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अमेरिका ने भारत-अमेरिका परमाणु समझौते को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबंधों में ढील दी  

सामान्य अध्ययन पेपर- II: अंतर्राष्ट्रीय संबंध, वैश्विक संस्थाओं की भूमिका, देश की नीतियों और राजनीति का भारत के हितों पर प्रभाव

सामान्य अध्ययन पेपर- III: ऊर्जा सुरक्षा

चर्चा में क्यों? 

संयुक्त राज्य अमेरिका ने तीन भारतीय परमाणु संस्थाओं—भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर (BARC), इंदिरा गांधी एटॉमिक रिसर्च सेंटर, और इंडियन रियर अर्थ्स लिमिटेड—को अमेरिकी एंटिटी लिस्ट से हटा दिया है। यह निर्णय भारत-अमेरिका परमाणु समझौते को आगे बढ़ाने और द्विपक्षीय रणनीतिक संबंधों को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

परमाणु समझौते और अमेरिकी प्रतिबंध

परमाणु समझौतें दो या दो से अधिक देशों के बीच शांतिपूर्ण परमाणु ऊर्जा विकास में सहयोग के लिए ढांचे के रूप में कार्य करते हैं, इसी के साथ परमाणु प्रसार से संबंधित चिंताओं का समाधान भी किया जाता हैं।

  • परमाणु समझौतों के मुख्य तत्व
    • असैन्य परमाणु सहयोग: ये समझौते परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग के लिए प्रौद्योगिकी, ईंधन, और विशेषज्ञता के आदान-प्रदान की अनुमति देते हैं, जैसे कि पावर जनरेशन और चिकित्सा अनुप्रयोग।
    • अप्रसार लक्ष्य: यह एक महत्वपूर्ण पहलू है जो सुनिश्चित करता है कि परमाणु प्रौद्योगिकी और सामग्री का उपयोग हथियारों के विकास के लिए न हो। यह परमाणु अप्रसार संधि (NPT) जैसे अंतरराष्ट्रीय संधियों के अनुरूप है।
  • अमेरिकी प्रतिबंधों की प्रकृति: वैश्विक ढांचों जैसे कि NPT के अनुपालन को बनाए रखने के लिए, संयुक्त राज्य अमेरिका परमाणु सामग्री और प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण पर प्रतिबंध लगाता है। ये प्रतिबंध परमाणु संसाधनों के दुरुपयोग को रोकने के लिए होते हैं।
  • अमेरिकी एंटिटी लिस्ट: यह एक सूची है जिसमें विदेशी व्यक्तियों, व्यवसायों, अनुसंधान संस्थानों और संगठनों को शामिल किया जाता है जिन्हें अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा या विदेश नीति के लिए खतरे के रूप में पहचाना जाता है।
    • निर्णय लेने का अधिकार: एंड-यूजर रिव्यू कमेटी (ERC) इन संस्थाओं को जोड़ने, हटाने या संशोधित करने का निर्णय करती है। ERC में वाणिज्य, राज्य, रक्षा, ऊर्जा और कभी-कभी वित्त मंत्रालयों के प्रतिनिधि शामिल होते हैं।
    • संकलनकर्ता: यह सूची ब्यूरो ऑफ इंडस्ट्री एंड सिक्योरिटी (BIS) द्वारा US वाणिज्य विभाग के तहत संकलित की जाती है।
    • सूची का उद्देश्य
      • अनधिकृत व्यापार को रोकना: उन प्रौद्योगिकियों और सेवाओं के निर्यात को रोकता है जो अमेरिकी हितों को नुकसान पहुँचा सकते हैं।
      • राष्ट्रीय सुरक्षा: संवेदनशील तत्वों तक पहुँच को सीमित करता है जो आतंकवाद या विनाशकारी हथियार (WMD) कार्यक्रमों के समर्थन में उपयोग हो सकते हैं।
      • विदेश नीति की रक्षा: उन संस्थाओं पर प्रतिबंध लगाता है जो अमेरिकी विदेश नीति के उद्देश्यों के खिलाफ गतिविधियों में शामिल हैं।

अमेरिकी प्रतिबंधों में ढील का महत्व

अमेरिकी प्रतिबंधों में ढील देने का कदम एक व्यापक एजेंडे की ओर इशारा करता है, जिसका उद्देश्य रणनीतिक, भू-राजनीतिक और आर्थिक लक्ष्यों को प्राप्त करना है। यह निर्णय साझेदारी को मजबूत करता है और वैश्विक चिंताओं का समाधान करता है। आइए समझते हैं कि यह क्यों महत्वपूर्ण है:

  •  रणनीतिक साझेदारियों को मजबूत करना: यह कदम सहयोगियों और साझेदार देशों के साथ आपसी विश्वास और साझा लक्ष्यों को बढ़ावा देने के लिए उठाया गया है। भारत-अमेरिका सहयोग महत्वपूर्ण तकनीकों की सुरक्षा और मजबूत आपूर्ति श्रृंखलाओं को सुनिश्चित करने में अहम भूमिका निभाता है, खासकर सेमी-कंडक्टर और स्वच्छ ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में।
  • वैश्विक प्रतिद्वंद्वियों का मुकाबला करना: यह कदम चीन और रूस जैसे देशों के प्रभाव को सीमित करने के लिए है, जो वैश्विक परमाणु व्यापार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह कदम यह सुनिश्चित करता है है कि उन्नत प्रौद्योगिकियों का दुरुपयोग न हो, जैसे कि रूस का S-400 एयर डिफेंस सिस्टम
  • महत्वपूर्ण आपूर्ति श्रृंखलाओं की सुरक्षा: इसका एक प्रमुख उद्देश्य महत्वपूर्ण खनिजों और स्वच्छ ऊर्जा आपूर्ति श्रृंखलाओं को बढ़ाना है, क्योंकि दोनों देशों को नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों की बढ़ती मांग का सामना करना पड़ रहा है।
  • ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ावा देना: परमाणु ऊर्जा को जीवाश्म ईंधन का एक स्वच्छ और विश्वसनीय विकल्प माना जाता है, जो कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए आवश्यक है। यह साझेदारी देशों को कार्बन-न्यून अर्थव्यवस्था की ओर जाने में मदद करती है, जिससे जलवायु परिवर्तन से निपटा जा सकता है। 
  • आर्थिक अवसर: भारत की वैश्विक निर्माण में बढ़ती भूमिका, जिसमें iPhones का 25% से अधिक उत्पादन भारत में हो रहा है, इस साझेदारी के आर्थिक संभावनाओं को उजागर करता है। यह निर्णय उच्च तकनीक उद्योगों में रोजगार सृजन और निर्यात वृद्धि को बढ़ावा देता है। अमेरिका का उद्देश्य भारत के साथ संयुक्त अनुसंधान और विकास और विज्ञान और प्रौद्योगिकी के आदान-प्रदान के क्षेत्रों में करीबी सहयोग को बढ़ावा देना है।

भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौता 

  • भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौता (जिसे 123 समझौता भी कहा जाता है), 2008 में हस्ताक्षरित हुआ, जिसने भारत और अमेरिका के बीच रिश्तों में महत्वपूर्ण बदलाव को चिह्नित किया।

  • इस समझौते ने भारत को असैन्य परमाणु प्रौद्योगिकी और ईंधन तक पहुंच प्रदान की, जिससे दोनों देशों के रणनीतिक संबंधों को मजबूती मिली।

समझौते के प्रमुख पहलू

  • परमाणु ईंधन और प्रौद्योगिकी: भारत को परमाणु रिएक्टर, ईंधन और असैन्य परमाणु प्रौद्योगिकी तक पहुंच प्राप्त हुई।
  • सुरक्षा उपाय: भारत ने अपने असैन्य और सैन्य परमाणु कार्यक्रमों को अलग करने और कई रिएक्टरों को IAEA (अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी) सुरक्षा उपायों के तहत रखने का वचन दिया।
  • परमाणु व्यापार: अमेरिका ने भारत के साथ परमाणु व्यापार पर लगी मोराटोरियम (निषेधाज्ञा) को हटा लिया, जिससे परमाणु ऊर्जा में सहयोग संभव हो सका।
  • परमाणु सहयोग: इस समझौते ने अमेरिका को भारत के असैन्य परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के विकास में मदद करने का अवसर दिया।
  • ऊर्जा सुरक्षा और स्थिरता: समझौते के तहत भारत अपनी बढ़ती ऊर्जा जरूरतों को पूरा करेगा और जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करेगा।

चुनौतियाँ

  • लागत और जिम्मेदारी: उच्च लागत, जिम्मेदारी की चिंताएँ और बातचीत में देरी ने समझौते के कार्यान्वयन में प्रमुख चुनौतियाँ उत्पन्न कीं।
  • सुरक्षा चिंताएँ: परमाणु सुरक्षा से संबंधित चिंताएँ, खासकर फुकुशिमा दुर्घटना (2011) के बाद, भारत में रिएक्टर विकास में विरोध और मंद होने का कारण बनीं।
  • नियामक प्रतिबंध: US परमाणु ऊर्जा अधिनियम के तहत Part 810 के तहत, अमेरिकी परमाणु विक्रेताओं को भारत में निर्माण या परमाणु डिजाइन कार्य करने से रोकता है।

