चर्चा में क्यों?
संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान लोकसभा में “बैंकिंग कानून (संशोधन) विधेयक, 2024″ पारित किया गया।
- यह विधेयक देश के बैंकिंग कानूनों में बड़े और महत्वपूर्ण बदलावों का प्रस्ताव रखता है।
- इसका उद्देश्य बैंकिंग क्षेत्र को अधिक प्रभावी, पारदर्शी और नागरिकों की बदलती जरूरतों के अनुरूप बनाना है।
बैंकिंग कानून (संशोधन) विधेयक, 2024 में प्रमुख संशोधन (Key amendments in the Banking Laws (Amendment) Bill, 2024):
- नॉमिनी की संख्या में वृद्धि (Increase in the number of nominees): बैंक खातों में नॉमिनी (Nominee) व्यक्तियों की अधिकतम सीमा को मौजूदा 1 से बढ़ाकर 4 कर सकेंगे।
- ‘महत्वपूर्ण हित’ की परिभाषा में बदलाव (Change in the definition of “Substantial Interest”): निदेशक मंडल के लिए ‘महत्वपूर्ण हित’ (Substantial Interest) की परिभाषा में बदलाव करते हुए, ₹5 लाख की मौजूदा सीमा को ₹2 करोड़ तक बढ़ाने का प्रस्ताव। यह सीमा लगभग 60 साल पहले तय की गई थी।
- सांविधिक ऑडिटरों के वेतन में लचीलापन (Flexibility in salaries of statutory auditors): बैंकों को सांविधिक ऑडिटरों (Statutory Auditors) के वेतन निर्धारण में अधिक लचीलापन देने का प्रावधान।
- रिपोर्टिंग तिथियों में बदलाव (Changes in reporting dates): बैंकों की रिपोर्टिंग तिथियों को हर महीने की 15वीं और अंतिम तारीख पर तय करने का प्रस्ताव, जो वर्तमान में दूसरे और चौथे शुक्रवार को होती है।
अगस्त 2024 में लोकसभा में पेश (Introduced in Lok Sabha in August 2024):
बैंकिंग कानून (संशोधन) विधेयक, 2024 को अगस्त 2024 में लोकसभा में पेश किया गया था। इसकी घोषणा 2023-24 के केंद्रीय बजट में की गई थी। इस विधेयक का मुख्य उद्देश्य बैंकिंग गवर्नेंस को सुधारना और निवेशकों की सुरक्षा को मजबूत करना है। यह मौजूदा कानूनों में संशोधन करके बैंकिंग क्षेत्र को और अधिक प्रभावी बनाने की दिशा में कदम उठाएगा।
संशोधन का उद्देश्य (Purpose of the Amendment):
- बैंकिंग गवर्नेंस में सुधार लाना।
- निवेशकों के लिए सुरक्षा उपायों को मजबूत बनाना।
- बैंकिंग क्षेत्र में कानूनी प्रावधानों को अद्यतन और सुसंगत बनाना।
मौजूदा कानूनों में विशेष संशोधन (Special amendments to existing laws):
यह विधेयक निम्नलिखित कानूनों में संशोधन का प्रस्ताव करता है:
- भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934
- बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949
- भारतीय स्टेट बैंक अधिनियम, 1955
- 1970 और 1980 के बैंकिंग कंपनियों (अधिग्रहण और हस्तांतरण) अधिनियम
“पहले और बाद में: बैंकिंग कानूनों में नए संशोधन विधेयक के मुख्य बदलाव” (“Before and After: Key Changes in Banking Laws with the New Amendment Bill”):
- विस्तारित नामांकन प्रक्रिया (Expanded Nomination Process):
- मौजूदा व्यवस्था: वर्तमान नियम के अनुसार, हर बैंक खाते में केवल एक ही नामांकित व्यक्ति (nominee) हो सकता है।
- नए प्रावधान: विधेयक के तहत जमाकर्ताओं को चार नामांकित व्यक्तियों (four nominees) को नामांकित करने की अनुमति दी गई है।
- ये नामांकित व्यक्ति एक साथ या क्रमबद्ध तरीके से सूचीबद्ध किए जा सकते हैं। इसका मतलब है कि जमाकर्ता चार व्यक्तियों को नामांकित कर सकते हैं, जिनके पास जमाकर्ता की मृत्यु के बाद खाते या संपत्ति पर अधिकार होगा।
