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लैंसेट अध्ययन: भारतीयों में है सुक्ष्म पोषक तत्वों की कमी (कुपोषण)

Mains

GS II – विकास के लिए सरकारी नीतियां और हस्तक्षेप, स्वास्थ्य, गरीबी और भूख से संबंधित मुद्दे।

Lancet Study चर्चा में क्यों?

हाल ही में लैंसेट ग्लोबल हेल्थ जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन ने भारतीयों में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी की गंभीरता को उजागर किया है। इस अध्ययन के अनुसार, भारत में लोग आयरन, कैल्शियम और फोलेट जैसे महत्वपूर्ण सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी का सामना कर रहे हैं, जो उनके स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहे हैं। यह समस्या दुनिया भर में प्रचलित है, लेकिन भारत की स्थिति विशेष रूप से चिंताजनक है। अध्ययन यह इंगित करती है कि किस प्रकार की रणनीतियों की आवश्यकता है ताकि इन पोषक तत्वों की कमी को ठीक किया जा सके और समग्र स्वास्थ्य में सुधार हो सके।

लैंसेट अध्ययन (Lancet Study) के मुख्य बिंदु

  • लैंसेट ग्लोबल हेल्थ जर्नल के इस अध्ययन को हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के कुछ शोधकर्ताओं की अगुवाई में किया गया।
  • अध्ययन ने भारत सहित वैश्विक पोषण की स्थिति पर चिंता जताई गई है।
  • यह रिपोर्ट मुख्य 15 सूक्ष्म पोषक तत्वों को ध्यान में रखकर तैयार की गई है।
  • इस अध्ययन में 185 देशों में 15 सूक्ष्म पोषक तत्वों के सेवन की स्थिति का आकलन किया गया है।
  • अध्ययन के अनुसार, दुनिया की लगभग 70% आबादी (पांच अरब से अधिक लोग) आयोडीन, विटामिन ई और कैल्शियम की कमी का सामना कर रही है।
  • महिलाओं में मुख्य रूप से आयोडीन, विटामिन बी12, आयरन की कमी है। जबकि पुरुषों में कैल्शियम, नियासिन, थायमिन, जिंक, मैग्नीशियम, और विटामिन ए, सी, और बी6 की कमी देखी गई है।
  • भारत में 10 से 30 वर्ष की आयु के लोगों में कैल्शियम की कमी का खतरा अधिक बताया गया है।
  • भारत में महिलाओं में आयोडीन की कमी अधिक है, जबकि पुरुषों में जिंक और मैग्नीशियम की कमी अधिक देखी गई है।
  • अध्ययन में फोर्टिफाइड खाद्य पदार्थों या सप्लीमेंट्स को शामिल नहीं किया गया है।
  • इस अध्ययन को शोधकर्ताओं ने ‘ग्लोबल डायटरी डेटाबेस’ के उपलब्ध आंकड़ों का विश्लेषण करके तैयार किया है।

सुक्ष्म पोषक तत्व क्या हैं (What are Micronutrients)?  

  • सूक्ष्म पोषक तत्व ऐसे पोषक तत्व होते हैं जिनकी हमें शरीर में बहुत कम मात्रा में आवश्यकता होती है, लेकिन ये हमारी सेहत के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं। ये पोषक तत्व दो मुख्य श्रेणियों में बंटते हैं: विटामिन्स (Vitamins) और खनिज (Minerals)।
  1. विटामिन्स: विटामिन्स विभिन्न शारीरिक क्रियाओं को नियंत्रित करने में मदद करते हैं और शरीर के समुचित विकास के लिए आवश्यक होते हैं। प्रमुख विटामिन्स में शामिल हैं:
  • विटामिन A: दृष्टि, त्वचा और प्रतिरक्षा प्रणाली के लिए आवश्यक है।
  • विटामिन B समूह: ऊर्जा उत्पादन, मस्तिष्क कार्य और लाल रक्त कोशिकाओं के निर्माण में भूमिका निभाते हैं।
  • विटामिन C: प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करता है और कोलेजन निर्माण में मदद करता है।
  • विटामिन D: हड्डियों और दांतों के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है, कैल्शियम के अवशोषण में मदद करता है।
  • विटामिन E: एंटीऑक्सीडेंट के रूप में कार्य करता है और कोशिकाओं को क्षति से बचाता है।
  • विटामिन K: रक्त का थक्का जमाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  1. खनिज: खनिज भी सूक्ष्म पोषक तत्वों में आते हैं और शरीर की विभिन्न क्रियाओं को बनाए रखने के लिए आवश्यक होते हैं। प्रमुख खनिजों में शामिल हैं:
  • आयरन: शरीर में ऑक्सीजन के परिवहन में मदद करता है।
  • कैल्शियम: हड्डियों और दांतों को मजबूत बनाने में मदद करता है, और मांसपेशियों और तंत्रिका तंतुओं के कार्य में योगदान करता है।
  • जिंक: प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करता है और कोशिका विभाजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • मैग्नीशियम: मांसपेशियों और तंत्रिका तंतुओं के कार्य को बनाए रखता है, और हड्डियों के स्वास्थ्य में योगदान करता है।
  • आयोडीन: थायरॉयड हार्मोन के निर्माण के लिए आवश्यक है, जो शरीर के मेटाबॉलिज्म को नियंत्रित करता है।

