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स्पेस डॉकिंग क्या है?

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संदर्भ:

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) अपने पहले स्पेस डॉकिंग मिशन (SpaDeX) का प्रदर्शन कर रहा है। इस मिशन का उद्देश्य अंतरिक्ष में दो छोटे उपग्रहों को एक साथ लाकर उन्हें जोड़ना (डॉकिंग) है।

स्पेस डॉकिंग क्या है? / What is Docking?

डॉकिंग अंतरिक्ष में दो अंतरिक्ष यानों को जोड़ने की प्रक्रिया है, जिसे मैन्युअल या स्वचालित तरीके से किया जा सकता है। यह प्रक्रिया निम्नलिखित कार्यों के लिए महत्वपूर्ण है:

  1. सहयोगात्मक संचालन: अंतरिक्ष यानों को मिलकर काम करने में सक्षम बनाता है, जैसे अंतरिक्ष स्टेशन के हिस्सों को जोड़ना।
  2. आपूर्ति और चालक दल का परिवहन: अंतरिक्ष यानों के बीच चालक दल, उपकरण या आपूर्ति के आदान-प्रदान की सुविधा प्रदान करता है।
  3. पेलोड अनुकूलन: बड़े पेलोड को लॉन्च करने की अनुमति देता है, जो एकल रॉकेट से संभव नहीं है।

डॉकिंग अंतरिक्ष अन्वेषण और अंतरिक्ष में संरचनाओं जैसे अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) के रखरखाव के लिए एक महत्वपूर्ण क्षमता है।

स्पेडेक्स (SpaDeX):

स्पेडेक्स (SpaDeX – Space Docking Experiment) भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा विकसित एक तकनीकी प्रदर्शन मिशन है, जिसका उद्देश्य अंतरिक्ष में डॉकिंग तकनीक को प्रदर्शित करना है।

उद्देश्य:

  • प्राथमिक लक्ष्य:
    • एसडीएक्स01 (चेसर) और एसडीएक्स02 (टार्गेट) नामक दो छोटे उपग्रहों को निम्न पृथ्वी कक्षा (Low Earth Orbit) में स्वायत्त डॉकिंग और अनडॉकिंग प्रदर्शित करना।
    • उन्नत सेंसर और प्रणोदन प्रणालियों का उपयोग कर डॉकिंग को पूरा करना।
  • द्वितीयक लक्ष्य:
    • उपग्रहों के बीच विद्युत ऊर्जा स्थानांतरण का परीक्षण।
    • अंतरिक्ष यान नियंत्रण और संचालन का प्रदर्शन।
  • मिशन अवधि: दो वर्ष।

मिशन डिजाइन:

  • लॉन्च वाहन: पीएसएलवी (पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल)।
  • परिनियोजन कक्षा: 470 किमी की निम्न पृथ्वी कक्षा।
  • डॉकिंग प्रक्रिया:
    • उपग्रह प्रारंभ में 20 किमी तक अलग होंगे।
    • धीरे-धीरे, वे करीब आकर 3 मीटर की दूरी पर डॉकिंग करेंगे, जहां उनकी गति केवल 10 मिमी/सेकंड होगी।
  • भारतीय डॉकिंग प्रणाली (BDS):
    • समान और लो-इंपैक्ट डॉकिंग तंत्र का उपयोग करता है।
    • एंड्रोजेनस डिज़ाइन (दोनों उपग्रह चेसर और टार्गेट की भूमिका निभा सकते हैं)।

डॉकिंग की चुनौती:

  • उपग्रह 28,800 किमी/घंटा की गति से परिक्रमा करेंगे।
  • सुरक्षित डॉकिंग के लिए उन्हें अपनी आपसी गति को घटाकर 0.036 किमी/घंटा करना होगा।

पीओईएम4 (POEM-4):

  • पीएसएलवी ऑर्बिटल एक्सपेरिमेंटल मॉड्यूल4 अकादमिक संस्थानों और स्टार्टअप्स के 24 पेलोड ले जाएगा।
  • ये पेलोड कक्षा में सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण (Microgravity) वातावरण का उपयोग कर अनुसंधान करेंगे।

Docking का इतिहास

  • 1966: अमेरिका का जेमिनी VIII मिशन, जिसमें अंतरिक्ष यात्री नील आर्मस्ट्रांग शामिल थे, पहली बार एगेना टार्गेट वाहन के साथ डॉकिंग करने वाला पहला मिशन बना।
  • 1967: सोवियत संघ के कोसमोस 186 और 188 ने स्वचालित डॉकिंग का प्रदर्शन किया।
  • 2011: चीन के शेनझोउ 8 ने तियांगोंग 1 अंतरिक्ष प्रयोगशाला के साथ डॉकिंग की।
    • 2012 में पहली बार क्रू डॉकिंग भी सफलतापूर्वक की गई।

भारत के लिए महत्व:

  • भविष्य की परियोजनाएँ: 2035 तक एक अंतरिक्ष स्टेशन और 2040 तक चंद्र मिशन के लिए भारत डॉकिंग तकनीकों पर काम कर रहा है।
  • स्पेडेक्स (SpaDeX): यह मिशन भारत की अंतरिक्ष महत्वाकांक्षाओं को समर्थन देता है, जैसे कि चंद्रमा पर नमूना संग्रह, भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (BAS) का निर्माण और संचालन।
  • चंद्रयान4:
    • इस मिशन में चंद्रमा से नमूने लाने के लिए डॉकिंग तकनीक का उपयोग किया जाएगा।
    • इसमें विभिन्न मॉड्यूल्स को अलग-अलग लॉन्च कर कक्षा में डॉक किया जाएगा।
  • तकनीकी श्रेष्ठता: इस मिशन के जरिए भारत दुनिया का चौथा देश बनेगा (अमेरिका, रूस, और चीन के बाद), जो इन-स्पेस डॉकिंग तकनीक में महारत रखता होगा।

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