Mains GS II – गरीबी और विकास संबंधी मुद्दे, अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों से संबंधित मुद्दे, अल्पसंख्यकों से संबंधित मुद्दे, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप। |
चर्चा में क्यों?
मणिपुर में हिंसा : मणिपुर में पिछले कुछ महीनों से जातीय संघर्ष की घटनाओं ने राज्य की स्थिति को बेहद गंभीर बना दिया है। हाल ही में हुए ड्रोन हमलों ने इस संकट को और बढ़ा दिया है। सरकार के तमाम प्रयासों के बावजूद हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है, जिससे राज्य में स्थिति नियंत्रण से बाहर होती दिख रही है। हाल ही में जिरीबाम जिले में हुई हिंसक घटनाओं ने इसे तीव्र करने का काम किया। शांति स्थापित करने के लिए मीतेई और हमार नेताओं के बीच बातचीत भी हुई, लेकिन इसका व्यापक असर नहीं दिखा।
मणिपुर में हिंसा का परिचय
मणिपुर में हिंसा का इतिहास बहुत पुराना है और इसकी जड़ें सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक मुद्दों में गहरी हैं। यह राज्य उत्तर-पूर्व भारत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो सदियों से विभिन्न जातीय समूहों का घर रहा है। राज्य की जातीय विविधता और भौगोलिक संरचना के कारण यहां वातावरण ऐसा बना रहता है। इनमें मुख्य रूप से मीतेई, कुकी, और नागा समुदायों के बीच का संघर्ष शामिल है, जो समय-समय पर उभरता रहा है।
मणिपुर में हिंसा का इतिहास
मणिपुर का इतिहास संघर्ष और असंतोष से भरा हुआ है। यह क्षेत्र हमेशा से एक स्वतंत्र राज्य के रूप में स्थापित था, जिसे 19वीं सदी के अंत में ब्रिटिश साम्राज्य ने अपने नियंत्रण में लिया। इससे पहले मणिपुर में मेतेयी समुदाय का राज था, और यह क्षेत्र सांस्कृतिक और राजनीतिक रूप से समृद्ध था।
- 1826 में ब्रिटिश-बर्मा युद्ध के बाद, मणिपुर को एक संरक्षित राज्य (प्रोटेक्टरट) के रूप में ब्रिटिश भारत में शामिल किया गया। 1891 में ब्रिटिश-मणिपुर युद्ध के बाद, अंग्रेजों ने राज्य का पूर्ण अधिग्रहण कर लिया, लेकिन स्थानीय शाही परिवार को सत्ता में बने रहने दिया गया। 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद, मणिपुर के राजा बुद्धचंद्र सिंह ने भारतीय संघ में मणिपुर के विलय के दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए, जिसे कई जनजातीय समुदायों ने अस्वीकार कर दिया। उनका कहना था कि इस निर्णय को जनजातीय लोगों की सहमति के बिना लिया गया।
- विलय के बाद भी मणिपुर में असंतोष बना रहा, खासकर जनजातीय और गैर-जनजातीय समुदायों के बीच। 1972 में मणिपुर को पूर्ण राज्य का दर्जा तो मिला, लेकिन यह कदम भी वहाँ के लोगों को संतुष्ट नहीं कर सका। असंतोष की जड़ें मणिपुर के जनजातीय और गैर-जनजातीय समुदायों के बीच लंबे समय से चले आ रहे भेदभाव में हैं।
- 1970 के दशक तक मणिपुर में हिंसा और असंतोष तेज हो गया, और सरकार ने 1980 में राज्य को “अशांतिग्रस्त क्षेत्र” घोषित कर दिया। इसके साथ ही, यहां सशस्त्र बल (विशेष शक्ति) अधिनियम (AFSPA) लागू किया गया, जिसने सेना को विशेष अधिकार दिए। इस अधिनियम के लागू होने से नागरिकों के मानवाधिकारों का उल्लंघन और अत्याचार की घटनाएं बढ़ गईं, जिससे असंतोष और संघर्ष और तीव्र हो गए।