सुक्ष्म पोषक तत्वो का महत्व:

  • सूक्ष्म पोषक तत्व शरीर के सामान्य विकास, वृद्धि और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • ये पोषक तत्व शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाते हैं, जिससे बीमारियों और संक्रमणों से लड़ने में मदद मिलती है।
  • विटामिन्स और खनिज ऊर्जा उत्पादन की प्रक्रिया में सहायक होते हैं, जिससे दिनभर सक्रिय और स्वस्थ रहना संभव होता है।
  • सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी से विभिन्न बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है, जैसे एनीमिया, हड्डियों की समस्याएँ, और इन्फेक्शन।

सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी का अर्थ

सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी का मतलब है कि शरीर को आवश्यक विटामिन्स और खनिजों की मात्रा में कमी हो रही है। सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी (Micronutrient Deficiency), जिसे अक्सर “माइक्रोन्यूट्रिएंट डिफिशिएंसी” के रूप में जाना जाता है, कुपोषण का एक सामान्य रूप है। इसमें शरीर को आवश्यक पदार्थों की कमी होती है, जो विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बनती हैं।

कुपोषण क्या है?

कुपोषण (Malnutrition) एक स्वास्थ्य स्थिति है जो तब उत्पन्न होती है जब व्यक्ति को उसके आहार से आवश्यक पोषक तत्वों की सही मात्रा नहीं मिलती। यह पोषक तत्वों की कमी, अधिकता, या असंतुलित आहार के कारण हो सकता है। कुपोषण शारीरिक विकास, स्वास्थ्य और जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित करता है।

कुपोषण के प्रकार:

  1. प्रोटीन की कमी: प्रोटीन की कमी तब होती है जब शरीर को उसकी जरूरत के अनुसार पर्याप्त प्रोटीन नहीं मिल पाता। प्रोटीन शरीर के विभिन्न कार्यों के लिए आवश्यक है, जैसे कोशिका निर्माण, ऊतकों की मरम्मत, और एंजाइमों और हार्मोन का निर्माण। इसकी कमी से क्वाशियोकोर और मालन्यूट्रिशन हो जाता हैं।
  2. विटामिन की कमी: इसमें मुख्य रूप से शरीर को पर्याप्त मात्रा में विटामिन नही मिल पाता है।
    1. विटामिन A की कमी से रात की अंधता नामक रोग होता है।
    2. विटामिन D की कमी से रैकिट्स रोग होता है।
    3. विटामिन B समूह (जैसे B1, B2, B3, B6, B12) की कमी से एनीमिया, बैरी बैरी नामक रोग होते हैं।
    4. विटामिन C की कमी से स्कर्वी नामक बीमारी होती है।
  3. खनिज की कमी: इसमें मुख्य रूप से शरीर को पर्याप्त मात्रा में खनिज नही मिल पाता है।
    1. लोहा (आयरन) की कमी: आयरन रक्त में हीमोग्लोबिन के निर्माण के लिए आवश्यक है। इसकी कमी से एनीमिया होता है।
    2. आयोडीन की कमी: इसकी कमी से गोइटर रोग होता है।
    3. कैल्शियम की कमी: कैल्शियम की कमी से हड्डियों और दांतों का कमजोर होना, ऑस्टियोपोरोसिस रोग होता है।
    4. नियासिन की कमी से पेलाग्रा नामक बीमारी होती है।
    5. जिंक की कमी से विकास में बाधा, प्रतिरक्षा तंत्र कमजोर होना।
    6. मैग्नीशियम: मैग्नीशियम की कमी से मांसपेशियों में ऐंठन, उच्च रक्तचाप होना।