- समानांतर नामांकन (Simultaneous Nominations): चारों नामांकित व्यक्तियों (nominees) को एक साथ सूचीबद्ध किया जा सकता है।
- क्रमबद्ध नामांकन (Successive Nominations): नामांकित व्यक्तियों को एक तय क्रम (specific order) में सूचीबद्ध किया जाता है। अगर पहला नामांकित व्यक्ति (primary nominee) धन का दावा (claim) नहीं कर पाता, तो दावा अगले व्यक्ति को मिल जाएगा।
- अविकसित संपत्तियों काIEPF में हस्तांतरण (Transfer of Unclaimed Assets to IEPF):
- मौजूदा व्यवस्था: अविकसित लाभांश, शेयर, ब्याज, या बांड को नियमित रूप से किसी कोष में नहीं डाला जाता।
- नए प्रावधान: विधेयक के अनुसार, अगर कोई संपत्ति (जैसे लाभांश, शेयर, या बांड) लगातार सात साल तक बिना दावा किए रहती है, तो उसे निवेशक शिक्षा और सुरक्षा कोष (IEPF) में जमा कर दिया जाएगा। इसके बाद व्यक्ति अपनी संपत्ति या धन की वापसी के लिए IEPF से दावा कर सकते हैं।
- ‘महत्वपूर्ण हित‘ की नई परिभाषा (New Definition of ‘Significant Interest’):
- मौजूदा सीमा: वर्तमान में शेयरधारिता में महत्वपूर्ण हित की सीमा ₹5 लाख है, जो 1968 में तय की गई थी।
- नए प्रावधान: विधेयक में इस सीमा को बढ़ाकर ₹2 करोड़ करने का प्रस्ताव है, जो वर्तमान आर्थिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए किया गया है।
- ऑडिटर मुआवजे में लचीलापन (Flexible Auditor Compensation):
- मौजूदा नियम: सांविधिक ऑडिटरों का मुआवजा (compensation) तय दिशा-निर्देशों के अनुसार होता है।
- नए प्रावधान: विधेयक में बैंकों को उनके सांविधिक ऑडिटरों (statutory auditors) को मुआवजा देने में अधिक लचीलापन दिया गया है, ताकि बैंक बाजार की स्थिति और अपनी विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुसार शुल्क निर्धारित कर सकें।
- रिपोर्टिंग तिथियों का संशोधन (Revised Reporting Dates):
- मौजूदा नियम: बैंकों को वर्तमान में विशिष्ट शुक्रवारों को भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) को सांविधिक रिपोर्ट सौंपनी होती है।
- नए प्रावधान: विधेयक में रिपोर्टिंग की समयसीमा को पखवाड़े, महीने, या तिमाही के अंतिम दिन में दी जा सकेगी।, जिससे रिपोर्टिंग तिथियों को वित्तीय चक्रों के साथ अधिक सुसंगत बनाया जा सके।
- सहकारी बैंकों के लिए संशोधन (Amendments for Cooperative Banks):
- निदेशक कार्यकाल: विधेयक में सहकारी बैंकों के निदेशकों का कार्यकाल 8 साल से बढ़ाकर 10 साल करने का प्रस्ताव है। यह संविधान (97वां संशोधन) अधिनियम, 2011 के अनुरूप है।
- बोर्ड सदस्यता: विधेयक के तहत, एक केंद्रीय सहकारी बैंक का निदेशक राज्य सहकारी बैंक के बोर्ड में भी सेवा दे सकता है, जिससे विभिन्न स्तरों पर सहकारी बैंकों के बीच सहयोग को बढ़ावा मिलता है।
ब्रिटिश काल से भारत में बैंकिंग का इतिहास (History of Banking in India from British Period)
- प्रारंभिक बैंकिंग संस्थान (Early Banking Institutions):
- 1770: बैंक ऑफ हिंदुस्तान (Bank of Hindustan) की स्थापना (यह भारत में स्थापित पहला बैंक था और इसका मुख्यालय कलकत्ता (अब कोलकाता) में था। यह बैंक 1832 में बंद हो गया।)