- मणिपुर की स्थिति अभी भी जटिल बनी हुई है, जहां कई उग्रवादी समूह और जनजातीय संगठन सरकार के खिलाफ हैं। मीतेई और कुकी समुदायों के बीच भी भूमि और पहचान को लेकर संघर्ष जारी है, जो समय-समय पर हिंसा का रूप लेता है।
मणिपुर में हिंसा के मूल कारण
मणिपुर में जातीय संघर्ष, भूमि अधिकारों पर विवाद, सांस्कृतिक पहचान, राजनीतिक प्रतिनिधित्व, और आर्थिक असमानता मुख्य रूप से शामिल हैं। इन मुद्दों को विस्तार से समझने की आवश्यकता है ताकि मणिपुर में हो रहे संघर्ष की वास्तविकता को समझा जा सके।
- जातीय संघर्ष: मणिपुर में मुख्य रूप से दो बड़े समुदाय हैं – मैतेई (जो राज्य की घाटी में रहते हैं) और कुकी-नागा जनजाति (जो पहाड़ी क्षेत्रों में रहते हैं)। दोनों समुदायों के बीच लंबे समय से संघर्ष चला आ रहा है, जिसका मूल कारण भूमि और पहचान से जुड़ा हुआ है। मैतेई समुदाय को मणिपुर की राजनीति और प्रशासन में अधिक प्रभावशाली माना जाता है, जबकि कुकी और नागा जनजातियां पहाड़ी क्षेत्रों में रहते हुए खुद को हाशिए पर महसूस करती हैं। इनके बीच सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान का संघर्ष लंबे समय से चला आ रहा है।
- भूमि अधिकारों पर विवाद: मणिपुर के पहाड़ी और घाटी क्षेत्रों में रहने वाले समुदायों के बीच भूमि को लेकर भी विवाद है। मैतेई समुदाय मुख्य रूप से घाटी में रहते हैं, जो राज्य का 10% हिस्सा है, जबकि कुकी और नागा जनजातियां पहाड़ी क्षेत्रों में फैली हुई हैं, जो राज्य का 90% हिस्सा है। कुकी और नागा जनजातियों को लगता है कि उनके भूमि अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है, और मैतेई समुदाय अधिक राजनीतिक और आर्थिक लाभ प्राप्त कर रहा है।
- सांस्कृतिक पहचान पर संघर्ष: मणिपुर में रहने वाले विभिन्न जातीय समूहों के बीच सांस्कृतिक पहचान का संघर्ष भी गहरा है। मैतेई समुदाय की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान मुख्य रूप से हिंदू धर्म से जुड़ी है, जबकि कुकी और नागा जनजातियां ईसाई धर्म का पालन करती हैं। यह धार्मिक और सांस्कृतिक अंतर भी संघर्ष का एक कारण है, क्योंकि दोनों समुदाय अपनी-अपनी पहचान को संरक्षित करने की कोशिश कर रहे हैं।
- राजनीतिक प्रतिनिधित्व की मांग: कुकी और नागा जनजातियां मणिपुर की राजनीति में अधिक प्रतिनिधित्व और अधिकार चाहती हैं। वे स्वायत्त परिषदों की मांग कर रहे हैं ताकि उन्हें अपने क्षेत्रों में अधिक राजनीतिक और प्रशासनिक अधिकार प्राप्त हो सकें। इसके अलावा, मैतेई समुदाय भी राजनीतिक प्रतिनिधित्व को लेकर विशेष श्रेणी का दर्जा (Scheduled Tribe) मांग रहा है, जिससे जनजातीय समुदायों के साथ उनका तनाव और बढ़ रहा है।
- आर्थिक असमानता: मणिपुर में आर्थिक असमानता भी एक प्रमुख कारण है जो हिंसा और असंतोष को बढ़ावा देता है। घाटी क्षेत्रों में रहने वाले मैतेई समुदाय को बेहतर आर्थिक और विकास के अवसर प्राप्त होते हैं, जबकि पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले कुकी और नागा जनजातियां आर्थिक रूप से पिछड़ी हुई हैं।
- घाटी क्षेत्र जहां राज्य की प्रशासनिक और व्यापारिक गतिविधियों का केंद्र है, वहीं पहाड़ी क्षेत्र आर्थिक रूप से पिछड़ा हुआ है। यह विकास का अंतर जातीय संघर्ष को और गहरा करता है। मणिपुर में बेरोजगारी और गरीबी भी गंभीर समस्या है। रोजगार के अवसरों की कमी और आर्थिक असमानता से उत्पन्न निराशा युवाओं को हिंसा और उग्रवादी संगठनों की ओर धकेलती है।
