हिमाचल प्रदेश विधानसभा ने पहली बार 4 सितंबर 2024 से अपनी विधायी कार्यवाही में शून्यकाल की शुरुआत की है।
- संसदीय लोकतंत्र में शून्यकाल की परंपरा भारतीय संसद से आई है।
- इसे वर्ष 1962 में लोकसभा और राज्यसभा की कार्यवाही में शामिल किया गया था, और धीरे-धीरे भारत की अन्य राज्य विधानसभाओं द्वारा भी इसे अपनाया जा रहा है।
- संसद और राज्य विधानसभाओं के नियमों में शून्यकाल का उल्लेख नहीं किया गया है। यह एक परंपरा है, कोई औपचारिक नियम नहीं।
हिमाचल प्रदेश विधानसभा में शून्यकाल:
- हिमाचल प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष, कुलदीप सिंह पठानिया ने 3 सितंबर 2024 को विधानसभा के मानसून सत्र के दौरान शून्यकाल शुरू करने की घोषणा की।
- प्रश्नकाल समाप्त होने के बाद शून्यकाल दोपहर 12:30 बजे से आधे घंटे तक चलेगा। प्रश्नकाल हिमाचल प्रदेश विधानसभा में प्रायः प्रत्येक कार्यदिवस पर सुबह 11:30 बजे से दोपहर 12:30 बजे तक होता है।
- शून्यकाल के दौरान सदस्य लोक महत्व के अत्यावश्यक मुद्दे उठा सकते हैं, जिसके लिए प्रत्येक सदस्य को एक मिनट या उससे थोड़ी अधिक समय की अनुमति होगी।
शून्यकाल की आवश्यकता:
- संसद या राज्य विधानसभा में प्रत्येक दिन की कार्यवाही का पहला घंटा प्रश्नकाल के लिए होता है, जिसमें सदस्य सरकार से विभिन्न सवाल पूछते हैं।
- कई बार, विपक्षी सदस्य प्रश्नकाल की शुरुआत में अपने निर्वाचन क्षेत्र से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दे उठाने का प्रयास करते हैं, जिससे प्रश्नकाल बाधित हो सकता है।
- चूंकि प्रश्नकाल सरकार से सवाल पूछने और उसे उत्तरदायी ठहराने के लिए महत्वपूर्ण है, शून्यकाल की शुरुआत इसलिए की गई ताकि सदस्य प्रश्नकाल के बाद अपने मुद्दे उठा सकें और प्रश्नकाल बाधित न हो।
भारतीय संसद में शून्यकाल की विशेषताएं:
- बिना पूर्व सूचना: सांसदों को शून्यकाल में कोई पूर्व सूचना देने की आवश्यकता नहीं होती है। वे सीधे सदन में उठकर अपने मुद्दे रख सकते हैं।
- अनौपचारिक चर्चा: शून्यकाल में चर्चा का माहौल अनौपचारिक होता है। सांसद सरकार के मंत्रियों से सीधे सवाल पूछ सकते हैं और अपनी चिंताएं व्यक्त कर सकते हैं।
- अल्प समय: शून्यकाल का समय बहुत कम होता है, आमतौर पर 30 मिनट। इसलिए सांसदों को अपने मुद्दे संक्षिप्त रूप में रखने होते हैं।
- महत्वपूर्ण मुद्दे: शून्यकाल में आमतौर पर महत्वपूर्ण जनहित के मुद्दे उठाए जाते हैं, जैसे कि प्राकृतिक आपदाएं, भ्रष्टाचार, सामाजिक समस्याएं आदि।
- सरकार की प्रतिक्रिया: सरकार के मंत्री शून्यकाल में उठाए गए मुद्दों पर अपनी प्रतिक्रिया देते हैं और समाधान का आश्वासन देते हैं।
- जनता की आवाज: शून्यकाल जनता की आवाज को संसद में पहुंचाने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है।
शून्यकाल का महत्व:
- जवाबदेही: शून्यकाल सरकार को जनता के प्रति जवाबदेह बनाता है।
- लोकतंत्र को मजबूत बनाना: शून्यकाल लोकतंत्र को मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- समस्याओं का समाधान: शून्यकाल में उठाए गए मुद्दों के समाधान से जनता का कल्याण होता है।
निष्कर्ष:
वर्ष 1962 से “शून्य काल” सरकार को तात्कालिक सार्वजनिक मुद्दों पर जवाबदेह ठहराने के लिए एक महत्वपूर्ण संसदीय उपकरण बन गया है। भले ही कई बार सत्र और शून्य काल में बाधाएँ आई हैं, फिर भी यह तात्कालिक मुद्दों पर सरकार को जवाबदेह बनाने में सफल रहा है। “शून्य काल” एक प्रभावी संसदीय साधन के रूप में उभरा है, जो पूरी तरह से भारतीय नवाचार है और इसके माध्यम से बिना पूर्व सूचना के अत्यावश्यक मामलों को सदन के समक्ष लाया जा सकता है।
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