सामान्य अध्ययन पेपर I: जल संसाधन सामान्य अध्ययन पेपर II: भारत और इसके पड़ोसी देश, देशों की नीतियों और राजनीति का भारत के हितों पर प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने तिब्बत में चीन द्वारा बनाए जा रहे त्सांगपो बांध परियोजना पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। उनके अनुसार भविष्य में चीन द्वारा यह बांध “जल बम” के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है, जिससे भारत के निचले इलाकों में व्यापक विनाशकारी परिणाम पैदा हो सकते हैं।
त्सांगपो बांध परियोजना का परिचय
- स्थान और भौगोलिक महत्त्व:
- त्सांगपो बांध का निर्माण तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र (टीएआर) के मेडोग काउंटी में प्रस्तावित है। यह स्थान भौगोलिक दृष्टि से अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि यहीं से यारलुंग त्सांगपो नदी तीव्र U-आकार की मोड़ बनाकर भारत के अरुणाचल प्रदेश की ओर बहती है। भारत में यही नदी ब्रह्मपुत्र के नाम से जानी जाती है।
- यह क्षेत्र दुनिया की सबसे गहरी घाटी मानी जाती है, जहां यह नदी तिब्बती पठार से लगभग 25,154 फीट नीचे बहती है।
- जलविद्युत क्षमता:
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- प्रस्तावित त्सांगपो बांध की जल विद्युत क्षमता अत्यधिक प्रभावशाली है। इस परियोजना में यारलुंग त्सांगपो नदी की 50 किलोमीटर लंबी धारा में 2,000 मीटर की ऊर्ध्वाधर ऊंचाई से जल विद्युत उत्पादन किया जा सकेगा। यहां तीव्र ढलान होने के कारण बांध को अत्यधिक जल दाब का लाभ मिलने से अनुमानित 70 मिलियन किलोवाट बिजली उत्पन्न की जा सकेगी।
- बांध से होने वाली अनुमानित बिजली उत्पादन क्षमता लगभग 60,000 मेगावाट (या 60 गीगावाट) है, जो इसे दुनिया के सबसे बड़े जल विद्युत स्रोतों में से एक बनाती हैं।
- यह चीन के तीन गॉर्जेस बांध की उत्पादन क्षमता से तीन गुना अधिक है, जो वर्तमान में दुनिया की सबसे बड़ी जल विद्युत परियोजना है।
- निवेश: त्सांगपो बांध परियोजना को वैश्विक स्तर पर सबसे बड़े बुनियादी ढांचा परियोजना के रूप में देखा जा रहा है, जिसमें लगभग 137 बिलियन डॉलर का बड़ा निवेश किया जाएगा।
चीन का नियंत्रण और त्सांगपो बांध से रणनीतिक लाभ
- आर्थिक लाभ: त्सांगपो बांध का विशाल आकार चीन की ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत कर सकता हैं और वैश्विक ऊर्जा बाजार में उसकी प्रभुत्वता को बढ़ा सकता हैं। इस बांध के निर्माण से तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र को भी महत्वपूर्ण आर्थिक बढ़ावा मिलने की संभावना है। इस परियोजना से अनुमानित 20 अरब युआन (लगभग 3 अरब डॉलर) वार्षिक आय का स्रोत बनने की संभावना है, जिससे एक अविकसित क्षेत्र में नए आर्थिक अवसर उत्पन्न हो सकेंगे।
- जल नियंत्रण और क्षेत्रीय प्रभुत्व: ब्रह्मपुत्र नदी के ऊपरी हिस्से पर नियंत्रण रखते हुए, चीन को इस क्षेत्र में जल प्रवाह पर महत्वपूर्ण नियंत्रण प्राप्त हो सकेगा। जिसका प्रभाव निचले प्रवाह वाले देशों, जैसे भारत और बांग्लादेश पर पड़ सकता है। यह बांध चीन की रणनीति का अहम हिस्सा है, जिससे वह क्षेत्र के प्राकृतिक संसाधनों पर अपना नियंत्रण स्थापित कर चाहता है।