- परिसीमन की समस्याएँ: 2020 में मणिपुर में परिसीमन प्रक्रिया शुरू हुई, जिसमें जनगणना के आंकड़ों को लेकर विवाद हुआ। मैतेई समुदाय ने आरोप लगाया कि इस प्रक्रिया से उनकी जनसंख्या को ठीक से नहीं दर्शाया गया।
- म्यांमार में हुए तख्तापलट के बाद भारत के पूर्वोत्तर में शरणार्थी संकट बढ़ गया। मैतेई नेताओं ने आरोप लगाया कि चूड़ाचांदपुर जिले में अचानक जनसंख्या में वृद्धि हुई है।
- राजनीतिक मुद्दे: मैतेई समुदाय, जो मणिपुर की घाटी में बहुसंख्यक है, 2012 से विशेष श्रेणी (ST) का दर्जा पाने के लिए लंबे समय से संघर्ष कर रहा है। उनका यह भी दावा है कि बाहरी लोगों के प्रभाव और जनसंख्या में कमी के कारण उनका अस्तित्व संकट में है। 1951 में, मैतेई समुदाय मणिपुर की कुल जनसंख्या का 59% था, जो 2011 में घटकर 44% रह गया। ST का दर्जा मिलने से मैतेई समुदाय को कई लाभ प्राप्त होंगे, जैसे कि सरकारी नौकरियों और शैक्षिक संस्थानों में आरक्षण, भूमि अधिकारों में विशेष संरक्षण, और अन्य संवैधानिक विशेषाधिकार। पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले कुकी और नागा जनजातीय समुदायों ने इस मांग का कड़ा विरोध किया है। उनका मानना है कि यदि मैतेई समुदाय को ST का दर्जा मिल जाता है, तो इससे पहाड़ी क्षेत्रों में उनके अधिकारों और भूमि पर कब्जे को खतरा हो सकता है। वर्तमान में मैतेई समुदाय को घाटी क्षेत्रों में भूमि खरीदने का अधिकार है, लेकिन पहाड़ी क्षेत्रों में नहीं।
- AFSPA,1958 मणिपुर में एक विवादास्पद कानून है, जो राज्य में कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए भारतीय सशस्त्र बलों को विशेष शक्तियां प्रदान करता है। इस कानून के तहत सुरक्षा बलों को बिना वारंट के गिरफ्तारी, तलाशी और गोली चलाने का अधिकार दिया गया है। इस अधिनियम के तहत किए गए कुछ कार्रवाइयों पर मानवाधिकार हनन के आरोप भी लगे हैं। केंद्र सरकार का तर्क है कि मणिपुर जैसे अशांत क्षेत्रों में शांति और सुरक्षा बनाए रखने के लिए AFSPA आवश्यक है, क्योंकि यह सशस्त्र विद्रोही गुटों और आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई में मदद करता है। इसके बावजूद, राज्य के कई लोग और सामाजिक कार्यकर्ता इस अधिनियम का विरोध करते हैं, इसे मानवाधिकारों का उल्लंघन और अत्यधिक दमनकारी मानते हैं। मणिपुर में AFSPA के चलते नागरिकों में असंतोष और हताशा की भावना बढ़ी है, जिसने हिंसा और विरोध प्रदर्शनों को जन्म दिया है। मणिपुर की राज्य सरकार ने कई बार AFSPA जैसे विवादास्पद कानूनों को हटाने की मांग की है, क्योंकि यह स्थानीय लोगों के बीच असंतोष का कारण बना हुआ है।
मणिपुर की स्थिति और जनसंख्या की संरचना● मणिपुर पूर्वोत्तर भारत का एक महत्वपूर्ण राज्य है, जिसकी भौगोलिक स्थिति और जनसंख्या संरचना उसकी सांस्कृतिक विविधता और राजनीतिक संघर्षों का कारण बनी हुई है। ● राज्य की भौगोलिक स्थिति, जनसंख्या के जातीय समूहों का बंटवारा, और विभिन्न समुदायों के बीच संघर्ष मणिपुर की वर्तमान स्थिति को प्रभावित करने वाले प्रमुख तत्व हैं। ● भौगोलिक स्थिति: मणिपुर भारत के पूर्वोत्तर भाग में स्थित है और इसकी सीमा म्यांमार से लगती है। यह राज्य अपनी सुंदर पहाड़ियों, घाटियों, और प्राकृतिक संसाधनों के