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16वीं एशियाई शेर गणना 2025 (16th Asiatic Lion Census 2025) | UPSC Preparation

16th Asiatic Lion Census 2025

सामान्य अध्ययन पेपर III: संरक्षण

 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में गुजरात सरकार ने पाँच वर्षों बाद आयोजित 16वीं एशियाई शेर गणना के आंकड़े जारी किए हैं। नई गणना के अनुसार, गिर के जंगलों में शेरों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।

(गुजरात में 16वीं एशियाई शेर गणना 2025 के मुख्य बिंदु) 16th Asiatic Lion Census 2025
  • जनगणना का संचालन: 10 से 13 मई 2025 के बीच दो चरणों में गुजरात वन विभाग द्वारा इस व्यापक जनगणना को सम्पन्न किया गया।
    • इसमें अमरेली, जूनागढ़, गिर सोमनाथ, भावनगर, राजकोट, मोरबी, सुरेन्द्रनगर, देवभूमि द्वारका, जामनगर, पोरबंदर और बोटाद जैसे 11 जिलों की 58 तालुकाओं को शामिल किया गया। 
    • धारी गिर ईस्ट फॉरेस्ट डिवीजन द्वारा इस कार्य का नेतृत्व किया गया, जिसमें 3,000 से अधिक वनकर्मी, अधिकारी, स्वयंसेवक और प्रेक्षक शामिल हुए।
  • शेरों की संख्या: गुजरात में संपन्न 16वीं एशियाई शेर गणना के अनुसार, अब राज्य में 891 शेर निवास करते हैं। 
    • एशियाई शेरों की यह संख्या 2020 की तुलना में 32.2% अधिक है।
    • इसमें 330 वयस्क मादाओं की उपस्थिति है। 
  • गिर से आगे बढ़ता ‘शेर साम्राज्य’: अब शेरों का निवास केवल गिर अभयारण्य तक सीमित नहीं रह गया है। वे सौराष्ट्र क्षेत्र के कई नए इलाकों में पहुँच चुके हैं। 
    • अब शेरों का लगभग 44.22% हिस्सा पारंपरिक संरक्षित क्षेत्रों के बाहर रह रहा है। 
    • 394 शेर अब भी गिर राष्ट्रीय उद्यान और उससे जुड़े अभयारण्यों में निवास करते हैं। 
  • ‘डायरेक्ट बीट वेरिफिकेशन’: इस वर्ष शेरों की गणना के लिए ‘डायरेक्ट बीट वेरिफिकेशन’ तकनीक का उपयोग किया गया। इसके अंतर्गत पूरे क्षेत्र को विभिन्न रेंज, जोन और सब-ज़ोन में बाँटकर टीमों ने हर बीट पर निगरानी की। 
  • सबसे बड़ा कवरेज: इस गणना में 35,000 वर्ग किलोमीटर के विशाल क्षेत्र को कवर किया गया, जिसमें गिर जंगल के अलावा सौराष्ट्र के नए इलाके भी शामिल हैं।
    • 2020 में गैर-वनीय क्षेत्रों में 340 शेर थे, जो 2025 में बढ़कर 507 हो गए हैं।
    • मित्याला अभयारण्य में शेरों की संख्या दोगुनी होकर 32 हो गई है।
    • पोरबंदर के निकट बर्दा अभयारण्य में 17 शेरों की उपस्थिति पहली बार दर्ज हुई है।
    • अमरेली ज़िले में सर्वाधिक 257 शेर पाए गए।
  • ई-गुजफॉरेस्ट ऐप: ई-गुजफॉरेस्ट मोबाइल एप्लिकेशन की मदद से गणना के दौरान रीयल टाइम में डेटा एंट्री की गई। साथ ही, जीआईएस तकनीक का प्रयोग कर शेरों के मूवमेंट और उनके आवास क्षेत्रों को वैज्ञानिक तरीके से मैप किया गया।
  • प्रोजेक्ट लायन का योगदान: शेरों की बढ़ती संख्या के पीछे ‘प्रोजेक्ट लायन’ की रणनीति अहम रही। इस परियोजना ने शेरों के लिए सुरक्षित और पर्याप्त आवास स्थल तैयार किए, शिकार के आधार (prey base) को सुदृढ़ किया।
  • डिजिटल युग का समावेश: 2025 की इस गणना में तकनीक की भूमिका बेहद अहम रही। जीपीएस डिवाइस के जरिये फील्ड टीमों और शेरों की गतिशीलता पर नज़र रखी गई। 
    • सैटेलाइट इमेजरी ने जंगल के विस्तार और वनावरण का विश्लेषण किया। 
    • एआई आधारित सॉफ्टवेयर द्वारा शेरों की विशेष शारीरिक पहचान की गई, जबकि मल्टी-एंगल फोटोग्राफी और हाई-रेजोल्यूशन कैमरों से उनकी सटीक डिजिटल छवियां जुटाई गईं।

