मुख्य परीक्षा: GS 3 – भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों का संग्रहण। |
सिस्टमैटिक इंवेस्टमेंट प्लान (SIP) क्या है?
सिस्टमैटिक इंवेस्टमेंट प्लान (SIP) एक वित्तीय निवेश रणनीति है, जिसके माध्यम से निवेशक नियमित अंतराल पर एक निश्चित राशि का निवेश करते हैं। यह निवेश आमतौर पर म्यूचुअल फंड्स में किया जाता है और इसका उद्देश्य लंबी अवधि में संपत्ति निर्माण होता है।
म्यूचुअल फंड्स:यह एक निवेश वाहन हैं, जो निवेशकों से एकत्र की गई धनराशि को विभिन्न वित्तीय साधनों जैसे इक्विटी, बॉन्ड्स, और अन्य बाजार प्रतिभूतियों में निवेश करते हैं। ● यह धनराशि एक प्रोफेशनल फंड मैनेजर द्वारा प्रबंधित की जाती है, जो निवेशकों के लिए अधिकतम रिटर्न प्राप्त करने का प्रयास करता है। ● म्यूचुअल फंड्स की प्रमुख विशेषता यह है कि वे छोटे निवेशकों को विविधीकृत पोर्टफोलियो में निवेश करने की सुविधा प्रदान करते हैं, जो व्यक्तिगत रूप से करना कठिन हो सकता है। ● किसी भी म्यूचुअल फंड कंपनी का पंजीकरण भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) में होना अनिवार्य होता है। ● निवेशकों को म्यूचुअल फंड्स के यूनिट्स दिए जाते हैं, और इन यूनिट्स की नेट एसेट वैल्यू (NAV) में बदलाव उनके निवेश के मूल्य को दर्शाती है। ● म्यूचुअल फंड्स को मुख्यतः तीन प्रमुख प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है: a. इक्विटी फंड्स: यह फंड्स प्रमुख रूप से स्टॉक्स में निवेश करते हैं और उच्च रिटर्न की संभावना रखते हैं, हालांकि इसमें जोखिम भी अधिक होता है। b. डेट फंड्स: यह फंड्स मुख्य रूप से सरकारी और कॉर्पोरेट बॉन्ड्स में निवेश करते हैं, और स्थिरता प्रदान करते हैं। इनका जोखिम कम होता है और रिटर्न भी अपेक्षाकृत कम होता है। c. हाइब्रिड फंड्स: यह फंड्स इक्विटी और डेट दोनों में निवेश करते हैं, जो निवेशकों को संतुलित जोखिम और रिटर्न प्रदान करते हैं। भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI):● भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) भारत का प्रमुख वित्तीय विनियामक प्राधिकरण है, जिसकी स्थापना 1992 में की गई थी। ● इसका मुख्यालय मुंबई में हैं। ● SEBI भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बाजारों की निगरानी करता है और नियमों और विनियमों के पालन को सुनिश्चित करता है। ● SEBI निवेशकों की सुरक्षा के लिए विभिन्न नियम और दिशानिर्देश जारी करता है। ● SEBI द्वारा कंपनियों को नए प्रतिभूतियों की पेशकश करने की अनुमति दी जाती है। |
सिस्टमैटिक इंवेस्टमेंट प्लान (SIP) की कार्यप्रणाली:
- निवेश की अवधि और राशि का निर्धारण: SIP में सबसे पहले निवेशक यह तय करते हैं कि वे कितनी राशि नियमित रूप से निवेश करेंगे और कितनी अवधि तक। यह राशि मासिक, तिमाही, या किसी अन्य नियमित अंतराल पर हो सकती है।
- ऑटो-डेबिट सेटअप: एक बार SIP शुरू होने के बाद, निवेशक के बैंक खाते से तय समय पर स्वचालित रूप से निर्धारित राशि काट ली जाती है। यह राशि सीधे उस म्यूचुअल फंड स्कीम में निवेश की जाती है, जिसे निवेशक ने चुना है।
- यूनिट्स का आवंटन: हर निवेश के लिए, निवेशक को उस दिन की नेट एसेट वैल्यू (NAV) के आधार पर म्यूचुअल फंड यूनिट्स आवंटित किए जाते हैं। जब बाजार नीचे होता है, तो ज्यादा यूनिट्स खरीदी जाती हैं, और जब बाजार ऊपर होता है, तो कम यूनिट्स मिलती हैं।