लिए जाना जाता है। मणिपुर की राजधानी इम्फाल है, जो राज्य के राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक गतिविधियों का केंद्र है। मणिपुर का कुल क्षेत्रफल लगभग 22,327 वर्ग किलोमीटर है, जिसमें से अधिकांश भाग पहाड़ी क्षेत्रों से घिरा हुआ है। ● मणिपुर की भूमि दो मुख्य भागों में विभाजित है: घाटी और पहाड़ी जिले। घाटी में इम्फाल ईस्ट, इम्फाल वेस्ट, थौबल, बिष्णुपुर, और काकचिंग जिले शामिल हैं, जो पूर्व के कांगलीपाक राज्य का हिस्सा थे। पहाड़ी क्षेत्रों में 15 नागा जनजातियाँ और चिन-कुकी-मिजो-ज़ोमी समूह रहते हैं। ● मणिपुर की विधानसभा में 60 सीटें हैं, जिनमें से 40 सीटों पर मैतेई समुदाय का प्रभाव है, जबकि पहाड़ी क्षेत्रों की जनजातियों को 20 सीटें मिलती हैं। ● जनसंख्या की संरचना: मणिपुर की जनसंख्या बहुत ही विविध है और यह कई जातीय और धार्मिक समूहों का मिश्रण है। 2011 की जनगणना के अनुसार, राज्य की कुल जनसंख्या लगभग 28 लाख है, जिसमें विभिन्न जातीय समूहों और जनजातियों का योगदान है। मणिपुर में तीन मुख्य जातीय समूह हैं: ○ मेतेई समुदाय (Meitei): यह समुदाय मणिपुर की घाटी में निवास करता है और राज्य की कुल जनसंख्या का लगभग 53% हिस्सा है। यह हिंदू धर्म का पालन करता है, और राज्य के राजनीतिक और सांस्कृतिक जीवन में इसकी प्रमुख भूमिका रही है। मेतेई समुदाय घाटी के समृद्ध और उपजाऊ क्षेत्रों में निवास करता है और राजनीतिक और आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है। ○ नागा जनजाति (Naga): नागा समुदाय मणिपुर की पहाड़ियों में निवास करता है। यह ईसाई धर्म का पालन करता है और राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों में अपना दबदबा रखता है। नागा जनजातियां राज्य के उत्तर और पूर्वी हिस्सों में फैली हुई हैं और कई दशकों से अपने स्वायत्तता और राजनीतिक अधिकारों की मांग कर रही हैं। 43% कुकी और नागा जनजाति है। ○ कुकी जनजाति (Kuki): कुकी जनजाति भी मणिपुर के पहाड़ी क्षेत्रों में रहती है और ईसाई धर्म का पालन करती है। कुकी समुदाय भी नागाओं की तरह स्वायत्तता की मांग कर रहा है और नागा समुदाय के साथ उसके भूमि अधिकारों को लेकर विवाद जारी है। (मणिपुर में जनजाति वितरण का मानचित्र इस प्रकार है: मैतेई हिंदू (नारंगी) और मैतेई-पंगल मुसलमान (हरा) घनी आबादी वाले शहरी घाटी क्षेत्रों में प्रमुख हैं, जबकि ईसाई (नीला) विरल आबादी वाले आदिवासी पहाड़ी क्षेत्रों में प्रमुख हैं।) |
एसटी सूची में शामिल करने की प्रक्रिया● राज्य सरकार की सिफारिश: राज्य सरकारें संबंधित जनजातियों को अनुसूचित जनजाति (एसटी) की सूची में शामिल करने के लिए अपनी सिफारिशें प्रस्तुत करती हैं। ● जनजातीय कार्य मंत्रालय की समीक्षा: राज्य सरकार की सिफारिशों के बाद, जनजातीय कार्य मंत्रालय सिफारिशों की समीक्षा करता है और आवश्यक दस्तावेजों के साथ इसे गृह मंत्रालय के अधीन भारत के महापंजीयक को अनुमोदन के लिए भेजता है। ● गृह मंत्रालय की स्वीकृति: गृह मंत्रालय द्वारा अनुमोदित सिफारिशों को राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के पास भेजा जाता है। ● राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग का निर्णय: आयोग द्वारा सिफारिशों पर विचार करने के बाद, इसे कैबिनेट के पास अंतिम निर्णय के लिए