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लाउडस्पीकर का उपयोग धर्म के लिए आवश्यक नहीं

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संदर्भ:

लाउडस्पीकर का उपयोग: बॉम्बे हाई कोर्ट ने हाल ही में महाराष्ट्र सरकार को निर्देश दिया कि वह लाउडस्पीकरों में डेसिबल स्तरों को नियंत्रित करने के लिए एक अंतर्निहित तंत्र विकसित करे। कोर्ट ने यह भी कहा कि लाउडस्पीकरों का उपयोग किसी भी धर्म का अनिवार्य हिस्सा नहीं है।

न्यायिक टिप्पणियाँ: कोर्ट ने कहा कि लाउडस्पीकरों का उपयोग किसी भी धर्म का अनिवार्य हिस्सा नहीं है और यह संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत संरक्षित नहीं है।

लाउडस्पीकर का उपयोग और ध्वनि विस्तारक प्रणाली (PAS) पर कानूनी स्थिति:

  1. मौलिक अधिकार नहीं: लाउडस्पीकर और सार्वजनिक संबोधन प्रणाली (PAS) का उपयोग आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं माना जा सकता जिसे कानून द्वारा संरक्षित किया जाए।
  2. महत्वपूर्ण न्यायालय निर्णय: 2016 में डॉ. महेश विजय बेडेकर बनाम महाराष्ट्र मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने ध्वनि प्रदूषण (विनियमन और नियंत्रण) नियमों के सख्त अनुपालन का निर्देश दिया था।
  3. ध्वनि प्रदूषण नियम, 2000: आवासीय क्षेत्रों में ध्वनि स्तर दिन में 55 डेसिबल और रात में 45 डेसिबल से अधिक नहीं होना चाहिए।

इस फैसले से सार्वजनिक स्थानों पर ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी और नागरिकों के शांतिपूर्ण जीवन के अधिकार को सुनिश्चित किया जाएगा।

Essential Religious Practices Doctrine (ERP):

  • यह सिद्धांत संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के तहत धार्मिक स्वतंत्रता और राज्य के नियमों के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा विकसित किया गया था।
  • केवल वे धार्मिक प्रथाएं जिन्हें किसी विशेष धर्म के लिए आवश्यक माना जाता है, वे ही इसे संरक्षित कर सकती हैं।
  • मुख्य विशेषताएँ:
    • धार्मिक स्वतंत्रता: केवल वे प्रथाएँ जो किसी धर्म के लिए आवश्यक मानी जाती हैं, उन्हें संविधान में दी गई धार्मिक स्वतंत्रता के तहत संरक्षण प्राप्त है।
    • राज्य का भूमिका: राज्य को सामाजिक सुधार लागू करने की अनुमति है, बशर्ते वे आवश्यक धार्मिक प्रथाओं पर हस्तक्षेप न करें।
    • प्रथाओं का विभाजन: यह सिद्धांत आवश्यक और गैर-आवश्यक धार्मिक प्रथाओं के बीच अंतर करता है, और केवल आवश्यक प्रथाओं को सुरक्षा प्रदान करता है।
  • ऐतिहासिक संदर्भ:
    • पहला उल्लेख: इस सिद्धांत का पहला उल्लेख 1954 में The Commissioner, Hindu Religious Endowments, Madras v. Sri Lakshmindra Thirtha Swamiar of Sri Shirur Mutt मामले में हुआ।
    • आलोचना: इस सिद्धांत की व्याख्या में असंगतता और अस्थिरता की आलोचना की गई है।
  • प्रमुख उदाहरण:
    • Durgah Committee, Ajmer v. Syed Hussain Ali (1961): कोर्ट ने यह निर्णय दिया कि केवल वे प्रथाएँ जो किसी धर्म के लिए आवश्यक और अभिन्न हैं, उन्हें ही संरक्षण प्राप्त है।
    • Ismail Faruqui v. Union of India (1994): कोर्ट ने यह निर्णय दिया कि मस्जिद इस्लाम के लिए एक आवश्यक प्रथा नहीं है।

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 25:

अनुच्छेद 25 प्रत्येक व्यक्ति को अंतरात्मा की स्वतंत्रता और धर्म की स्वतंत्र अभिव्यक्ति, आचरण और प्रचार का अधिकार प्रदान करता है।

मुख्य बिंदु:

  1. अंतरात्मा की स्वतंत्रता: किसी व्यक्ति को अपनी अंतरात्मा के अनुसार भगवान या किसी अन्य शक्ति के साथ अपने संबंधों को निर्धारित करने की स्वतंत्रता।
  2. व्यक्त करने का अधिकार (Right to Profess): अपने धार्मिक विश्वासों और आस्था को खुले तौर पर व्यक्त करने और घोषित करने का अधिकार।
  3. आचरण का अधिकार (Right to Practice): धार्मिक उपासना, अनुष्ठान, समारोह और विश्वासों को लागू करने का अधिकार।
  4. प्रचार करने का अधिकार (Right to Propagate): अपने धार्मिक विश्वासों का प्रचार और प्रसार करने, या अपने धर्म के सिद्धांतों को दूसरों तक पहुँचाने का अधिकार।

सीमाएं (Restrictions):

  • ये अधिकार सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता, स्वास्थ्य और अन्य मौलिक अधिकारों के अधीन हैं।
  • राज्य को धार्मिक प्रथाओं से जुड़े आर्थिक, वित्तीय, राजनीतिक या अन्य धर्मनिरपेक्ष गतिविधियों को विनियमित या प्रतिबंधित करने की अनुमति है।

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