- रुपया लागत औसतकरण (Rupee Cost Averaging): SIP के माध्यम से, निवेशक बाजार की अस्थिरता को संतुलित कर सकते हैं। चूंकि निवेशक हर समय समान राशि का निवेश कर रहे होते हैं, वे बाजार के उतार-चढ़ाव के बावजूद औसत लागत पर यूनिट्स खरीदते हैं, जो दीर्घकालिक लाभ की संभावना को बढ़ाता है।
कंपाउंडिंग का प्रभाव: समय के साथ, निवेश पर मिलने वाले रिटर्न को पुनर्निवेश किया जाता है, जिससे कंपाउंडिंग का लाभ मिलता है। कंपाउंडिंग का अर्थ है कि निवेश पर मिलने वाले ब्याज पर भी ब्याज मिलता है, जिससे निवेश का मूल्य तेजी से बढ़ता है।
SIP के प्रकार:
सिस्टमैटिक इंवेस्टमेंट प्लान (SIP) के विभिन्न प्रकार हैं, जो निवेशकों को उनकी जरूरतों और वित्तीय लक्ष्यों के अनुसार निवेश के विकल्प प्रदान करते हैं। यहाँ SIP के प्रमुख प्रकारों का विवरण दिया गया है:
- रैगुलर SIP: इस प्रकार के SIP में निवेशक एक निश्चित अवधि के लिए नियमित अंतराल पर एक निश्चित राशि का निवेश करते हैं। यह सबसे आम और सरल SIP प्रकार है, जो निवेशकों को एक अनुशासित निवेश पैटर्न बनाए रखने में मदद करता है।
- टॉप-अप SIP (स्टेप-अप SIP): इस SIP में निवेशक समय के साथ अपनी निवेश राशि को बढ़ा सकते हैं। यह उन निवेशकों के लिए उपयुक्त है जो अपने निवेश को बढ़ाना चाहते हैं, जब उनकी आय बढ़ती है। यह उन्हें अपने वित्तीय लक्ष्यों को तेजी से प्राप्त करने में मदद करता है।
- फ्लेक्सिबल SIP: फ्लेक्सिबल SIP निवेशकों को उनकी सुविधा के अनुसार निवेश की राशि और अंतराल को बदलने की अनुमति देता है। यह उन लोगों के लिए आदर्श है जिनकी आय या व्यय अस्थिर होता है।
- परपेचुअल SIP: इस SIP में निवेश की कोई तय अवधि नहीं होती है। यह तब तक जारी रहता है जब तक कि निवेशक इसे बंद नहीं करते। यह उन निवेशकों के लिए उपयुक्त है जो दीर्घकालिक निवेश करना चाहते हैं।
- Trigger SIP: इस प्रकार के SIP में निवेशकों द्वारा कुछ शर्तें या ट्रिगर सेट किए जाते हैं, जैसे कि बाजार के स्तर या किसी अन्य वित्तीय संकेतक पर आधारित निवेश। जब वह शर्त पूरी होती है, तब निवेश होता है। यह उन निवेशकों के लिए उपयुक्त है जो बाजार के उतार-चढ़ाव का लाभ उठाना चाहते हैं।
म्यूचुअल फंड SIP का भारतीय इतिहास:
भारत में म्यूचुअल फंड की यात्रा 1963 में शुरू हुई जब यूनिट ट्रस्ट ऑफ इंडिया (UTI) का गठन संसद के एक अधिनियम द्वारा किया गया। यह भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के समय की बात है। UTI ने देश में म्यूचुअल फंड्स के विकास की नींव रखी। इसके तहत 1964 में यूनिट स्कीम 1964 (US-64) शुरू की गई, जिसने देश में म्यूचुअल फंड्स की लोकप्रियता को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
लाल बहादुर शास्त्री के प्रधानमंत्री काल में इस योजना को और भी गति मिली। 1978 में UTI भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के नियंत्रण में आ गया और उसी साल UTI का नियामक और प्रशासनिक प्राधिकरण बदल दिया गया। 1988 के अंत तक UTI के अंतर्गत निवेश का कुल बाजार मूल्य 6,700 करोड़ रुपए तक पहुंच गया। इसके बाद से म्यूचुअल फंड इंडस्ट्री ने तेजी से विकास किया।