भेजा जाता है। ● कैबिनेट की मंजूरी: कैबिनेट द्वारा मंजूरी के बाद, संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश, 1950 और संविधान (अनुसूचित जनजाति) आदेश, 1950 में संशोधन करने के लिए संसद में एक विधेयक पेश किया जाता है। ● संशोधन विधेयक की स्वीकृति: विधेयक को लोकसभा और राज्यसभा दोनों द्वारा पारित किया जाता है। ● राष्ट्रपति की स्वीकृति: अंत में, राष्ट्रपति कार्यालय संविधान के अनुच्छेद 341 और 342 के तहत अंतिम निर्णय लेते हैं। |
मणिपुर में हिंसा के प्रभाव:
- विस्थापन और शरणार्थी संकट: हिंसा के कारण हजारों लोग अपने घरों को छोड़कर शरणार्थी शिविरों में रहने को मजबूर हो गए हैं। इन शरणार्थियों को बुनियादी आवश्यकताओं की कमी का सामना करना पड़ता है, जैसे कि भोजन, पानी, चिकित्सा सुविधाएं, और शिक्षा। यह विस्थापन न केवल भौतिक रूप से, बल्कि मानसिक और भावनात्मक रूप से भी प्रभावित करता है, क्योंकि लोग अपने स्थायी घर और जीवनयापन के साधन खो देते हैं।
- मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव: हिंसा का मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है। लगातार हिंसा और असुरक्षा की स्थिति में रहने से लोगों में तनाव, अवसाद, और मानसिक विकार बढ़ जाते हैं। खासकर बच्चों और महिलाओं में यह समस्या अधिक देखी जाती है, जो सीधे या परोक्ष रूप से हिंसा का सामना कर रहे होते हैं।
- पर्यटन उद्योग का पतन: मणिपुर एक खूबसूरत राज्य है और पर्यटन की अपार संभावनाएं रखता है। लेकिन हिंसा और अस्थिरता के कारण यहां का पर्यटन उद्योग बुरी तरह प्रभावित हुआ है। पर्यटक राज्य में आना सुरक्षित नहीं समझते, जिससे राज्य को भारी आर्थिक नुकसान होता है।
- अर्थव्यवस्था पर असर: मणिपुर में हिंसा के कारण राज्य की अर्थव्यवस्था संकट में है। सरकारी संसाधनों का एक बड़ा हिस्सा सुरक्षा और शांति स्थापित करने में खर्च हो रहा है, जबकि विकास परियोजनाएं और सामाजिक कल्याण योजनाएं पीछे छूट रही हैं।
- समुदायों के बीच अविश्वास: हिंसा के दौरान विभिन्न जातीय समूहों के बीच होने वाले प्रभाव ने आपसी विश्वास को खत्म कर दिया है। समुदायों के बीच संदेह और डर की भावना बढ़ी है, जो सामाजिक सौहार्द और मेल-जोल को बाधित करती है। यह अविश्वास राज्य में शांति और एकता स्थापित करने के रास्ते में सबसे बड़ी बाधा बनकर खड़ा हो गया है।
महत्वपूर्ण बिंदु● कुकी-मैतेई विभाजन: पहाड़ी समुदायों (जैसे नागा और कुकी) और मैतेई के बीच राज्य काल से ही जातीय तनाव रहा है। 1990 के दशक में, कुकी-ज़ोमी समूहों ने ‘कुकीलैंड’ नामक एक अलग राज्य की मांग की, जिससे वे मैतेई से अलग हो गए, जिनका पहले उन्होंने समर्थन किया था। 1993 में, हिंदू मैतेई लोगों का पंगलों (मुसलमानों) के साथ संघर्ष हुआ, और आदिवासी नागाओं और कुकी के बीच भी हिंसा हुई। जिसके बाद से इन दोनो समुदाय के मध्य विभाजन बढ़ गया। ● चुराचांदपुर जिला: यह जिला कुकी-ज़ोमी बहुल है और म्यांमार की सीमा से सटा हुआ है। यहां की अधिकांश आबादी ईसाई है और यह भारत का सबसे गरीब जिला है (पंचायती राज मंत्रालय के अनुसार 2006 में)। ● इनर लाइन परमिट (ILP) मणिपुर के विशेष कानूनी प्रावधान के तहत लागू किया जाता है। ILP एक यात्रा दस्तावेज है, जो भारतीय नागरिकों को कुछ विशेष क्षेत्रों में यात्रा करने की अनुमति देता है, और इसका उद्देश्य स्थानीय जनसंख्या और सांस्कृतिक पहचान की सुरक्षा सुनिश्चित करना है। मणिपुर में यह प्रणाली वर्ष 2020 से लागू हुई हैं। |
