनाया है।
- श्रम मांग में बदलाव:
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- औद्योगिक क्षेत्र की सीमित मांग: भारत में आर्थिक विकास अधिकतर पूंजी-प्रधान क्षेत्रों की ओर झुका है, जिनमें श्रम की आवश्यकता कम होती है। इसका प्रभाव यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों में मजदूरी दर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
- कृषि क्षेत्र पर निर्भरता: अधिकतर ग्रामीण श्रमिक कृषि कार्य में संलग्न हैं, जहाँ उत्पादकता पहले से ही कम है। इससे अधिक श्रम आपूर्ति के कारण ग्रामीण मजदूरी वृद्धि सीमित हो जाती है।
- मुद्रास्फीति का प्रभाव: नाममात्र मजदूरी दरों में वृद्धि होने के बावजूद मुद्रास्फीति समायोजन के बाद वास्तविक मजदूरी में बढ़ोतरी न के बराबर रही है।
समाधान के लिए उठाए गए कदम:
- आय हस्तांतरण योजनाएं:
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- राज्य सरकार की पहलें: महाराष्ट्र की लड़की बहिन योजना जैसी योजनाएं महिलाओं को लक्षित करते हुए उन्हें वित्तीय सहायता प्रदान करती हैं, जो कि उनकी आय में सहायता करती हैं।
- केंद्र सरकार की पहलें: केंद्र सरकार ने किसान परिवारों को पीएम-किसान योजना के तहत वार्षिक ₹6,000 की सहायता और पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत मुफ्त अनाज जैसी योजनाओं से सहायता प्रदान की है।
- कौशल विकास एवं रोजगार सृजन:
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- कौशल प्रशिक्षण और शिक्षा: ग्रामीण क्षेत्रों में श्रमिकों को औद्योगिक क्षेत्रों में रोजगार के अवसर प्रदान करने के लिए कौशल विकास की आवश्यकता है।
- उद्यमिता को बढ़ावा देना: ग्रामीण क्षेत्रों में उद्यमिता और MSME सेक्टर के माध्यम से रोजगार के नए अवसर सृजित किए जा सकते हैं।
- कृषि क्षेत्र का आधुनिकीकरण: कृषि को अधिक उत्पादक बनाने से ग्रामीण मजदूरी वृद्धि में सुधार हो सकता है, जिससे कृषि आधारित ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी।
निष्कर्ष: भारत के आर्थिक विकास के लाभ ग्रामीण मजदूरी में वृद्धि के रूप में नहीं पहुँच पा रहे हैं, जिससे ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच आय असमानता और गहरी होती जा रही है। सरकार की योजनाओं से अल्पकालिक राहत तो मिल रही है, लेकिन दीर्घकालिक सुधार के लिए श्रम मांग के असंतुलन को हल करने, ग्रामीण श्रमिकों की उत्पादकता बढ़ाने, और कौशल विकास को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है।
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