- नवीकरणीय ऊर्जा और कार्बन तटस्थता में समर्थन: त्सांगपो बांध चीन के नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों के साथ मेल खाता है। चीन जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता कम करने और स्वच्छ ऊर्जा के हिस्से को बढ़ाने पर जोर दे रहा है। इस परियोजना से उत्पन्न जल विद्युत चीन के 2060 तक कार्बन तटस्थता के लक्ष्य को हासिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
- जल संकट का समाधान: चीन के उत्तरी क्षेत्रों में जल संकट गंभीर है, जिसमें अत्यधिक जल उपयोग, औद्योगिकीकरण और जलवायु परिवर्तन शामिल है। यारलुंग त्सांगपो के जल प्रवाह को नियंत्रित कर, चीन अपने दक्षिण-उत्तर जल वितरण परियोजना के तहत पानी को उत्तर की ओर मोड़ सकता है, जिससे बीजिंग और तियानजिन जैसे शुष्क क्षेत्रों में जल संकट को हल करने में मदद मिल सकती है।
त्सांगपो बांध परियोजना से संबंधित चिंताएं
- पर्यावरणीय और पारिस्थितिकीय जोखिम:
- ब्रह्मपुत्र नदी अरुणाचल प्रदेश, असम और बांग्लादेश के निचले क्षेत्रों में कृषि और पारिस्थितिकीय संतुलन के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है। प्रस्तावित यह बांध नदी के बहाव में स्थित सिल्ट को अवरुद्ध कर सकता है, जो मृदा की उर्वरता को प्रभावित कर सकता है। इससे वहां कृषि उत्पादकता घटेगी और खेतों की उपज प्रभावित होगी।
- इस परियोजना से जैव विविधता में भी भारी कमी आ सकती है, क्योंकि यह क्षेत्र संकटग्रस्त प्रजातियों का घर है और पारिस्थितिकी के लिहाज से एक हॉटस्पॉट माना जाता है। नदी के बहाव में बदलाव से स्थानीय वन्यजीवों के आवासों पर असर पड़ेगा।
- नदी के प्रवाह में परिवर्तन से जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम संबंधी घटनाओं, जैसे बाढ़ और सूखा, का जोखिम बढ़ सकता है।
- जल सुरक्षा और भू-राजनीतिक जोखिम:
- विशेषज्ञों का कहना है कि इस बांध से नदी के जल प्रवाह में गंभीर व्यवधान हो सकता है। इससे शुष्क मौसम में जल की कमी हो सकती है और मानसून के दौरान बाढ़ का खतरा बढ़ सकता है।
- जल के “हथियार” के रूप में उपयोग (जल बम) का खतरा भी एक प्रमुख चिंता का विषय है। चीन के पास नदी पर नियंत्रण होने से उसे भारत और बांग्लादेश जैसे निचले देशों पर प्रभाव डालने का अवसर मिलेगा, जिससे क्षेत्रीय तनाव बढ़ सकता है।
- यह बांध जल प्रदूषण का कारण भी बन सकता है। बांध के पीछे जमा पानी में प्रदूषक एकत्र हो सकते हैं, जिससे निचले क्षेत्रों का जल गुणवत्ता पर असर पड़ सकता है, जिससे इस क्षेत्र में रहने वाले लाखों लोगों के स्वास्थ्य और पेयजल आपूर्ति पर संकट खड़ा हो सकता है।
‘जल बम’ के बारे में:
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भारत के लिए चीन के साथ जल-साझाकरण संबंधी चिंताएँ
- औपचारिक जल-साझाकरण समझौते की कमी: भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि के समान, ब्रह्मपुत्र नदी के संबंध में भारत और चीन के बीच कोई औपचारिक जल-साझाकरण समझौता नहीं है। इस समझौते के अभाव में भारत-चीन जल प्रवाह नियंत्रण के संदर्भ में, चीन अनुचित कार्रवाईयों का लाभ ले सकता है।
