flood in punjab
संदर्भ:
पंजाब इस समय दशकों की सबसे भीषण बाढ़ का सामना कर रहा है, क्योंकि हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और पंजाब में हुई अभूतपूर्व वर्षा ने नदियों को उनकी क्षमता से कहीं अधिक उफान पर पहुँचा दिया है।
पंजाब में बाढ़ के संभावित कारण:
- भौगोलिक स्थिति और नदियाँ: पंजाब का भूभाग बाढ़ के लिए संवेदनशील है। सतलुज, ब्यास और रावी जैसी स्थायी नदियाँ तथा घग्गर जैसी मौसमी नदियाँ मानसून में उफान पर आ जाती हैं।
- हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में हुई भारी वर्षा का अतिरिक्त जल पंजाब में प्रवेश करता है।
- धुस्सी बांध (मिट्टी के तटबंध) कुछ सुरक्षा प्रदान करते हैं, लेकिन कई बार टूट जाते हैं, जैसा कि 1955, 1988, 1993, 2019, 2023, 2024 और अब 2025 की बाढ़ में देखा गया।
- कृषि पर निर्भरता: यही नदी तंत्र पंजाब की मिट्टी को उपजाऊ बनाता है, जिसके कारण इसे भारत का “अनाज भंडार” कहा जाता है। केवल 5% भूमि क्षेत्र के बावजूद पंजाब देश की लगभग 20% गेहूँ और 12% चावल की पैदावार करता है।
- बांधों की चुनौती: बांधों का उद्देश्य सिंचाई, बिजली उत्पादन और बाढ़ नियंत्रण है, लेकिन जब वर्षा असामान्य रूप से अधिक होती है तो उनकी सुरक्षा के लिए अचानक पानी छोड़ा जाता है। यह नियंत्रित बहाव भी निचले इलाकों में बाढ़ को जन्म देता है।
- भाखड़ा बांध (सतलुज) और पोंग बांध (ब्यास) – भाखड़ा ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड (BBMB) द्वारा संचालित।
- थीन (रंजीत सागर) बांध (रावी) – पंजाब प्रशासन द्वारा संचालित।
- मानवीय लापरवाही से बढ़ता संकट: प्राकृतिक आपदा को मानव त्रुटियाँ और गंभीर बना देती हैं। थीन बांध से छोड़े गए पानी के बाद माधोपुर बैराज में आई दरार इसका उदाहरण है।
- बांध और बैराज प्रशासन के बीच संचार की कमी।
- पानी धीरे-धीरे छोड़ने के बजाय अचानक और बड़े स्तर पर निकासी।
- धुस्सी बांध की कमजोरी, जिसे अवैध खनन और अनदेखी ने और नुकसान पहुँचाया।
व्यापक प्रशासनिक विफलताएँ
- BBMB की सीमित भूमिका: भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड का मुख्य ध्यान सिंचाई और बिजली उत्पादन पर रहा है, जबकि बाढ़ नियंत्रण को गंभीरता से नहीं लिया गया।
- चेतावनी में देरी: पंजाब के अधिकारियों का कहना है कि अचानक पानी छोड़ा जाता है और लोगों को सुरक्षित निकालने के लिए पर्याप्त समय नहीं मिलता।
- राजनीतिक खींचतान: पंजाब के जल संसाधन मंत्री ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया कि राज्य की बाढ़ समस्या को नज़रअंदाज़ किया गया।
- विशेषज्ञों की राय: पर्यावरणविदों का मानना है कि भविष्य की तबाही रोकने के लिए “फ्लड कुशन”, पारदर्शी निर्णय प्रक्रिया और वैज्ञानिक तरीके से बांध संचालन जरूरी हैं।
बाढ़ के प्रभाव:
- मानव जीवन पर असर: बाढ़ के दौरान जानमाल की हानि होती है। हजारों लोगों को घर छोड़कर सुरक्षित स्थानों पर जाना पड़ता है।
- कृषि को नुकसान: पानी भरने से धान और अन्य फसलों की बड़ी तबाही होती है, जिससे किसानों को भारी आर्थिक हानि होती है।
- बुनियादी ढांचे पर चोट: सड़कें, पुल और तटबंध टूट जाते हैं, जिससे परिवहन और आपूर्ति श्रृंखला बाधित होती है।
- स्वास्थ्य संबंधी खतरे: गंदे पानी और जलभराव से संक्रामक बीमारियों (जैसे डायरिया, डेंगू और मलेरिया) का खतरा बढ़ता है।
- शिक्षा और आजीविका पर असर: स्कूल, छोटे उद्योग और बाजार बंद हो जाते हैं, जिससे बच्चों की पढ़ाई और लोगों की रोज़गार व्यवस्था प्रभावित होती है।
- राज्य की अर्थव्यवस्था पर दबाव: कृषि उत्पादन में कमी और पुनर्वास पर बढ़ा खर्च राज्य की वित्तीय स्थिति को और कठिन बना देता है।
- पर्यावरणीय प्रभाव: बाढ़ के दौरान मिट्टी का कटाव (soil erosion) होता है और भूजल भी प्रदूषित हो सकता है।