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वित्त वर्ष 2024-25 में जूट उत्पादन में 20% की गिरावट की संभावना

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जूट उद्योग: प्राकृतिक आपदाओं, विशेषकर बाढ़, ने पश्चिम बंगाल और असम के कुछ क्षेत्रों में जूट की फसल को प्रभावित किया है, जिसके कारण वित्त वर्ष 2024-25 में जूट उत्पादन में 20% की गिरावट की संभावना है। ये दोनों राज्य जूट उत्पादन के प्रमुख केंद्र हैं, जिन्हें गोल्डन फाइबर के नाम से जाना जाता है।

जूट उद्योग की स्थिति:

  • जूट उद्योग भारत का सबसे पुराना और प्रमुख उद्योग है, जो भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • भारत विश्व का सबसे बड़ा जूट उत्पादक देश है, जो वैश्विक उत्पादन का 70% से अधिक योगदान करता है।
  • प्रमुख जूट उत्पादक राज्य: पश्चिम बंगाल, असम, बिहार, ओडिशा, आंध्र प्रदेश
  • जूट की खेती का संकेंद्रण: विश्व की 85% जूट की खेती गंगा डेल्टा क्षेत्र में होती है, जिससे यह क्षेत्र जूट उत्पादन के लिए प्रमुख है।
  • पूर्वी भारत, विशेषकर पश्चिम बंगाल, देश के कुल जूट उत्पादन का 73% उत्पन्न करता है।
  • भारत में 90% जूट का स्थानीय स्तर पर ही उपभोग किया जाता है।
  • क्षमता: भारत में जूट उत्पादन के लिए 50 मिलियन से अधिक स्पिंडल और 8,42,000 रोटर उपलब्ध हैं।

जूट उद्योग में अवसर:

  • संगठित मिलों में 0.37 मिलियन श्रमिकों को प्रत्यक्ष रोजगार मिलता है।
  • जूट निर्यात की वार्षिक क्षमता ₹4,500 करोड़ थी, हालांकि 2023-24 में यह घटकर ₹3,000 करोड़ रह गई।

जूट उद्योग की चुनौतियां:

  • घटता क्षेत्रफल: जूट की खेती का क्षेत्र 2013-14 से 2021-22 के बीच 1.7 लाख हेक्टेयर घटा है।
  • सस्ते विकल्प: सिंथेटिक उत्पादों के कारण जूट की मांग में कमी आ रही है।
  • राज्य समर्थन की कमी: राज्यों द्वारा जूट जियो-टेक्सटाइल्स जैसे उत्पादों की खरीद के लिए प्रोत्साहन का अभाव है।
  • गुणवत्ता: 80% से अधिक कच्चा जूट औसत से कम गुणवत्ता का होता है।
  • अन्य समस्याएं: आधुनिकीकरण का अभाव, कुशल श्रमिकों की कमी, आदि।

सुझाए गए समाधान:

  • नई मिलों की स्थापना के लिए व्यापक नीति बनाना।
  • कुशल श्रमिकों की कमी को दूर करने के लिए उपयुक्त योजना तैयार करना।

सरकारी पहल:

  • राष्ट्रीय जूट बोर्ड (एनजेबी) का गठन राष्ट्रीय जूट बोर्ड अधिनियम, 2008 के तहत किया गया, जिसका उद्देश्य जूट और जूट उत्पादों की खेती, विनिर्माण और विपणन को प्रोत्साहित करना है।
  • राष्ट्रीय जूट विकास कार्यक्रम – जूट उद्योग के विकास के लिए एक व्यापक योजना।
  • उत्पादन से जुड़ा प्रोत्साहन (PLI) योजना।
  • भारतीय जूट निगम (JCI) की स्थापना।
  • जूट पैकेजिंग सामग्री अधिनियम, 1987 – पैकेजिंग वस्तुओं में जूट के अनिवार्य उपयोग को सुनिश्चित करता है।
  • अन्य पहल: जूट मार्क लोगो, जूट आईकेयर योजना आदि।

जूट के बारे में :

जूट एक प्राकृतिक, नवीकरणीय और बायोडिग्रेडेबल फाइबर है, जिसे गोल्डन फाइबर के नाम से भी जाना जाता है।

विशिष्ट विशेषताएँ:

  • फसल का प्रकार: जूट एक खरीफ फसल है, जिसे मुख्यतः मानसून के मौसम में उगाया जाता है।
  • तापमान: जूट के लिए आदर्श तापमान 25-35°C के बीच होता है।
  • वर्षा: इसे 150-250 सेमी वर्षा की आवश्यकता होती है।
  • मिट्टी का प्रकार: जूट अच्छी जल निकास वाली जलोढ़ मिट्टी में सबसे अच्छा उगता है।
  • उपयोग: जूट का उपयोग विभिन्न वस्त्रों और सामग्री के निर्माण में होता है, जैसे:
    • टाट
    • चटाई
    • रस्सी
    • सूत
    • कालीन आदि।

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