- समझौता ज्ञापनों की समाप्ति: 2002 में भारत और चीन के बीच एक MoU पर हस्ताक्षर किए गए थे, जिसमें जलविज्ञान डेटा के आदान-प्रदान का प्रावधान था। इस MoU का कई बार विस्तार किया गया, लेकिन 2023 में इसकी समय सीमा समाप्त हो चुकी हैं और अब तक इसका नवीनीकरण भी नहीं किया गया है।
- ELM की प्रभावहीनता: 2006 में स्थापित एक्सपर्ट लेवल मेकेनिज़म (ELM) का उद्देश्य जल-संबंधी मुद्दों को हल करना और भारत और चीन के बीच संवाद को सुविधाजनक बनाना था। हालांकि, दो दशकों से अधिक समय से यह तंत्र कार्यरत होने के बावजूद, यह प्रमुख विवादों को सुलझाने या जल साझाकरण की समस्याओं को संबोधित करने में अप्रभावी ही सिद्ध हुआ है।
- अंतरराष्ट्रीय सीमा पार जल के लिए वैश्विक ढांचे का अभाव: भारत और चीन, संयुक्त राष्ट्र जल संधि (1997) में अभी तक शामिल नहीं हुए हैं। यह एक वैश्विक कानूनी ढांचा है, जिसकी अनुपस्थिति जल सहयोग और वितरण को जटिल बनाती है। भारत और चीन में नदी के जल उपयोग को लेकर, उनके समान और पर्यावरणीय संरक्षण की गारंटी देने के लिए कोई अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताएँ नहीं हैं।
भारत-चीन जल संधियाँ:भारत और चीन, जल-साझाकरण के लिए विभिन्न समझौतों के माध्यम से सहयोग करने का प्रयास करते रहे हैं। इन समझौतों का उद्देश्य सीमा पार नदियों के संबंध में जानकारी साझा करना और समय रहते चेतावनी देना है।
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भारत द्वारा उठाए जाने योग्य रणनीतिक उपाय
- जल-साझाकरण समझौते का समर्थन: भारत को चीन के साथ कानूनी रूप से बाध्यकारी जल-साझाकरण संधि का समर्थन करना चाहिए। यह समझौता आपसी विश्वास और समान रूप से नदी प्रबंधन पर केंद्रित होना चाहिए, ताकि ब्रह्मपुत्र जैसी सीमा पार नदियों के जल संसाधनों का उचित वितरण और उपयोग सुनिश्चित किया जा सके।
- जल भंडारण प्रणालियाँ और बाढ़ नियंत्रण: अरुणाचल प्रदेश और असम में जल प्रवाह में बाधाओं के कारण उत्पन्न होने वाले खतरों को कम करने के लिए उन्नत जल भंडारण प्रणालियाँ और बाढ़ नियंत्रण परियोजनाओं को विकसित किया जाना चाहिए।
- ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए हाइड्रोपावर परियोजनाएँ: दिबांग घाटी में 10 GW जलविद्युत परियोजना और सियांग जलविद्युत बांध जैसी परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित करना भारत की ऊर्जा सुरक्षा और जल प्रबंधन क्षमता को बढ़ावा देगा। ये रणनीतिक कदम चीन की जलविद्युत परियोजनाओं से निपटने में सहायक होंगे।
- एआई आधारित उपकरण: बाढ़ की सटीक भविष्यवाणी और वास्तविक समय में जलविज्ञान डेटा साझा करने के लिए एआई-आधारित बाढ़ पूर्वानुमान उपकरणों का कार्यान्वयन किया जाना चाहिए, जिससे जोखिमों का प्रभावी प्रबंधन किया जा सके।
सियांग जलविद्युत बाँध परियोजना
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UPSC पिछले वर्षों के प्रश्न (PYQs)
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