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वैश्विक नेविगेशन उपग्रह प्रणाली वाले वाहनों के लिए 20 किलोमीटर तक कोई राजमार्ग शुल्क नहीं

चर्चा में क्यों ?

  • केन्द्र ने राष्ट्रीय राजमार्गों और एक्सप्रेसवे (national highways and expressways) पर निजी वाहनों के मालिकों के लिए मुफ्त यात्रा की घोषणा की है।
  • यह सुविधा उन वाहनों के लिए लागू होगी जिनमें एक कार्यशील ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (GNSS) हो। इसके तहत, 20 किलोमीटर प्रति दिन तक यात्रा मुफ्त होगी।
  • जुलाई में, सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने कहा था कि वह GNSS-आधारित टोल संग्रह प्रणाली को पहले चरण में कुछ राष्ट्रीय राजमार्गों पर एक पायलट परियोजना के रूप में लागू करेगा, जो FASTag के साथ एक अतिरिक्त सुविधा के रूप में होगी।

मुख्य बिंदु (Key Points):

  • निजी वाहनों के मालिकों के लिए मुफ्त यात्रा की घोषणा।
  • वाहन में कार्यशील GNSS होना चाहिए।
  • 20 किलोमीटर प्रति दिन तक यात्रा मुफ्त होगी।
  • जुलाई में GNSS-आधारित टोल संग्रह प्रणाली की पायलट परियोजना की घोषणा।

GPS-आधारित टोल सिस्टम या GNSS क्या है (What is GPS-based toll system or GNSS)?

GPS-आधारित टोल सिस्टम सैटेलाइट्स और कार में लगे ट्रैकिंग सिस्टम का उपयोग करके टोल की गणना करता है, जो कि यात्रा की गई दूरी के आधार पर होता है। यह सैटेलाइट आधारित ट्रैकिंग और GPS तकनीक का उपयोग करता है ताकि वाहन द्वारा तय की गई दूरी के अनुसार टोल चार्ज किया जा सके।

  • टोल की गणना (Toll calculation): टोल वाहन द्वारा तय की गई दूरी के आधार पर चार्ज किया जाता है।

फायदे (Benefits):

  • फिजिकल टोल प्लाजा की ज़रूरत समाप्त होती है।
  • ड्राइवर्स के लिए इंतजार करने का समय कम हो जाता है।

नए नियम (New rules):

  • सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने राष्ट्रीय राजमार्ग शुल्क (दरें और संग्रह की निर्धारण) नियम, 2008 में संशोधन किया।
  • संसोधन का नाम: नए नियमों को राष्ट्रीय राजमार्ग शुल्क (दरें और संग्रह की निर्धारण) संशोधन नियम, 2024 के रूप में जाना जाएगा।
  • नए नियमों के तहत, यदि यात्रा की दूरी 20 किलोमीटर से अधिक होती है, तो शुल्क वास्तविक दूरी के आधार पर लिया जाएगा।

GNSS तकनीक कैसे काम करेगी (How will the GNSS technology work)?

  • सिस्टम की तकनीक (Technology of the system): टोलिंग सिस्टम ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (GNSS) का उपयोग करेगा, जो अधिक सटीक स्थान और नेविगेशन जानकारी प्रदान करेगा।
  • ऑन-बोर्ड यूनिट (OBU): इसमें एक ट्रैकिंग डिवाइस (OBU) शामिल होगा जो वाहन के अंदर फिट किया जाएगा। यह डिवाइस GAGAN, भारतीय सैटेलाइट नेविगेशन सिस्टम का उपयोग करके वाहन का स्थान मैप करेगा। इसकी सटीकता लगभग 10 मीटर होगी।
  • को-ऑर्डिनेट्स लॉगिंग (Co-ordinates logging): देश के राष्ट्रीय राजमार्गों की पूरी लंबाई के को-ऑर्डिनेट्स डिजिटल इमेज प्रोसेसिंग की मदद से लॉग किए जाएंगे। सॉफ़्टवेयर का उपयोग टोल दर तय करने, यात्रा की गई दूरी के अनुसार टोल राशि की गणना करने और इसे OBU से जुड़े वॉलेट से काटने के लिए किया जाएगा।
  • गैण्ट्रीज़ और CCTV (Gantries and CCTV): सिस्टम में विभिन्न बिंदुओं पर हाईवे पर गैण्ट्रीज़ या आर्च होंगे, जिन पर CCTV कैमरे लगे होंगे, ताकि निगरानी और प्रवर्तन किया जा सके।
  • यह सिस्टम सबसे पहले प्रमुख राजमार्गों और एक्सप्रेसवे पर लागू किया जाएगा।

 GNSS तकनीक क्यों लाई जा रही है (Why is GNSS technology being introduced)?

