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दिल्ली चलो : किसान 2 साल बाद फिर से सड़कों पर, क्या है उनकी माँगे?

2020-21 में, किसानों के एक लम्बे आंदोलन के बाद भाजपा सरकार ने कृषि कानूनों को वापस लिया था। लेकिन अब, लोकसभा चुनावों से ठीक पहले, किसान एक बार फिर अपनी मांगों को लेकर सड़कों पर उतर आए हैं। किसानों ने इस आंदोलन का नाम ‘दिल्ली चलो’ दिया है।

फिर से क्यों दिल्ली कूच कर रहे किसान?

यह पहली बार नहीं है जब किसान आंदोलन कर रहे हैं। इससे पहले 2020-21 में, दिल्ली की सीमाओं पर किसानों का आंदोलन हुआ था। तब भाजपा सरकार को किसानों की बातें माननी पड़ी और संसद से पारित तीन कृषि कानूनों को रद्द करना पड़ा था। किसानों का डर था कि ये कानून न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को खत्म कर सकते हैं और खेती-किसानी कॉर्पोरेट कंपनियों के हाथों में सौंप जा सकते हैं। सरकार ने न सिर्फ कानूनों को रद्द कर दिया, बल्कि एमएसपी पर गारंटी देने का वादा किया। इसके बाद किसानों ने आंदोलन वापस ले लिया था। लेकिन अब किसानों का कहना है कि सरकार ने एमएसपी को लेकर अपने वादे पूरे नहीं किए।

378 दिन चला था पिछला आंदोलन

17 सितंबर 2020 को किसानों ने तीन कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन चलाया था। यह आंदोलन करीब 378 दिन चला। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने गुरु नानक देव के प्रकाश पर्व पर तीनों कानूनों को वापस लेने का ऐलान किया। इसके बाद किसानों ने 11 दिसंबर 2021 को आंदोलन खत्म करने का ऐलान किया था।

पुराने मुद्दों को लेकर ही आंदोलन

किसानों की माँग नई नहीं है उनकी माँगे वही है जो कृषि क़ानूनों को वापस लेने के साथ थी। इसमें सबसे बड़ी मांग फसलों की न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी वाला कानून है। इसके अलावा बिजली की दरों में रियायत और कर्ज माफी का भी मुद्दा है।

यह हैं किसानों कि माँगे –

  • किसानों की सबसे खास मांग न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के लिए कानून बनना है। 
  • किसान स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने की मांग।
  • आंदोलन में शामिल किसान कृषि ऋण माफ करने की मांग।
  • किसान लखीमपुर खीरी हिंसा के पीड़ितों को न्याय दिलाने की मांग।
  • मुक्त व्यापार समझौतों पर रोक लगाई जाए।
  • कृषि वस्तुओं, दूध उत्पादों, फलों, सब्जियों और मांस पर आयात शुल्क कम करने के लिए भत्ता बढ़ाया जाए।
  • किसानों और 58 साल से अधिक आयु के कृषि मजदूरों के लिए पेंशन योजना लागू करके 10 हजार रुपए प्रति माह पेंशन दी जाए।
  • प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में सुधार के लिए सरकार की ओर से स्वयं बीमा प्रीमियम का भुगतान करना, सभी फसलों को योजना का हिस्सा बनाना और नुकसान का आकलन करते समय खेत एकड़ को एक इकाई के रूप में मानकर नुकसान का आकलन करना।
  • भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 2013 को उसी तरीके से लागू किया जाना चाहिए और भूमि अधिग्रहण के संबंध में केंद्र सरकार की ओर से राज्यों को दिए गए निर्देशों को रद्द किया जाना चाहिए।
  • कीटनाशक, बीज और उर्वरक अधिनियम में संशोधन करके कपास सहित सभी फसलों के बीजों की गुणवत्ता में सुधार किया जाए।

क्या है स्वामीनाथन रिपोर्ट?

यूपीए सरकार ने किसानों की स्थिति का पता लगाने के लिए 2004 में एक कमीशन बनाया, जिसका नाम ‘नेशनल कमीशन ऑन फार्मर्स’ (NCF) था। इस कमीशन की अध्यक्षता डॉ. एम एस स्वामीनाथन कर रहे थे। एनसीएफ ने 2004 से लेकर 2006 तक कुल मिलाकर पांच रिपोर्ट सौंपीं, जिन्हें आज स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट या स्वामीनाथन रिपोर्ट के तौर पर जाना जाता है। इसमें उन सभी तरीकों के बारे में बताया गया, जिनके जरिए किसानों की स्थिति सुधारी जा सकती थी।

स्वामीनाथन आयोग के सुझाव

  • देश में खाद्य एवं पोषण सुरक्षा हेतु रणनीति बनाई जाए।
  • कृषि प्रणालियों की उत्पादकता और स्थिरता में सुधार किया जाए।
  • किसानों को ग्रामीण कर्ज का प्रवाह बढ़ाने के लिए सुधार किया जाए।
  • शुष्क भूमि के साथ-साथ पहाड़ी और तटीय क्षेत्रों में किसानों के लिए खेती करने का एक कार्यक्रम तैयार किया जाए।
  • कृषि वस्तुओं की क्वालिटी और लागत में होने वाली प्रतिस्पर्धा में सुधार किया जाए।
  • वैश्विक कीमतें गिरने पर किसानों को आयात से बचाया जाए।
  • स्थानीय निकायों को मजबूत बनाना, ताकि वे बेहतर किसानी के लिए पारिस्थितिक तंत्र को मजबूत कर पाएं।

सरकार का पक्ष क्या है?

  • अपनी मांगों को लेकर आंदोलन कर रहे किसान नेताओं और केंद्रीय मंत्रियों के बीच 12 फरवरी को मीटिंग बेनतीजा रही। चंडीगढ़ में साढ़े 5 घंटे की मीटिंग में केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल और अर्जुन मुंडा मौजूद थे।
  • किसान नेताओं के अनुसार सरकार किसानों की मांगों पर सीरियस नहीं है। किसान टकराव नहीं चाहते लेकिन सरकार के मन में खोट है। वह हमें कुछ नहीं देना चाहती। सरकार के प्रस्ताव पर विचार करेंगे लेकिन आंदोलन पर कायम हैं।
  • केंद्रीय मंत्रियों ने कहा कि MSP कानून को लेकर कमेटी बना रहे हैं लेकिन किसान नेता इसके लिए राजी नहीं हुए।
  • हालांकि मीटिंग में आंदोलन के दौरान किसानों और युवाओं पर दर्ज केसों को वापस लेने, लखीमपुर खीरी घटना के मृत किसानों के परिवारों को मुआवजे पर सहमति बनी है। बिजली एक्ट 2020 को रद्द करने पर भी सहमति के आसार बने थे।

Disclaimer: The article may contain information pertaining to prior academic years; for further information, visit the exam’s official or concerned website.

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