अमेरिका के परमाणु प्रतिबंधों में ढील के भारत के लिए निहितार्थ

अमेरिका द्वारा परमाणु प्रतिबंधों में ढील देने से भारत के लिए कई रणनीतिक, ऊर्जा, और भू-राजनीतिक क्षेत्रों में महत्वपूर्ण निहितार्थ दिखाई देते हैं। 

  • असैन्य परमाणु सहयोग में वृद्धि: भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौता (2008) ने भारत को परमाणु प्रौद्योगिकी और ईंधन तक पहुंच प्राप्त करने की नींव रखी थी। अब इस बदलाव से परमाणु रिएक्टरों के निर्माण और ईंधन आपूर्ति में सहयोग को और मजबूती मिलने की संभावना है।
  • ऊर्जा सुरक्षा में प्रगति: प्रतिबंधों में ढील से भारत की परमाणु ऊर्जा क्षमता में महत्वपूर्ण वृद्धि हो सकती है, जो देश की बढ़ती ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने में मददगार साबित होगी। भारत के 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए, यह सहयोग भारत के लिए एक स्थिर और सतत ऊर्जा भविष्य सुनिश्चित करने में सहायक हो सकता है।
  • रणनीतिक स्वतंत्रता को बढ़ावा: परमाणु प्रौद्योगिकी तक बेहतर पहुंच भारत को कुछ विशेष देशों पर निर्भरता कम करने में मदद करेगी। अमेरिका, फ्रांस, जापान और अन्य परमाणु प्रौद्योगिकी के नेताओं के साथ साझेदारी को मजबूत करके भारत अपनी रणनीतिक स्वायत्तता को बढ़ा सकता है और अपनी ऊर्जा सुरक्षा पर अधिक नियंत्रण प्राप्त कर सकता है।
  • क्षेत्रीय स्थिरता के लिए भू-राजनीतिक लाभ: अमेरिका के साथ भारत की बढ़ती साझेदारी उसे दक्षिण एशिया में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में स्थापित करती है। यह सहयोग पाकिस्तान के साथ चीन की बढ़ती परमाणु साझेदारी को संतुलित करने में मदद करता है, जिससे क्षेत्रीय स्थिरता में योगदान होता है।

अमेरिका के परमाणु प्रतिबंधों में ढील से जुड़ी चुनौतियाँ

अमेरिका द्वारा परमाणु प्रतिबंधों में ढील देने से भारत को कई लाभ हो सकते हैं, लेकिन इसके साथ कुछ चुनौतियाँ और आलोचनाएँ भी जुड़ी हुई हैं:

  • परमाणु प्रसार को लेकर चिंता: इस छूट की एक प्रमुख आलोचना यह है कि इससे परमाणु प्रसार का खतरा बढ़ सकता है। जबकि भारत ने परमाणु अप्रसार नियमों का पालन किया है, लेकिन परमाणु प्रौद्योगिकी तक बढ़ी हुई पहुंच से क्षेत्र में परमाणु हथियारों के विकास का खतरा बढ़ सकता है, खासकर पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों के संदर्भ में।
  • क्षेत्रीय भू-राजनीतिक असंतुलन: भारत-अमेरिका परमाणु संबंधों को मजबूत करने से अन्य क्षेत्रीय शक्तियों के साथ तनाव उत्पन्न हो सकता है। चीन और रूस जैसे देशों को यह कदम शक्ति संतुलन में बदलाव के रूप में महसूस हो सकता है, जो क्षेत्रीय शक्ति समीकरण को प्रभावित कर सकता है।
  • घरेलू राजनीतिक प्रतिरोध: भारत में परमाणु ऊर्जा के विस्तार को लेकर सुरक्षा और पर्यावरणीय प्रभावों को लेकर चिंता हो सकती है। राजनीतिक दल और समूह परमाणु ऊर्जा के लाभों पर सवाल उठा सकते हैं, खासकर उन वैकल्पिक नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों (जैसे सौर और पवन ऊर्जा) के संदर्भ में जिन पर वर्तमान में बहस हो रही है।

यूपीएससी पिछले वर्षों के प्रश्न (PYQ)

  1. प्रश्न (2018): अमेरिका-ईरान परमाणु समझौते के विवाद का भारतीय राष्ट्रीय हित पर क्या प्रभाव पड़ेगा? भारत को अपनी स्थिति पर कैसे प्रतिक्रिया करनी चाहिए?
  2. प्रश्न (2019): ‘भारत और अमेरिका के बीच जो तनाव उत्पन्न होता है, वह इस कारण है कि वाशिंगटन अभी तक भारत के लिए अपनी वैश्विक रणनीति में ऐसा स्थान नहीं ढूंढ पाया है, जो भारत की राष्ट्रीय गरिमा और आकांक्षाओं को संतुष्ट कर सके।’ उपयुक्त उदाहरणों के साथ इसका स्पष्टीकरण करें।

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