GNSS तकनीक लाई जा रही है क्योंकि यह टोल बूथ की जरूरत खत्म कर देती है, जिससे ट्रैफिक जाम और इन्फ्रास्ट्रक्चर लागत कम होती है।

यह लगातार और सटीक ट्रैकिंग प्रदान करती है, जिससे सही टोल की गणना की जा सकती है।

GPS-आधारित सिस्टम को FASTag पर क्यों पसंद किया जाता है (Why are GPS-based systems preferred over FASTag)?

  • इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी (Lack of infrastructure): GPS-आधारित सिस्टम को टोल बूथ की ज़रूरत नहीं होती, जिससे ट्रैफिक की भीड़ और इन्फ्रास्ट्रक्चर की लागत कम होती है।
  • लगातार ट्रैकिंग (Continuous tracking): यह सिस्टम वाहनों को लगातार ट्रैक करता है, जिससे सही टोल की गणना की जा सकती है, जो वास्तविक दूरी पर आधारित होती है।
  • लचीलापन और स्केलेबिलिटी (Flexibility and scalability): GPS का कवरेज अधिक होता है और यह विभिन्न टोल दरों और दूरी के लिए उपयुक्त होता है।
  • प्रशासन में कमी (Reduced administration): ऑटोमेशन की वजह से मैन्युअल हस्तक्षेप और प्रशासनिक बोझ कम हो जाता है।
  • बेहतर उपयोगकर्ता अनुभव (Better user experience): ड्राइवर्स को टोल बूथ पर रुकने की ज़रूरत नहीं होती, जिससे यात्रा सहज होती है।

टोल राजस्व पर GNSS का प्रभाव (Impact of GNSS on toll revenue):

  • अभी नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (NHAI) हर साल लगभग 40,000 करोड़ रुपये का टोल राजस्व जुटाती है। अगले दो से तीन वर्षों में, GNSS आधारित टोल सिस्टम के पूरी तरह लागू होने पर यह राशि बढ़कर 4 लाख करोड़ रुपये तक पहुँच सकती है।
  • NHAI इस नए सिस्टम को मौजूदा FASTag व्यवस्था के साथ मिलाने का इरादा रखती है। इसके लिए एक हाइब्रिड मॉडल का उपयोग किया जाएगा, जिसमें RFID आधारित और GNSS आधारित टोल सिस्टम एक साथ काम करेंगे।
  • टोल प्लाज़ा पर GNSS के लिए विशेष लेन बनाई जाएगी, ताकि नए सिस्टम से सुसज्जित वाहन बिना रुके पार कर सकें। GNSS आधारित टोल कलेक्शन के लिए आवश्यक सॉफ्टवेयर देने वाली कंपनियों की पहचान के लिए एक Expression of Interest (EOI) जारी की गई है।
  • GNSS आधारित टोल कलेक्शन सड़क पर वाहनों की गति को बढ़ाने में मदद करेगा, क्योंकि इसमें बिना रुकावट और दूरी आधारित टोलिंग की सुविधा होगी।

फायदे (Benefits):