- 1800: बैंक ऑफ बंगाल (Bank of Bengal) की स्थापना (यह भारतीय उपमहाद्वीप का पहला आधुनिक बैंक था और इसे भारतीय बैंकिंग प्रणाली की नींव माना जाता है।)
- बैंकिंग का विकास (Development of Banking):
- 1806: बैंक ऑफ बंगाल (Bank of Bengal) की स्थापना (यह पहले के कुछ व्यापारिक बैंकों में से एक था और यह भारतीय बैंकिंग प्रणाली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था।)
- 1840: बैंक ऑफ बॉम्बे (Bank of Bombay) की स्थापना (यह भी एक प्रमुख बैंक था और इसका मुख्यालय मुंबई में था।)
- 1843: बैंक ऑफ मद्रास (Bank of Madras) की स्थापना (यह भी एक प्रमुख बैंक था और इसका मुख्यालय मद्रास (अब चेन्नई) में था।)
- बैंकिंग सुधार और केंद्रीय बैंक (Banking Reforms and Central Bank):
- 1865: सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया (Central Bank of India) की स्थापना (यह भारत का पहला बैंक था जो केंद्रीय बैंकिंग की अवधारणा को लेकर स्थापित किया गया था।)
- 1875: सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया (Central Bank of India) को भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की तरह स्थापित किया गया था, जो बाद में 1935 में अस्तित्व में आया।
- बैंकिंग का राष्ट्रीयकरण (Nationalization of Banks):
- 1955: स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (State Bank of India – SBI) का राष्ट्रीयकरण (यह भारत का सबसे बड़ा और प्रमुख बैंक बन गया।)
- 1969: तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व में 14 प्रमुख बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया। इससे बैंकों को सरकारी नियंत्रण में लाया गया और आम जनता के लिए अधिक सुलभ बनाया गया।
- 1980: एक और राष्ट्रीयकरण चरण में 6 और बैंकों को सरकारी नियंत्रण में लाया गया। इससे भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में सरकारी बैंकों की संख्या बढ़ गई
- आर्थिक उदारीकरण और सुधार (Economic Liberalization and Reforms):
- 1991: आर्थिक सुधारों और उदारीकरण के दौर में भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में बड़े बदलाव हुए। निजी बैंकों को स्थापित करने की अनुमति दी गई और बैंकिंग विनियमन अधिनियम (Banking Regulation Act) में महत्वपूर्ण बदलाव किए गए।
- 1993: प्राइवेट सेक्टर बैंकों (Private Sector Banks) की स्थापना की गई। HDFC बैंक, ICICI बैंक, और अन्य निजी बैंकों ने भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- डिजिटल और आधुनिक बैंकिंग (Digital and Modern Banking):
- 2000s: डिजिटल बैंकिंग (Digital Banking) और ऑनलाइन लेन-देन (Online Transactions) की शुरुआत। यह दौर बैंकों के लिए एक महत्वपूर्ण परिवर्तन का समय था, जिसमें तकनीकी प्रगति ने बैंकिंग सेवाओं को और अधिक सुलभ और सुविधाजनक बनाया।
- 2010s: आधार कार्ड (Aadhaar Card) और UPI (Unified Payments Interface) जैसी नई तकनीकों का विकास। इन तकनीकों ने भुगतान प्रणाली को आसान और सुरक्षित बनाया।
- 2020s: डिजिटल और मोबाइल बैंकिंग (Digital and Mobile Banking) का तेजी से प्रसार। (फिनटेक (FinTech) और ब्लॉकचेन (Blockchain) जैसी नई तकनीकों का उपयोग बढ़ा।)
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