इसके बाद भारत में सिस्टमैटिक इंवेस्टमेंट प्लान (SIP) की शुरुआत 1990 के दशक के अंत और 2000 के दशक की शुरुआत में हुई। सिस्टमैटिक इंवेस्टमेंट प्लान (SIP) की शुरुआत 1920 के दशक में संयुक्त राज्य अमेरिका में हुई थी। शुरुआती दौर में SIPs का फोकस स्टॉक मार्केट में निवेश पर था। बाद में, म्यूचुअल फंड्स ने SIPs को खुदरा निवेशकों के लिए पेश किया
सिस्टमैटिक इंवेस्टमेंट प्लान (SIP) का लाभ:
- SIP निवेशकों को नियमित रूप से निवेश की आदत विकसित करने में मदद करता है। यह उन्हें एक व्यवस्थित तरीके से निवेश करने की सुविधा प्रदान करता है, जिससे उन्हें एक वित्तीय अनुशासन बनाए रखने में मदद मिलती है।
- SIP की नियमित और दीर्घकालिक निवेश प्रक्रिया के कारण, छोटे-छोटे निवेश समय के साथ बड़े पैमाने पर बढ़ सकते हैं। इससे दीर्घकालिक वित्तीय लक्ष्यों जैसे कि रिटायरमेंट या शिक्षा के लिए फंड तैयार किया जा सकता है।
- SIP के माध्यम से निवेशक अपने पैसे को विभिन्न कंपनियों और उद्योगों में निवेश करते हैं, जो उनके पोर्टफोलियो को विविधीकृत करता है। इससे जोखिम कम होता है और रिटर्न की संभावना बढ़ती है।
- SIP की प्रक्रिया सरल और सहज होती है। इसमें शुरू करने के लिए न्यूनतम राशि की आवश्यकता होती है, और निवेश की प्रक्रिया पूरी तरह से स्वचालित होती है।
सिस्टमैटिक इंवेस्टमेंट प्लान (SIP) की अवधि:
SIP को एक निश्चित अवधि के लिए सेट किया जा सकता है, जैसे 1 साल, 5 साल, या 10 साल। निवेशक इस अवधि के दौरान नियमित रूप से निर्धारित राशि का निवेश करते हैं। अवधि समाप्त होने के बाद, निवेशक SIP को जारी रखने या समाप्त करने का निर्णय ले सकते हैं। इसके अतिरिक्त कुछ SIP योजनाएं निवेशकों को फ्लेक्सिबल अवधि की सुविधा देती हैं, जहां वे अपनी सुविधा अनुसार SIP की अवधि को बदल सकते हैं या स्थगित कर सकते हैं।
SIP में निवेश पर टैक्स:
भारतीय टैक्स कानूनों के अनुसार, SIP में निवेश पर टैक्स के निम्नलिखित पहलू हैं:
- लंबी अवधि (Long-Term Capital Gains – LTCG) और अल्पकालिक अवधि (Short-Term Capital Gains – STCG):
- इक्विटी म्यूचुअल फंड्स: यदि आप इक्विटी म्यूचुअल फंड्स में SIP के माध्यम से निवेश करते हैं और 1 साल से अधिक अवधि के लिए रखते हैं, तो लाभ पर 10% LTCG टैक्स लगता है, यदि लाभ ₹1 लाख से अधिक है। 1 साल से कम अवधि के निवेश पर 15% STCG टैक्स लागू होता है।
- डेब्ट म्यूचुअल फंड्स: यदि आप डेब्ट म्यूचुअल फंड्स में SIP के माध्यम से निवेश करते हैं और 3 साल से अधिक अवधि के लिए रखते हैं, तो 20% LTCG टैक्स लागू होता है, जिसमेंindexation का लाभ भी शामिल होता है। 3 साल से कम अवधि के निवेश पर लाभ पर सामान्य आयकर दर (जिसमें आपके व्यक्तिगत आयकर स्लैब शामिल हैं) लागू होती है।
- डिविडेंड टैक्स: डिविडेंड्स पर टैक्स उन म्यूचुअल फंड्स के लिए लागू होता है जो डिविडेंड्स वितरित करते हैं। 2020-21 से, डिविडेंड्स पर टैक्स आपके व्यक्तिगत आयकर स्लैब के अनुसार लगता है, और फंड हाउस द्वारा डिविडेंड्स पर कोई TDS (टैक्स डिडक्टेड एट सोर्स) नहीं काटा जाता है।
- इक्विटी लिंक्ड सेविंग्स स्कीम्स (ELSS): SIP के माध्यम से यदि आप ELSS में निवेश करते हैं, तो आप ₹1.5 लाख तक के निवेश पर धारा 80C के तहत टैक्स छूट प्राप्त कर सकते हैं। ELSS में एक लॉक-इन अवधि 3 साल की होती है और निवेश पर लंबी अवधि के लाभ पर 10% LTCG टैक्स लागू होता है।
SIP की न्यूनतम राशि?