  • स्मूथ ट्रैफिक फ्लो (Smooth traffic flow): टोल प्लाज़ा की समाप्ति से ट्रैफिक जाम में महत्वपूर्ण कमी आएगी, विशेषकर भीड़भाड़ वाले समय में।
  • तेजी से यात्रा (Faster commutes): बिना रुकावट के टोल संग्रह से यात्रा का समय कम होगा और हाईवे नेटवर्क अधिक कुशल होगा।
  • न्यायसंगत बिलिंग(Fair billing): सिस्टम उपयोगकर्ताओं को केवल वास्तविक दूरी के आधार पर टोल भुगतान का लाभ देगा, जिससे ‘पे-एज़-यू-यूज़’ मॉडल को बढ़ावा मिलेगा।
  • कम प्रशासनिक बोझ (Less administrative burden): ऑटोमेशन के कारण मैन्युअल हस्तक्षेप और प्रशासनिक कामकाज कम होगा।
  • बेहतर उपयोगकर्ता अनुभव (Improved user experience): ड्राइवर्स को टोल बूथ पर रुकने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी, जिससे यात्रा अधिक सहज और आरामदायक होगी।
  • विस्तारित कवरेज (Extended coverage): GNSS सिस्टम से दूर-दराज के क्षेत्रों और छोटे मार्गों पर भी टोल संग्रह किया जा सकेगा, जिससे कवरेज बढ़ेगा।

चुनौतियाँ (Challenges):

  • भुगतान पुनर्प्राप्ति (Payment Recovery): उन उपयोगकर्ताओं से टोल की वसूली करना जिनके डिजिटल वॉलेट खाली हैं या जो सिस्टम में छेड़छाड़ करते हैं, एक चिंता का विषय है।
  • प्रवर्तन इन्फ्रास्ट्रक्चर (Enforcement Infrastructure): राष्ट्रीय स्तर पर ऑटोमेटिक नंबर-प्लेट रेकग्निशन (ANPR) कैमरों का नेटवर्क स्थापित करना बड़े पैमाने पर इंफ्रास्ट्रक्चर विकास की आवश्यकता होगी।
  • गोपनीयता संबंधी चिंताएँ (Privacy Concerns): डेटा सुरक्षा और उपयोगकर्ता की गोपनीयता को प्रभावी ढंग से संबोधित करने की आवश्यकता है।
  • उपकरण की लागत (Equipment Cost): पुराने वाहनों को GPS डिवाइस से लैस करने की आवश्यकता हो सकती है, जिससे अतिरिक्त लागत आएगी।
  • मौजूदा इन्फ्रास्ट्रक्चर की ज़रूरत (Existing Infrastructure Needed): मौजूदा FASTag सिस्टम को बदलने की आवश्यकता हो सकती है, जिससे अधिक लागत और समय लगेगा।
  • विस्तृत नेटवर्क प्रबंधन (Extensive Network Management): भारत के विशाल सड़क नेटवर्क को समायोजित करने के लिए बड़े पैमाने पर इन्फ्रास्ट्रक्चर उन्नयन की आवश्यकता होगी।
  • तकनीकी समस्याएँ (Technical Issues): GPS और ANPR सिस्टम तकनीकी समस्याओं का सामना कर सकते हैं, जो टोल संग्रह में रुकावटें उत्पन्न कर सकती हैं।

FASTag:

FASTag एक डिवाइस है जो रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन (RFID) तकनीक का उपयोग करके टोल भुगतान को सीधे वाहन के चलते समय कराता है। FASTag (RFID टैग) वाहन की विंडस्क्रीन पर लगाया जाता है और यह ग्राहक को FASTag से जुड़े खाते से सीधे टोल भुगतान की सुविधा देता है। इसे नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (NHAI) द्वारा सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की निगरानी में संचालित किया जाता है।

GAGAN:

GAGAN (GPS एडीड GEO ऑगमेंटेड नेविगेशन) भारतीय सरकार की एक पहल है जो सैटेलाइट आधारित नेविगेशन सेवाओं के लिए है। इसका उद्देश्य वैश्विक नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (GNSS) रिसीवर्स की सटीकता को संदर्भ सिग्नल्स के माध्यम से सुधारना है।

यह प्रणाली एयरपोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (AAI) और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा मिलकर विकसित की गई है। GAGAN का लक्ष्य विमान को भारतीय हवाई क्षेत्र और आस-पास के क्षेत्र में सटीक लैंडिंग में सहायता प्रदान करना है और यह जीवन सुरक्षा के लिए नागरिक ऑपरेशनों पर लागू होता है। GAGAN अन्य अंतरराष्ट्रीय SBAS (सैटेलाइट बेस्ड ऑगमेंटेशन सिस्टम) सिस्टमों के साथ इंटरऑपरेबल है।

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