1936 से 2020 तक एशियाई शेरों की गणना

  • 1936 से 1955 तक: 
    • शेरों की पहली आधिकारिक गिनती 1936 में जूनागढ़ रियासत द्वारा की गई थी, जिसमें 287 शेर पाए गए। इसमें नर, मादा और शावकों की गिनती अलग-अलग की गई थी। 
    • 1950 में ब्रिटिश संरक्षणवादी विटर-ब्ली ने द्वारा की गई जनगणना के अनुमान के अनुसार 219 से 279 शेर बचे थे। 
    • 1955 तक संख्या 290 के आसपास बनी रही, जिससे यह संकेत मिला कि हालात स्थिर हैं।
  • 1963 से 1974 तक:
    • 1963 में पहली बार जनसंख्या में गिरावट देखी गई, जब केवल 285 शेर बचे थे। 
    • 1968 में यह संख्या और घटकर 177 हो गई। यह गिरावट शिकार, आवास विनाश और संरक्षण की कमी की वजह से हुई। 
    • 1974 की गणना में पहली बार युवा और किशोर शेरों की गिनती अलग से की गई, जिससे 180 शेरों की सही जनसंख्या संरचना समझने में मदद मिली।
  • 1985 से 2005 तक:
    • 1985 में शेरों की संख्या बढ़कर 279 हो गई। 
    • 1990 और 1995 में क्रमशः 284 और 304 शेरों की पुष्टि हुई। 
    • 2001 की गणना में वैज्ञानिक तरीकों का पहला उपयोग हुआ, जिससे 327 शेरों की सटीक जानकारी मिली। 
    • 2005 तक यह संख्या 359 हो गई थी।
  • 2010 से आगे
    • 2010 में पहली बार शेरों की संख्या 400 के पार पहुंची और 411 शेर दर्ज हुए। 
    • 2015 में यह संख्या 519 तक पहुँच गई। 
    • 2020 की गणना ‘पूर्णिमा पद्धति’ (Full Moon Observation) से की गई, जिसमें 674 शेर दर्ज हुए।

गुजरात के गौरव एशियाई शेर का परिचय 

    • पृष्ठभूमि:
      • एशियाई शेर केवल भारत के गिर क्षेत्र में पाए जाते हैं।
      • इन्हें गुजरात में सवाज, बब्बर शेर या ऊँटिया वाघ के नाम से जाना जाता है। 
      • एशियाई शेर को भारतीय या फारसी शेर भी कहा जाता है।
      • यह शेरों की एक विशिष्ट उप-प्रजाति पैंथेरा लियो का सदस्य है।
      • चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के समय के सिक्कों पर इनकी आकृति देखी गई है। यह स्पष्ट करता है कि शेर भारतीय सांस्कृतिक चेतना का हिस्सा लंबे समय से हैं।
      • ‘मेक इन इंडिया’ अभियान में भी शेर का प्रतीक उपयोग किया गया, जो इसे आधुनिक भारत का आत्मविश्वासपूर्ण प्रतीक बनाता है।
  • भौगोलिक विस्तार:
      • प्राचीन काल में एशियाई शेरों का निवास पश्चिम एशिया से लेकर भारत के मध्यवर्ती राज्यों तक फैला था। 
      • अत्यधिक शिकार, आवासीय क्षेत्र का सिकुड़ना और मानव हस्तक्षेप के कारण अब ये केवल गिर राष्ट्रीय उद्यान, पनिया, मित्याला और आसपास के क्षेत्र जैसे अमरेली, जूनागढ़ और पोरबंदर तक सीमित रह गए हैं। 
      • 2025 की गणना के अनुसार, अब 891 शेर गुजरात में मौजूद हैं, जो पिछले दशकों के प्रयासों की सफलता दर्शाते हैं।
      • एशियाई शेर शुष्क पर्णपाती जंगलों और घास के मैदानों में रहना पसंद करते हैं। 
      • गिर क्षेत्र में वे हिरण, नीलगाय और कभी-कभी घरेलू पशुओं का शिकार करते हैं। 
  • शारीरिक विशेषताएँ :
      • एशियाई शेर अफ्रीकी शेरों से आकार में छोटे होते हैं।
      • नर शेरों का वजन लगभग 160–190 किलोग्राम और मादाओं का 110–120 किलोग्राम तक होता है।
      • इनकी सबसे खास पहचान है पेट के नीचे त्वचा की लटकती परत, जो केवल एशियाई प्रजातियों में मिलती है। 
      • इनके कान स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं, और माने (गर्दन के बाल) अफ्रीकी शेरों की तुलना में कम घने होते हैं। 
      • इनका रंग रेत-सदृश से लेकर हल्के भूरे तक होता है, जो कई बार चांदी जैसे चमकते हैं।
  • IUCN ग्रीन स्टेटस:
      • 2025 में IUCN ने शेरों के लिए पहला “ग्रीन स्टेटस असेसमेंट” जारी किया। 
        • यह आकलन संरक्षण के प्रभाव और प्रजातियों की पुनर्प्राप्ति को मापने का एक नया मानक है। 
        • IUCN ने इनके संरक्षण प्रयासों को देखते हुए इनकी स्थिति “संकटापन्न” (Endangered) से “कमजोर” (Vulnerable) में बदली है, जो संरक्षण की दिशा में एक सकारात्मक संकेत है।
        • एशियाई शेर अब “मध्यम रूप से समाप्त” श्रेणी में आते हैं, जिसका अर्थ है कि संरक्षण प्रयासों ने कुछ हद तक सफलता प्राप्त की है, लेकिन सतत प्रयास आवश्यक हैं।
  • संरक्षण:
    • एशियाई शेरों के अवैध शिकार, जेनेटिक इनब्रीडिंग, कैनाइन डिस्टेंपर जैसी बीमारियों को रोकने के लिए केंद्र और राज्य सरकार ने ‘एशियाई शेर संरक्षण परियोजना’ और ‘प्रोजेक्ट लायन’ जैसे कार्यक्रम शुरू किए हैं। 
    • एशियाई शेरों को भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची-I के तहत सर्वाधिक सुरक्षा प्राप्त है। 
    • अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इन्हें CITES परिशिष्ट-I में रखा गया है, जिससे इनकी अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर पूर्ण रोक है। 
    • सर्वोच्च न्यायालय ने शेरों को मध्यप्रदेश के कुनो राष्ट्रीय उद्यान में स्थानांतरित करने का आदेश दिया था, लेकिन पारिस्थितिकीीय कारणों से यह निर्णय अब तक लागू नहीं हो पाया है।