कुपोषण के कारण होने वाले स्वास्थ्य प्रभाव

  • विकास में बाधा: बच्चों और किशोरों में कुपोषण से शारीरिक वृद्धि रुक सकती है। इसका मतलब है कि उनकी ऊँचाई और वजन अपेक्षित स्तर पर नहीं बढ़ पाते, जिससे जीवन की गुणवत्ता और भविष्य की स्वास्थ्य स्थिति प्रभावित होती है। उचित पोषण की कमी से मानसिक विकास में भी रुकावट हो सकती है। यह शैक्षिक प्रदर्शन में कमी और ध्यान केंद्रित करने की क्षमता में बाधा डालता है।
  • रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होना: पोषक तत्वों की कमी से शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर हो जाती है। इससे संक्रमण, बैक्टीरियल और वायरल बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है, और शरीर का रिकवरी क्षमता भी कम हो जाती है। कुपोषण के कारण सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी जैसे आयरन, विटामिन A, और जिंक के कारण इन्फेक्शन और बीमारियों से लड़ने की क्षमता कम हो जाती है।
  • अनेक रोगों का खतरा: विटामिन और खनिजों की कमी से मेटाबोलिज्म संबंधी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं, जैसे डायबिटीज और मोटापे की समस्याएँ। प्रोटीन और अन्य पोषक तत्वों की कमी से पाचन तंत्र की समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं, जैसे दस्त, कब्ज, और अन्य पाचन संबंधी बीमारियाँ।

कुपोषण के कारण

  • मिट्टी की उर्वरता कम होने, खाद्य प्रसंस्करण के दौरान पोषक तत्वों के नष्ट होने और खाद्य पदार्थों के लंबे समय तक भंडारण के कारण खाद्य पदार्थों में पोषक तत्वों की मात्रा कम हो जाती है।
  • अधिकांश लोग एक ही प्रकार के खाद्य पदार्थों का सेवन करते हैं, जिससे शरीर को आवश्यक सभी पोषक तत्व नहीं मिल पाते हैं।
  • गरीब लोग पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थों को खरीदने में असमर्थ होते हैं।
  • कई लोगों को स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच नहीं होती है, जिसके कारण वे कुपोषण से पीड़ित होने के बावजूद इलाज नहीं करवा पाते हैं।

विश्व और भारत में कुपोषण से संबंधित आंकड़े

  • संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट ‘द स्टेट ऑफ फूड सिक्योरिटी एंड न्यूट्रिशन इन द वर्ल्ड 2022’ के अनुसार, विश्वभर में कुपोषण की स्थिति चिंताजनक है।
  • 2020 तक, विश्वभर में 3.07 बिलियन (307 करोड़) लोग ऐसे थे जिन्हें हेल्दी डाइट नहीं मिल रही थी, जो कि कुल वैश्विक जनसंख्या का लगभग 42% है।
  • विश्व में 1.9 बिलियन वयस्क ऐसे है जो अत्यधिक मोटापे से ग्रसित हैं। इसी के साथ 462 मिलियन लोग कम वजन के शिकार हैं।
  • भारत में 22 करोड़ से अधिक लोग कुपोषित हैं और 97 करोड़ लोग हेल्दी डाइट से वंचित हैं। ये संख्या भारत की कुल जनसंख्या का लगभग 70% है।
  • भारत में 5 साल से कम उम्र के 2 करोड़ से अधिक बच्चे पोषण की कमी का शिकार हैं, और 3.6 करोड़ से अधिक बच्चे ठिगने हैं।
  • भारत में कुपोषण की स्थिति गंभीर है, जैसा कि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 5 के अनुसार प्रदर्शित होता है। 5 वर्ष से कम आयु के 35.5% बच्चे स्टंटिंग (ऊँचाई में कमी) के शिकार हैं, जबकि 19.3% बच्चे वेस्टिंग (वजन में कमी) से प्रभावित हैं और 32.1% बच्चे अल्प-वजन के शिकार हैं।
  • इसके अतिरिक्त, 15-49 वर्ष की आयु वर्ग की महिलाओं में कुपोषण का स्तर 18.7% है। एनीमिया की व्यापकता भी चिंताजनक है, जिसमें पुरुषों में 25.0%, महिलाओं में 57.0%, किशोर बालकों में 31.1%, किशोर बालिकाओं में 59.1%, गर्भवती महिलाओं में 52.2% और बच्चों में 67.1% एनीमिया का शिकार हैं।
  • विश्व खाद्य सुरक्षा और पोषण की स्थिति, 2023 के अनुसार, भारत की लगभग 74% आबादी स्वस्थ आहार ग्रहण करने में असमर्थ है और 39% पर्याप्त पोषक तत्व प्राप्त करने में अक्षम हैं।
  • वैश्विक भुखमरी सूचकांक (GHI) 2023 में भारत का स्कोर 28.7 है, जो गंभीर भुखमरी की स्थिति को दर्शाता है।
  • इसके अलावा, भारत में बच्चों की वेस्टिंग दर 18.7% है, जो विश्व में सबसे अधिक है।
  • चीन में कुपोषण का स्तर भारत की तुलना में बेहतर है, जहां हेल्दी डाइट नहीं लेने वालों की संख्या भारतीयों की तुलना में पांच गुना कम है।