सिस्टमैटिक इंवेस्टमेंट प्लान (SIP) की न्यूनतम राशि विभिन्न म्यूचुअल फंड्स और उनके योजनाओं के आधार पर भिन्न हो सकती है। आमतौर पर अधिकांश म्यूचुअल फंड स्कीमों में SIP की न्यूनतम राशि ₹500 से शुरू होती है। कुछ फंड्स में यह राशि ₹1,000 भी हो सकती है।
सरकार द्वारा जारी आंकड़ा:
भारत में म्यूचुअल फंड्स में SIP की संख्या 31 मार्च 2014 को 60 लाख से बढ़कर 31 मार्च 2016 को 116.3 लाख और 31 अक्टूबर 2016 को 134.5 लाख हो गई थी। जो संख्या में बहुत बड़ा उछाल थी। इसी वर्ष के दौरान से SIP का प्रचलन हुआ।
साथ ही इस वर्ष मई 2024 में सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान – SIP के जरिए मंथली निवेश बहुत बढ़ा है। यह 20,361 करोड़ से 2.61% बढ़कर ₹20,904 करोड़ हो गया। अप्रैल 2024 में ही SIP का यह आकड़ा पहली बार ₹20,000 करोड़ के पार पहुंचा था।
SEBI द्वारा SIP वृद्धि के लिए उठाए गए कदम:
- SEBI ने निवेशक शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए म्यूचुअल फंड्स/एसेट मैनेजमेंट कंपनियों (AMCs) को अपनी कुल व्यय अनुपात (TER) का 2 बेसिस पॉइंट्स निवेशक शिक्षा और जागरूकता के लिए निर्धारित किया है। इसके अलावा, AMCs ने 31 जिलों में वित्तीय शिक्षा अभियानों का आयोजन किया, जिसमें SIP के लाभों की जानकारी दी गई।
- म्यूचुअल फंड्स ने क्षेत्रीय भाषाओं में प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से निवेशक जागरूकता सामग्री उपलब्ध कराई। इससे विपणन और SIP संबंधित शिक्षा का दायरा बढ़ा है।
- SEBI ने अन्य शहरों में पहुंच बढ़ाने के लिए अतिरिक्त TER (30 बेसिस पॉइंट्स तक) की अनुमति दी है। इसके परिणामस्वरूप, अन्य 15 शीर्ष शहरों के अलावा SIP की संख्या भी बढ़ी है, 31 अक्टूबर 2016 तक यह 63.1 लाख तक पहुँच गई है।
SIP का भारतीय अर्थव्यवस्था में योगदान
- म्यूचुअल फंड उद्योग का विकास: SIP के कारण म्यूचुअल फंड उद्योग में तेजी से वृद्धि हुई है। अधिक से अधिक लोग अब अपने निवेश के लिए म्यूचुअल फंड्स को चुन रहे हैं।
- रोजगार सृजन: म्यूचुअल फंड उद्योग के बढ़ने से कई नए रोजगार के अवसर पैदा हुए हैं।
- पूंजी निर्माण: SIP के माध्यम से जुटाए गए धन का उपयोग कंपनियों के विकास और नए उद्यमों को शुरू करने में किया जाता है। इससे देश में पूंजी निर्माण होता है।
- अर्थव्यवस्था में तरलता: SIP के माध्यम से बड़ी मात्रा में धन पूंजी बाजार में आता है। इससे अर्थव्यवस्था में तरलता बढ़ती है और निवेश के लिए पर्याप्त धन उपलब्ध होता है।
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