गिर राष्ट्रीय उद्यान

  • गिर राष्ट्रीय उद्यान, जो जूनागढ़ जिले में स्थित है, एशियाई शेरों का एकमात्र स्वाभाविक आवास है। 
  • इसे पहले 1965 में वन्यजीव अभयारण्य के रूप में स्थापित किया गया और फिर 1975 में इसे राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा मिला। 
  • यह क्षेत्र अर्द्ध-शुष्क जलवायु वाला है जहाँ शुष्क पर्णपाती वन फैले हुए हैं।  
  • ‘मल्धारिस’ नामक पारंपरिक चरवाहा समुदाय सदियों से इन जंगलों में शेरों के साथ सहअस्तित्व में रहते आ रहे हैं। यह सहजीवी संबंध भारतीय वन संरक्षण की एक अनूठी मिसाल है।

कूनो राष्ट्रीय उद्यान

  • कूनो राष्ट्रीय उद्यान मध्य प्रदेश के श्योपुर और मुरैना जिलों में फैला हुआ है। 
  • इसकी शुरुआत वर्ष 1981 में एक वन्यजीव अभयारण्य के रूप में हुई थी और 2018 में इसे राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा प्राप्त हुआ।
  • 1952 में भारत से विलुप्त हो चुके चीतों की वापसी के लिए कूनो को चुना गया। अफ्रीका के नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से चीतों को यहाँ लाया गया।
  • यह उद्यान कई दुर्लभ प्रजातियों जैसे तेंदुआ, सुस्त भालू, भेड़िया और बंगाल लोमड़ी का आवास है।

प्रोजेक्ट लायन 

  • भारत सरकार ने वर्ष 2020 में ‘प्रोजेक्ट लायन’ की शुरुआत की थी।
  • इसका उद्देश्य एशियाई शेरों के भविष्य को स्थायी और सुरक्षित बनाना है। 
  • यह परियोजना दस वर्षों की अवधि में चरणबद्ध रूप से लागू की जा रही है। 
  • इसका मुख्य ध्यान प्राकृतिक आवासों की बहाली, नए क्षेत्र विकसित करने, और शेरों से जुड़े रोगों के वैज्ञानिक प्रबंधन पर केंद्रित है। 
  • परियोजना का लक्ष्य शेरों की संख्या बढ़ाना है और उन्हें दीर्घकालिक रूप से सुरक्षित आवास प्रदान करना भी है।
  • इसके तहत गुजरात सरकार, केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण और स्थानीय समुदायों की भागीदारी से कार्य किए जा रहे हैं।

 

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