मणिपुर हिंसा को कम करने के लिए शांति प्रयास
- मणिपुर सरकार द्वारा उठाए गए कदम:
- मणिपुर सरकार ने राज्य में शांति और स्थिरता बहाल करने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। हिंसा को नियंत्रित करने के लिए कर्फ्यू, इंटरनेट सेवाओं पर रोक, और संवेदनशील इलाकों में सुरक्षा बलों की तैनाती जैसी तात्कालिक कार्रवाई की गई है। इसके अतिरिक्त, सरकार ने स्थानीय समुदायों के बीच वार्ता और सामंजस्य बढ़ाने के प्रयास भी किए हैं। सशस्त्र बल (विशेष शक्ति) अधिनियम (AFSPA) के अंतर्गत राज्य में शांति बनाए रखने की दिशा में सुरक्षा एजेंसियों को विशेष अधिकार दिए गए हैं।
- नागरिक समाज संगठनों की भूमिका:
- मणिपुर में विभिन्न नागरिक समाज संगठन (CSOs) और गैर सरकारी संगठन (NGOs) भी शांति स्थापित करने और समुदायों के बीच संवाद को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। ये संगठन जातीय और धार्मिक विभाजन को कम करने के लिए सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करते हैं।
- अंतरराष्ट्रीय मंचों पर मणिपुर मुद्दा: हालांकि मणिपुर की हिंसा मुख्यतः आंतरिक है, लेकिन इसकी गूंज अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी सुनाई दी है। विभिन्न मानवाधिकार संगठनों और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने मणिपुर में हो रही हिंसा और मानवाधिकारों के उल्लंघन पर चिंता व्यक्त की है। संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार निकायों ने मणिपुर में सुरक्षा बलों द्वारा अत्यधिक बल प्रयोग और AFSPA जैसे कानूनों की आलोचना की है।
आगे बढ़ने का रास्ता:
- एसटी दर्जे की सिफारिशों की समीक्षा: लोकुर समिति, भूरिया आयोग, और ज़ाक्सा समिति की सिफारिशों की समीक्षा कर, एसटी दर्जे के मानदंडों का मूल्यांकन किया जाना चाहिए।
- सीमावर्ती निगरानी: म्यांमार से प्रवासियों के प्रवेश को रोकने के लिए सीमावर्ती क्षेत्रों पर अधिक निगरानी रखी जानी चाहिए।
- मानवाधिकार सुधार: विवादास्पद सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम (AFSPA) को निरस्त किया जाना चाहिए और सुरक्षा बलों द्वारा सत्ता के दुरुपयोग को रोकने के लिए कानूनी व्यवस्था को निष्पक्ष और पारदर्शी बनाया जाना चाहिए।
- मणिपुर की समस्या का स्थायी समाधान तभी संभव है जब सभी पक्षों के साथ बातचीत की जाए। राज्य सरकार और केंद्र सरकार को मिलकर राजनीतिक समाधान निकालने के प्रयास करने होंगे। राजनीतिक प्रतिनिधित्व में सुधार के लिए जनजातीय समुदायों की मांगों पर विचार करना जरूरी है।
- समुदायों के बीच संवाद और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देना होगा। मणिपुर की सांस्कृतिक विविधता को संरक्षित रखने के साथ-साथ समुदायों के बीच विश्वास बहाली की प्रक्रिया को मजबूत करना जरूरी है।
UPSC पिछले वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रश्न: स्वतंत्रता के बाद से अनुसूचित जनजातियों (एसटी) के खिलाफ भेदभाव को संबोधित करने के लिए राज्य द्वारा की गई दो प्रमुख कानूनी पहल क्या हैं? (2017) |
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