कुपोषण के विरुद्ध भारत सरकार द्वारा उठाए गए कदम

  • मिशन पोषण 2.0: यह योजना कुपोषण के प्रभावी निवारण और पोषण में सुधार के लिए संपूर्ण रणनीति के तहत कार्य करती है, जिसमें प्राथमिक स्वास्थ्य और पोषण सेवाओं को मजबूत किया जाता है।
  • प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (PMMVY): इस योजना के तहत गर्भवती महिलाओं को मातृत्व सहायता के रूप में वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है, ताकि वे गर्भावस्था के दौरान बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ उठा सकें।
  • एकीकृत बाल विकास सेवा (ICDS) योजना: यह योजना बच्चों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं को पोषण, स्वास्थ्य और शिक्षा सेवाएं प्रदान करती है।
  • पोषण वाटिकाएँ: ये सामुदायिक पोषण उद्यान हैं जहां लोग स्थानीय रूप से उगाए गए पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थों का उत्पादन और उपयोग कर सकते हैं।
  • मध्याह्न भोजन योजना: सरकारी स्कूलों में पढ़ रहे बच्चों को पौष्टिक भोजन प्रदान करने के लिए यह योजना कार्यान्वित की जाती है, जिससे उनकी पोषण स्थिति में सुधार हो सके।
  • किशोर बालिकाओं के लिए योजना (SAG): इस योजना का उद्देश्य किशोर बालिकाओं को स्वास्थ्य और पोषण सेवाएं प्रदान करना है, ताकि उनके विकास को समर्थन मिल सके।
  • माँ का पूर्ण स्नेह (MAA) कार्यक्रम: यह कार्यक्रम माताओं को स्वास्थ्य और पोषण संबंधी जानकारी और सेवाएं प्रदान करता है, जिससे वे स्वस्थ प्रसव और शिशु देखभाल कर सकें।

कुपोषण से निपटने के उपाय

  • सरकार को पोषण अभियान चलाकर लोगों को स्वस्थ आहार के बारे में जागरूक करना चाहिए। गर्भवती महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष पोषण कार्यक्रम चलाकर उनकी पोषण संबंधी जरूरतों को पूरा किया जा सकता है।
  • खाद्य पदार्थों में पोषक तत्वों को बढ़ाने के लिए जैविक खेती को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। खाद्य पदार्थों पर पोषण लेबलिंग अनिवार्य करनी चाहिए ताकि उपभोक्ता पोषक तत्वों के बारे में जान सकें।
  • किसानों को पोषक तत्वों से भरपूर फसलों को उगाने के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।
  • लोगों को स्वस्थ आहार के महत्व के बारे में शिक्षित किया जाना चाहिए।
  • गरीबी और खाद्य असुरक्षा को कम करने के लिए सरकार को सामाजिक सुरक्षा जाल मजबूत करना चाहिए।

भारत में कुपोषण से निपटने की चुनौतियाँ

  • आर्थिक और सामाजिक असमानताएँ: गरीबी और सामाजिक असमानता कुपोषण को बढ़ावा देती हैं। निम्न आय वर्ग की जनसंख्या तक पोषणकारी आहार की पहुंच सीमित होती है, जिससे कुपोषण बढ़ता है।
  • खाद्य सुरक्षा की कमी: पर्याप्त और पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थों की कमी, खासकर ग्रामीण और पिछड़े इलाकों में, कुपोषण को बढ़ावा देती है। खाद्य सुरक्षा योजनाओं का असमर्थ कार्यान्वयन भी एक कारण है।
  • स्वास्थ्य सेवाओं की कमी: ग्रामीण और दूरदराज क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की कमी के कारण पोषण संबंधी समस्याओं का जल्दी निदान और इलाज संभव नहीं हो पाता।
  • शिक्षा की कमी: पोषण और स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता की कमी के कारण सही खान-पान के बारे में जानकारी की कमी होती है, जो कुपोषण का एक बड़ा कारण है।
  • महिला और बाल अधिकारों की कमी: महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य और पोषण के अधिकारों की अनदेखी, जैसे कि भ्रूण हत्या और कम उम्र में विवाह, कुपोषण को बढ़ावा देती है।

UPSC पिछले वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन- सा/से वह/वे सूचक है/हैं जिसका/जिनका IFPRI द्वारा वैश्विक भुखमरी सूचकांक (ग्लोबल हंगर इंडेक्स) रिपोर्ट बनाने में उपयोग किया गया है? (2016)

  1. अल्प-पोषण
  2. शिशु वृद्धिरोधन
  3. शिशु मृत्यु-दर

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

 (A) केवल 1

(B) केवल 2 और 3

(C) 1, 2 और 3

(D) केवल 1 और 3

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